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Millets are the Ultimate Nutritious Grains

Note : This story is published in Vigyan Prasar’s prestigious magazine DREAM 2047 (Hindi) in February 2023.  Download here

कृषि के लिए बेहद फ़ायदेमंद है ‘पोषक अनाज’ 

‘मोटा अनाज’ या यूँ कहें कि ‘पोषक अनाज’ की खेती भारत के लिए वरदान है। इसकी दो वजह हैं – एक तो, दूसरे अनाज उगाने के मुक़ाबले इसे उगाने में किसानों को कम लागत लगती है… और दूसरी वजह ये कि इसे उगाने में कम पानी, यूरिया, उर्वरक और दूसरे रसायनों की ज़रूरत पड़ती है। 

भारत, दुनिया में मोटे अनाज का सबसे बड़ा उत्पादक है। वैश्विक उत्‍पादों में भारत का अनुमानित हिस्‍सा लगभग 41 प्रतिशत है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के मुताबिक़ वर्ष 2020 में दुनिया भर में मोटे अनाज का उत्‍पादन 3.04 करोड़ मीट्रिक टन हुआ जिसमें भारत का हिस्‍सा 1.24 करोड़ मीट्रिक टन था, जो कुल मोटे अनाज उत्‍पादन का 41 प्रतिशत है। भारत ने 2021-22 में मोटे अनाज के उत्‍पादन में 27 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है जो बढ़कर 1.59 करोड़ मीट्रिक टन हो गया है। केंद्र सरकार ने अगले पांच वर्ष में देश में मोटे अनाज का क्षेत्रफल 50 लाख हेक्टेयर और उत्पादन एक करोड़ टन बढ़ाने का लक्ष्य तय किया है। 

देश के लगभग सभी राज्यों में मोटे अनाज की खेती की जाती है। महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, झारखण्ड, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तेलगांना में किसान बड़े स्तर पर मोटे अनाज की खेती करते हैं। वहीं, असम और बिहार में सबसे ज्यादा मोटे अनाज की खपत होती है। हमारे देश में 16 प्रमुख किस्म के मोटे अनाज का उत्‍पादन होता हैं और उनका निर्यात भी किया जाता है। इनमें ज्वार, बाजरा, रागी, कंगनी, चीना, कोदो, सवा/सांवा/झंगोरा, कुटकी, कुट्टू, चौलाई और ब्राउन टॉप मिलेट शामिल हैं। केंद्र सरकार के साथ- साथ राज्य सरकारें भी मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए मिलेट मिशन चला रही हैं। इसके तहत किसानों को सब्सिडी भी दी जा रही है। ऐसा करके हम मोटे अनाज के निर्यात को और बढ़ा सकेंगे। 

‘मोटा अनाज’ नहीं, अब ‘पोषक अनाज’ कहिए… 

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के आनुवंशिकी विभाग में प्रधान वैज्ञानिक डॉ सुमेर पाल सिंह से इस बारे में विस्तार से चर्चा हुई। उन्होंने मोटा अनाज के विषय पर गहन शोध किया है। उन्होंने बताया कि “वर्ष 2023 से मिलेट्स को ‘मोटा अनाज’ न कहकर ‘पोषक अनाज’ नाम दिया गया है। पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण ये हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं। इसी कारण इनकी खेती हमारे देश में लगभग 1.5 करोड़ हेक्टेयर में की जाती है। इसमें से लगभग आधे हिस्से में बाजरे की खेती की जाती है।” वो यहाँ इस बात पर भी ज़ोर देते हैं कि “पोषक अनाज की वैज्ञानिक तकनीक से खेती करनी चाहिए और उन्नत क़िस्मों का इस्तेमाल करना चाहिए।” 

किसानों के लिए फ़ायदे का सौदा 

मोटे अनाज की खेती किसानों के लिए एक उभरती हुई पसंद है। ये किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार ला सकता है। बस उन्हें इस बात का विश्वास होना चाहिए कि मोटे अनाज की खेती का उन्हें सही दाम मिलेगा। भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान में कृषि अर्थशास्त्र विभाग के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. बी दयाकर राव किसानों के लिए मोटे अनाज के महत्व को समझने में हमारी मदद करते हैं। वो बताते हैं कि “मोटा अनाज जलवायु अनुकूल फसल है जो किसानों के लिए अच्छे होते हैं। पोषण के लिए बेहतर हैं और हमारे लिए सर्वोत्तम है क्योंकि इससे भोजन, चारा और ईंधन जैसी कई उपयोगी चीज़ें मिलती हैं। मोटे अनाज को कटाई के बाद संचालन की ज़रूरत होती है। आईसीएआर-आईआईएमआर जैसे प्रमुख संस्थानों ने ऐसी तकनीक विकसित की है जो मोटे अनाज के उत्पादन से लेकर उपभोग तक की गतिविधियों में मददगार साबित होती है। साथ ही प्रसंस्करण के रास्ते भी खुलते हैं जिससे उत्पादकों को मोटे अनाज की सही क़ीमत मिल सके और उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हो।” 

Box Item 

विशेषज्ञों की मानें तो 

  • एक किलो मोटे अनाज के उत्पादन के लिए लगभग 200-300 लीटर पानी की ज़रूरत होती है, जबकि 1 किलो चावल और गेहूं पैदा करने के लिए 8,000-12,000 लीटर पानी लग जाता है। 
  • इन्हें वर्षा आधारित परिस्थितियों में उगाया जा सकता है।
  • मोटे अनाज की फसल शुष्क भूमि से प्रभावित नहीं होती है, यानी इसे कम उपजाऊ भूमि में भी उगाया जा सकता है। 
  • इन्हें न्यूनतम लागत के साथ छोटी और सीमांत भूमि पर भी उगाया जा सकता है। 
  • तापमान बढ़ने पर किसान मोटे अनाज की फसल की अधिक पैदावार पा सकते हैं। 
  • किसानों को मोटे अनाज की खेती के लिए निवेश और रखरखाव लागत के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। 
  • मोटे अनाज को लगभग किसी भी रासायनिक उर्वरक या कीटनाशक की ज़रूरत नहीं होती है। 
  • मोटा अनाज कम उपजाऊ मिट्टी और खराब मौसम में भी अच्छी तरह से बढ़ सकता है। 
  • मोटे अनाज के लिए 70 से 90 दिनों का एक छोटा खेती चक्र होता है, किसान एक वर्ष में लगभग 2-3 चक्र उपज दे सकते हैं। 
  • मोटे अनाज की खेती करने में कम लागत आती है, लिहाज़ा इसकी खेती किसानों के लिए फ़ायदेमंद है। 
  • मोटा अनाज जल्दी खराब नहीं होते हैं इसलिए रखरखाव की चिंता नहीं होती है। 
  • ये जलवायु के अनुकूल फसल है इसलिए दुनिया भर में बदलते जलवायु के लिए ये सबसे उपयुक्त है। 

किसानों से बात करो तो वो बताते हैं कि समय के साथ मोटे अनाज को लेकर लोगों की दिलचस्पी बढ़ रही है। सेहत के नाम पर ही सही, लोग अब मोटे अनाज को खाने के तरीक़े ढूँढ रहे हैं। एक समय था जब मोटे अनाज से ही घर में खाना बनाया जाता था। इन दिनों घर-घर में गेहूं, चावल का इस्तेमाल ज़्यादा होता है। चावल और गेहूं के बजाय बाजरा को अपने मुख्य अनाज के रूप में अपनाकर हम शुष्क क्षेत्रों में मेहनती किसानों और उनके परिवारों के आर्थिक जीवन को समृद्ध बना सकते हैं, क्योंकि इन क्षेत्रों में मोटे अनाज की फसल आसानी से उगाई जा सकती है। 

मोटे अनाज की वापसी हमारे घरों में हो, इसके लिए सरकार भी मुहिम चला रही है। डॉ सुमेर पाल सिंह भी मानते हैं कि “पोषक अनाज की पौष्टिकता के विषय में हमें लोगों को अवगत करना होगा ताकि इनकी माँग बढ़े। इससे इनका उत्पादन बढ़ेगा, ख़रीद और बिक्री बढ़ेगी, और सीधा मुनाफ़ा किसानों को होगा। वर्ष 2018 को राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष और 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। ये सरकार द्वारा पोषक अनाज को अधिक लोकप्रिय बनाने की ओर उठाए गए सराहनीय कदम हैं।” 

इरादा साफ़ है, लोगों को जागरुक करना है कि वो मोटे अनाज से न सिर्फ़ घरेलू भोजन, बल्कि अपने स्वादानुसार आधुनिक क़िस्म के स्नैक्स भी बना सकते हैं। जैसे ही लोग इसका इस्तेमाल शुरु करेंगे, खपत बढ़ेगी, बिक्री बढ़ेगी, माँग बढ़ेगी और मोटा अनाज उगाने वाले किसानों को फ़ायदा भी होगा। मोटे अनाज की बढ़ती मांग, कृषि शोधकर्ताओं को उच्च गुणवत्ता वाले बीज बनाने पर ध्यान देने के लिए प्रोत्साहित करेगा। ये किसानों को चावल या गेहूं के उत्पादन के बजाय बाजरे के उत्पादन पर ज़्यादा ध्यान देने के लिए भी प्रेरित करेगा। इससे हमारा, किसानों का, उनके परिवार का और पर्यावरण का फ़ायदा होगा। 

सतत विकास लक्ष्य पाने के लिए है ज़रूरी 

मोटे अनाज की खेती करने से संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास के लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिल सकती है। इन लक्ष्यों में से एक लक्ष्य है भुखमरी को ख़त्म करना। ये तभी मुमकिन है जब सभी को दो वक़्त का खाना मिल सके। इसमें मोटा अनाज सहायक साबित हो सकता है। इसे उगाना आसान है, इसकी ज़रूरतें कम हैं, इसे सहेज कर रखना आसान है, इसकी अच्छी क़ीमत मिल सकती है। ऐसे बहुत सारे पहलू हैं जिन पर सरकार लगातार काम कर रही है। 

बढ़ते कुपोषण को देखते हुए केन्द्र सरकार की तरफ से भी किसानों को मोटे अनाज की खेती करने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके अलावा मोटा अनाज पोषण को बेहतर करने में भी अच्छी भूमिका निभा सकता है। मोटे अनाज में मिनरल, विटामिन, एंजाइम और इनसॉल्युबल फाइबर ज्यादा मात्रा में पाए जाते हैं। इसके साथ ही मोटे अनाज में मैक्रो और माइक्रो जैसे पोषक तत्व भी मौजूद होते हैं। इस तरह मोटे अनाज को खाने से शरीर को ज़रूरी पोषक तत्व मिलते हैं। साथ ही ये कुपोषण से भी बचाता है। मोटा अनाज खाने से मोटापा, वजन, पाचन, खून की कमी, पेट की तकलीफ़ आदि दूर करने में मदद मिलती है। 

दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है – जलवायु परिवर्तन। जानकार मानते हैं कि चावल की तुलना में रागी, मक्का, बाजरा और ज्वार की फसलें जलवायु परिवर्तन के प्रति कम संवेदनशील होती हैं। यानी जलवायु परिवर्तन का चावल या गेहूं की फसल के मुक़ाबले मोटे अनाज की फसल पर कम असर होता है। जलवायु परिवर्तन की वजह से अन्य अनाज की तुलना में मोटे अनाज की पैदावार में बहुत कम गिरावट आती है। ख़ुद किसान भी मानते हैं कि मोटा अनाज उगाते हुए उन्हें बारिश, सूखा, जलवायु आदि के बारे में कम चिंता करनी पड़ती है। जबकि जो किसान चावल, गेहूं आदि फसल उगाते हैं वो बारिश, सूखा, जलवायु को लेकर ज़्यादा चिंतित रहते हैं। 

यानी कुपोषण की चुनौती को दूर करने, खाद्य आपूर्ति की समस्या से निपटने, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और खाद्यान्न की कीमत तय करने में मोटे अनाज की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। इतना ही नहीं, मोटे अनाज को स्कूलों में दी जाने वाली मिड-डे मील में भी शामिल किया जा रहा है। 

मोटे अनाज का बाज़ारीकरण है ज़रूरी 

इस दिशा में सरकार की भूमिका काफ़ी अहम हो जाती है। 

  • अब सरकारी खरीद में मोटे अनाज की हिस्सेदारी और न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाना होगा। 
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से आम आदमी तक गेहूं और चावल की तुलना में मोटे अनाज की ज़्यादा आपूर्ति सुनिश्चित करनी होगी।  
  • इनके निर्यात को बढ़ाने के लिए भी कोशिशें करनी होगी। 
  • देश के कृषि अनुसंधान संस्थानों द्वारा मोटे अनाजों पर लगातार शोध बढ़ाना होगा। 
  • ज़्यादा उपज के लिए बायो-फर्टिलाइजर्स का इस्तेमाल करना होगा। 
  • मोटे अनाज को लोकप्रिय बनाने के लिए इनसे स्वादिष्ट स्नैक्स बनाने की दिशा में भी काम करना होगा। 

ऐसी कोशिशों से मोटे अनाज के बाजार का विस्तार होगा और किसान इनकी खेती के लिए प्रोत्साहित होंगे। डॉ. बी दयाकर राव ने हमारा ध्यान इन ओर भी खींचा कि “जो उद्यमी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मोटे अनाज का व्यवसाय स्थापित करना चाहते हैं, उनके लिए नए और अच्छे अवसर मौजूद हैं। ये भारतीय किसानों यानी उत्पादकों को उपभोक्ता के रूप में अपना हिस्सा बढ़ाने का अवसर भी देते हैं। बढ़ी हुई आय और आजीविका के अवसर उनके जीवन स्तर में सुधार ला सकते हैं।” 

देखना ये है कि वर्ष 2023 के आख़िर तक मोटा अनाज के उत्पादन, वितरण, किसानों की स्थिति और इससे होने वाले फ़ायदों में क्या और कितना बदलाव आता है। 2023 के अंत में इस विषय पर आँकलन करने की ज़रूरत है, लेकिन इतना ध्यान ज़रूर रखना ही कि इन कोशिशों को किसी भी सूरत में कम नहीं होने दिया जाए। 

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