(नोट – डस्टबिन, सड़क और खम्बे की बातचीत हो रही है।)
डस्टबिन सड़क किनारे, खम्भे के पास खड़ा गुनगुना रहा है।
ला… ला… ला ला ला… ला… ला… ला ला ला…
खम्भा बोला, अरे तुम तो बहुत खुश लग रहे हो, क्या बात है?
डस्टबिन ने अकड़ कर जवाब दिया – “बस, ज़िंदगी के मज़े ले रहा हूं। किसी को मुझसे कोई काम ही नहीं है।”
खम्भे ने दर्द भरी आवाज़ में कहा – सही कह रहे हो भाई, अब देखो न… तुम यहीं हो लेकिन ये महाशय हमारे ऊपर पान की पीक थूक कर चले गए…
सड़क से खम्भे का दर्द देखा नहीं गया, तुरंत बोला – तुम अकेले नहीं हो भाई, छींटें तो हम पर भी आए हैं। अभी परसों ही तुम पर सफ़ेद पेंट किया गया था, देखो कैसे लाल हो गए हो।
खम्भा उदास हो गया तो डस्टबिन ने हंसते हुए कहा, अरे तो परेशान क्यों हो रहे हो, अभी वो आंटी आ रही हैं, उनके हाथ में केले का छिलका है। देखते हैं, वो क्या करती हैं?
अचानक सड़क ज़ोर से चिल्लाया – अरे, उन्होंने तो मुझ पर ही केले का छिलका फेंक दिया।
लेकिन तभी किसी ने सड़क से छिलका उठाकर डस्टबिन में फेंका।
डस्टबिन ने कहा – लो खुश हो जाओ तुम दोनों, किसी ने तो मेरा ध्यान रखा। मेरा सही इस्तेमाल किया।
सड़क ने ताली बजाते हुए, उस बच्चे की तारीफ़ की। बड़े-बड़े जो न समझ सके, वो बच्चों ने समझ लिया। ये मामूली बात नहीं है। माँ ने केले का छिलका सड़क पर फेंका और बच्चे ने उठाकर डस्टबिन में डाल दिया। एक तरह से माँ को बच्चे से सीख मिल गई।
(नोट – लाउड स्पीकर का बोलता हुआ चित्र बनाकर इन लाइनों को अलग से बॉक्स में रखें)
अचानक लाउडस्पीकर से आवाज़ आई।
हमारे देश में हर साल राष्ट्रीय स्वच्छता दिवस मनाया जाता है। इसके लिए 30 जनवरी को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि का दिन चुना गया है। स्वच्छ भारत मिशन एक देशव्यापी अभियान है, जो 2014 में भारत सरकार द्वारा खुले में शौच को खत्म करने और सॉलिड वेस्ट प्रबंधन में सुधार करने के लिए शुरू किया गया। इसका मक़सद स्वच्छता और सफाई को हमारे रोज की दिनचर्या में शामिल कराना है।
डस्टबिन ने चारों तरफ नज़र घुमाई, कान पर ज़ोर डाला और जानने की कोशिश की – अरे, ये आवाज़ कहां से आ रही है।
लाउडस्पीकर ने तुरंत अपने कंधे चौड़े किए और बोला, हम यहाँ हैं। ये आवाज़ स्कूल के ग्राउंड से आ रही है। वो देखो वहां राष्ट्रीय स्वच्छता दिवस मनाया जा रहा है।
सड़क बोला – अब ये क्या बला है भइया? बच्चे लाइन लगाकर खड़े हैं, कुछ झाड़ू लगा रहे हैं। कुछ कूड़ा उठा रहे हैं। ये हो क्या रहा है?
लाउडस्पीकर से फिर आवाज़ आई।
महात्मा गांधी ने कहा था “स्वच्छता स्वतंत्रता से ज़्यादा ज़रूरी है।” उन्होंने सफाई और स्वच्छता को गांधीवादी जीवन जीने का अभिन्न अंग बनाया। उनका सपना था सभी के लिए संपूर्ण स्वच्छता।
डस्टबिन की आँखें भर आईं। गांधी जी हमारे बारे में कितना अच्छा सोचते थे। हमारा कितना ख़्याल रखते थे। और आज देखो कोई हमारा सही इस्तेमाल ही नहीं करता है।
खम्भा बोला, ऐसा नहीं है। देखो ये बच्चा तो हमारी ही तरफ़ आ रहा है। बच्चे ने आकर डस्टबिन में कूड़ा डाला और पास ही लगे नल से हाथ धोएँ।
नल ने अपने डस्टबिन की तरफ़ हाथ बढ़ाए और बोला -देखा , इस बच्चे के तुम्हारी कितनी कद्र है। वैसे स्वच्छता का एक हिस्सा मुझसे भी जुड़ा है। क्या कहते हो दोस्तों?
डस्टबिन ने नल की बात पर हामी भरी और कहा, बिल्कुल। अब देखो न, खम्भे को अपने लाल दाग हटाने होंगे तो तुम्हारी ज़रूरत तो पड़ेगी ही। सड़क को और मुझे धोने के लिए भी तुम्हारी ज़रूरत होगी। तुम तो सर्वोपरि हो।
नल ने हाथ जोड़ लिए और अपनी मजबूरी भी बताई – मेरे पास अगर साफ़ पानी का साधन हो तो ही मैं तुम सभी को साफ़ पानी दे पाऊँगा। लेकिन साफ़ पानी के लिए भी बहुत जुगत लगानी पड़ती है। ये सब नदियों की सफ़ाई से जुड़ा है।
इतने में लाउडस्पीकर का ध्यान आसमान की तरफ़ गया जहां धुएँ का ग़ुबार उठ रहा था। वो दुखी होकर बोला – तो अब इसी की कमी रह गई थी। ये फ़ैक्ट्री और इससे निकलने वाला धुआँ।
सड़क बोला तो इसमें कौन सी बड़ी बात है, मुझ पर दिन रात दौड़ते वाहन भी तो यही करते हैं। अब लोगों को कौन और कैसे समझाए ?
खम्भा बोला – भाई सीख तो सदियों से दी जा रही है। अब देखो न, अलग-अलग तरीक़े से लोगों को स्वच्छता का महत्व समझाया जाता है, स्वच्छ रहने के तरीक़े बताए जाते हैं, लेकिन मजाल है कि कोई सुन ले या मान ले।
लाउडस्पीकर ने कहा – ऐसा नहीं है भाई। बहुत सारे लोग स्वच्छता को लेकर जागरुक हो गए हैं। अब बच्चों को ही देख लो, बग़ल में कैंटीन से कुछ भी खाने की चीज़ लेते हैं तो रैपर या झूठी प्लेट डस्टबिन में फेंकते हैं।
डस्टबिन ने बात आगे बढ़ाई और बताया कि कई बच्चे तो अगर खाते-खाते इस तरफ़ आ जाएँ तो मुझमें ही कूड़ा फेंकते हैं, न कि इधर-उधर।
सड़क ने याद दिलाया कि कल ज्योत्सना मैडम जब यहाँ से गुज़री थी तो देखा था तुम लोगों ने कैसे मेरे पास पड़े काग़ज़ के गोले को उठाकर डस्टबिन में फेंका था।
डस्टबिन ने कहा – हाँ भाई बिल्कुल सही। लेकिन मैं एक और दिन की बात बताऊँ, जब सड़क और खम्भा सो रहे थे, तब शाम को यहाँ दीवार के बाहर चार-पांच लोग खड़े होकर बातें कर रहे थे, खा पी रहे थे और कूड़ा फैला रहे थे। तभी उनमें से एक ने समझाने की कोशिश की कि ऐसे कूड़ा नहीं फैलाना चाहिए। तो बाक़ी दोस्त उस पर हंसने लगे और बोला कि किसी एक के नहीं करने से क्या बदल जाएगा।
खम्भे को ग़ुस्सा आ गया, बोला – यही तो समस्या है। हर किसी को सफ़ाई करने के लिए दूसरों के हाथ चाहिए। ख़ुद कुछ नहीं करना चाहते हैं। ये लोग भूल जाते हैं कि बूंद-बूंद से सागर बनता है। वो करेंगे तो उनको देखकर दूसरे भी करेंगे।
सड़क ने खम्भे को शांत करते हुए कहा – तेरी बात तो सही है लेकिन इतना ग़ुस्सा करना ठीक नहीं है। ये सोच काफ़ी हद तक बदल गई है। तभी तो वर्ष 2022 के स्वच्छता सर्वेक्षण में इंदौर को देश का सबसे साफ़ शहर घोषित किया गया है। इंदौर के बाद गुजरात का सूरत और महाराष्ट्र के नवी मुंबई दूसरे और तीसरे सबसे स्वच्छ शहर हैं। मानता हूँ कि थोड़े-बहुत लोग अब भी बचे हैं, जिन्हें स्वच्छता का पाठ सीखना है, लेकिन चिंता मत करो, वो भी जल्दी ही समझ जाएँगे।
नल ने ज़ोर देकर कहा कि उन्हें समझना ही पड़ेगा। सफ़ाई का मतलब सिर्फ़ कूड़ा नहीं फेंकना नहीं है, बल्कि पानी यानी हमारी नदियों को साफ़ रखना भी है। इसके अलावा हर तरह का प्रदूषण रोकना भी स्वच्छता मिशन का ही हिस्सा है। साफ-सफ़ाई बहुत ज़रूरी है क्योंकि ये डेंगू, टाइफाइड, हेपेटाइटिस और मच्छर के काटने से होने वाली अन्य बीमारियों से हमें बचाता है।
खम्भा बहुत देर से सभी की बातें सुन रहा था, अब वो बोला – देखो भाइयों, स्वच्छता एक दिन का काम नहीं है। ये एक निरंतर प्रक्रिया है जो चलती रहनी चाहिए। ये एक साल की मुहिम नहीं हो सकती है, ये आजीवन करने वाला प्रण है। ये कुछ लोगों का काम भी नहीं है, बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी किया जाने वाला काम है जिसमें हर किसी को अपना पूरा योगदान देना होगा।
स्वच्छता का मिशन उस दिन पूरा होगा जब देश का हर बच्चा, जवान, बूढ़ा ये कहेगा –
“अब तो स्वच्छता की आदत सी हो गई है।”
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(नोट – डस्टबिन, सड़क और खम्बे की बातचीत हो रही है।)
डस्टबिन सड़क किनारे, खम्भे के पास खड़ा गुनगुना रहा है।
ला… ला… ला ला ला… ला… ला… ला ला ला…
खम्भा बोला, अरे तुम तो बहुत खुश लग रहे हो, क्या बात है?
डस्टबिन ने अकड़ कर जवाब दिया – “बस, ज़िंदगी के मज़े ले रहा हूं। किसी को मुझसे कोई काम ही नहीं है।”
खम्भे ने दर्द भरी आवाज़ में कहा – सही कह रहे हो भाई, अब देखो न… तुम यहीं हो लेकिन ये महाशय हमारे ऊपर पान की पीक थूक कर चले गए…
सड़क से खम्भे का दर्द देखा नहीं गया, तुरंत बोला – तुम अकेले नहीं हो भाई, छींटें तो हम पर भी आए हैं। अभी परसों ही तुम पर सफ़ेद पेंट किया गया था, देखो कैसे लाल हो गए हो।
खम्भा उदास हो गया तो डस्टबिन ने हंसते हुए कहा, अरे तो परेशान क्यों हो रहे हो, अभी वो आंटी आ रही हैं, उनके हाथ में केले का छिलका है। देखते हैं, वो क्या करती हैं?
अचानक सड़क ज़ोर से चिल्लाया – अरे, उन्होंने तो मुझ पर ही केले का छिलका फेंक दिया।
लेकिन तभी किसी ने सड़क से छिलका उठाकर डस्टबिन में फेंका।
डस्टबिन ने कहा – लो खुश हो जाओ तुम दोनों, किसी ने तो मेरा ध्यान रखा। मेरा सही इस्तेमाल किया।
सड़क ने ताली बजाते हुए, उस बच्चे की तारीफ़ की। बड़े-बड़े जो न समझ सके, वो बच्चों ने समझ लिया। ये मामूली बात नहीं है। माँ ने केले का छिलका सड़क पर फेंका और बच्चे ने उठाकर डस्टबिन में डाल दिया। एक तरह से माँ को बच्चे से सीख मिल गई।
(नोट – लाउड स्पीकर का बोलता हुआ चित्र बनाकर इन लाइनों को अलग से बॉक्स में रखें)
अचानक लाउडस्पीकर से आवाज़ आई।
हमारे देश में हर साल राष्ट्रीय स्वच्छता दिवस मनाया जाता है। इसके लिए 30 जनवरी को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि का दिन चुना गया है। स्वच्छ भारत मिशन एक देशव्यापी अभियान है, जो 2014 में भारत सरकार द्वारा खुले में शौच को खत्म करने और सॉलिड वेस्ट प्रबंधन में सुधार करने के लिए शुरू किया गया। इसका मक़सद स्वच्छता और सफाई को हमारे रोज की दिनचर्या में शामिल कराना है।
डस्टबिन ने चारों तरफ नज़र घुमाई, कान पर ज़ोर डाला और जानने की कोशिश की – अरे, ये आवाज़ कहां से आ रही है।
लाउडस्पीकर ने तुरंत अपने कंधे चौड़े किए और बोला, हम यहाँ हैं। ये आवाज़ स्कूल के ग्राउंड से आ रही है। वो देखो वहां राष्ट्रीय स्वच्छता दिवस मनाया जा रहा है।
सड़क बोला – अब ये क्या बला है भइया? बच्चे लाइन लगाकर खड़े हैं, कुछ झाड़ू लगा रहे हैं। कुछ कूड़ा उठा रहे हैं। ये हो क्या रहा है?
लाउडस्पीकर से फिर आवाज़ आई।
महात्मा गांधी ने कहा था “स्वच्छता स्वतंत्रता से ज़्यादा ज़रूरी है।” उन्होंने सफाई और स्वच्छता को गांधीवादी जीवन जीने का अभिन्न अंग बनाया। उनका सपना था सभी के लिए संपूर्ण स्वच्छता।
डस्टबिन की आँखें भर आईं। गांधी जी हमारे बारे में कितना अच्छा सोचते थे। हमारा कितना ख़्याल रखते थे। और आज देखो कोई हमारा सही इस्तेमाल ही नहीं करता है।
खम्भा बोला, ऐसा नहीं है। देखो ये बच्चा तो हमारी ही तरफ़ आ रहा है। बच्चे ने आकर डस्टबिन में कूड़ा डाला और पास ही लगे नल से हाथ धोएँ।
नल ने अपने डस्टबिन की तरफ़ हाथ बढ़ाए और बोला -देखा , इस बच्चे के तुम्हारी कितनी कद्र है। वैसे स्वच्छता का एक हिस्सा मुझसे भी जुड़ा है। क्या कहते हो दोस्तों?
डस्टबिन ने नल की बात पर हामी भरी और कहा, बिल्कुल। अब देखो न, खम्भे को अपने लाल दाग हटाने होंगे तो तुम्हारी ज़रूरत तो पड़ेगी ही। सड़क को और मुझे धोने के लिए भी तुम्हारी ज़रूरत होगी। तुम तो सर्वोपरि हो।
नल ने हाथ जोड़ लिए और अपनी मजबूरी भी बताई – मेरे पास अगर साफ़ पानी का साधन हो तो ही मैं तुम सभी को साफ़ पानी दे पाऊँगा। लेकिन साफ़ पानी के लिए भी बहुत जुगत लगानी पड़ती है। ये सब नदियों की सफ़ाई से जुड़ा है।
इतने में लाउडस्पीकर का ध्यान आसमान की तरफ़ गया जहां धुएँ का ग़ुबार उठ रहा था। वो दुखी होकर बोला – तो अब इसी की कमी रह गई थी। ये फ़ैक्ट्री और इससे निकलने वाला धुआँ।
सड़क बोला तो इसमें कौन सी बड़ी बात है, मुझ पर दिन रात दौड़ते वाहन भी तो यही करते हैं। अब लोगों को कौन और कैसे समझाए ?
खम्भा बोला – भाई सीख तो सदियों से दी जा रही है। अब देखो न, अलग-अलग तरीक़े से लोगों को स्वच्छता का महत्व समझाया जाता है, स्वच्छ रहने के तरीक़े बताए जाते हैं, लेकिन मजाल है कि कोई सुन ले या मान ले।
लाउडस्पीकर ने कहा – ऐसा नहीं है भाई। बहुत सारे लोग स्वच्छता को लेकर जागरुक हो गए हैं। अब बच्चों को ही देख लो, बग़ल में कैंटीन से कुछ भी खाने की चीज़ लेते हैं तो रैपर या झूठी प्लेट डस्टबिन में फेंकते हैं।
डस्टबिन ने बात आगे बढ़ाई और बताया कि कई बच्चे तो अगर खाते-खाते इस तरफ़ आ जाएँ तो मुझमें ही कूड़ा फेंकते हैं, न कि इधर-उधर।
सड़क ने याद दिलाया कि कल ज्योत्सना मैडम जब यहाँ से गुज़री थी तो देखा था तुम लोगों ने कैसे मेरे पास पड़े काग़ज़ के गोले को उठाकर डस्टबिन में फेंका था।
डस्टबिन ने कहा – हाँ भाई बिल्कुल सही। लेकिन मैं एक और दिन की बात बताऊँ, जब सड़क और खम्भा सो रहे थे, तब शाम को यहाँ दीवार के बाहर चार-पांच लोग खड़े होकर बातें कर रहे थे, खा पी रहे थे और कूड़ा फैला रहे थे। तभी उनमें से एक ने समझाने की कोशिश की कि ऐसे कूड़ा नहीं फैलाना चाहिए। तो बाक़ी दोस्त उस पर हंसने लगे और बोला कि किसी एक के नहीं करने से क्या बदल जाएगा।
खम्भे को ग़ुस्सा आ गया, बोला – यही तो समस्या है। हर किसी को सफ़ाई करने के लिए दूसरों के हाथ चाहिए। ख़ुद कुछ नहीं करना चाहते हैं। ये लोग भूल जाते हैं कि बूंद-बूंद से सागर बनता है। वो करेंगे तो उनको देखकर दूसरे भी करेंगे।
सड़क ने खम्भे को शांत करते हुए कहा – तेरी बात तो सही है लेकिन इतना ग़ुस्सा करना ठीक नहीं है। ये सोच काफ़ी हद तक बदल गई है। तभी तो वर्ष 2022 के स्वच्छता सर्वेक्षण में इंदौर को देश का सबसे साफ़ शहर घोषित किया गया है। इंदौर के बाद गुजरात का सूरत और महाराष्ट्र के नवी मुंबई दूसरे और तीसरे सबसे स्वच्छ शहर हैं। मानता हूँ कि थोड़े-बहुत लोग अब भी बचे हैं, जिन्हें स्वच्छता का पाठ सीखना है, लेकिन चिंता मत करो, वो भी जल्दी ही समझ जाएँगे।
नल ने ज़ोर देकर कहा कि उन्हें समझना ही पड़ेगा। सफ़ाई का मतलब सिर्फ़ कूड़ा नहीं फेंकना नहीं है, बल्कि पानी यानी हमारी नदियों को साफ़ रखना भी है। इसके अलावा हर तरह का प्रदूषण रोकना भी स्वच्छता मिशन का ही हिस्सा है। साफ-सफ़ाई बहुत ज़रूरी है क्योंकि ये डेंगू, टाइफाइड, हेपेटाइटिस और मच्छर के काटने से होने वाली अन्य बीमारियों से हमें बचाता है।
खम्भा बहुत देर से सभी की बातें सुन रहा था, अब वो बोला – देखो भाइयों, स्वच्छता एक दिन का काम नहीं है। ये एक निरंतर प्रक्रिया है जो चलती रहनी चाहिए। ये एक साल की मुहिम नहीं हो सकती है, ये आजीवन करने वाला प्रण है। ये कुछ लोगों का काम भी नहीं है, बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी किया जाने वाला काम है जिसमें हर किसी को अपना पूरा योगदान देना होगा।
स्वच्छता का मिशन उस दिन पूरा होगा जब देश का हर बच्चा, जवान, बूढ़ा ये कहेगा –
“अब तो स्वच्छता की आदत सी हो गई है।”
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