Note : This story was published in prestigious Bal Bharati’ magazine for children in October 2022.
उफ़्फ़ ! बग़ल में अस्पताल हो तो पूरे दिन बस एंबुलेंस की आवाज़ ही सुनाई देती है… घर की चौदहवीं मंज़िल की बालकनी में खड़ी 12 वर्ष की चंद्रिका ने अपने बड़े भाई अंकुश से कहा… एंबुलेंस की आवाज़ का मतलब है कि किसी बीमार को समय रहते अस्पताल पहुँचाया जा रहा है… और अस्पताल में डॉक्टर्स उसको सही इलाज मिल सकेगा… अंकुश ने बड़े भाई होने का फ़र्ज़ निभाया और चंद्रिका का मन हल्का करने की कोशिश की…
चंद्रिका ने थोड़ी राहत भरी आवाज़ में कहा – हाँ, ये तो है… लेकिन फिर चिंता भरे लहजे में बताया कि कल ही मैंने मम्मी और सरिता आंटी को बात करते सुना कि उनके किसी दूर के रिश्तेदार का एक्सीडेंट हो गया था… और समय पर अस्पताल पहुँचने के बावजूद उनके इलाज में दिक़्क़तें आईं क्योंकि उनके ब्लड ग्रुप का खून अस्पताल में था ही नहीं…
मम्मी ने तुरंत बात सँभाली और बच्चों को समझाया… इसलिए तो आज शाम मैं और पापा रक्तदान करने जा रहे हैं… अंकुश तुरंत बोला… हमारी सोसायटी में राष्ट्रीय स्वैच्छिक रक्तदान दिवस के मौक़े पर जो रक्त दान शिविर लगा है, वहीं जाएँगे न आप लोग…
पापा ने अंकुश की पीठ थपथपाई… बहुत अच्छे, तुम्हें सब पता होता कि सोसायटी में क्या चल रहा है… ये दिन वैसे तो एक अक्टूबर को आता है… लेकिन रक्त दान शिविर पूरे महीने चलेगा… अंकुश ने पापा को बताया कि रक्तदान शिविर में जो भी लोग रक्तदान कर रहे हैं, उन्हें अच्छा-अच्छा खाने को दिया जा रहा है… जैसे जूस, ग्लूकोज़, बिस्किट्स और तरह तरह के फल… यहाँ तक कि आस-पास की सोसायटी के लोगों को लाने के लिए शटल सर्विस का इंतज़ाम भी किया गया है…
बहुत बढ़िया… अब इसकी ज़रूरत तो तुम दोनों समझ ही रहे हो… लेकिन ज़रूरी है कि अपने आस-पास इसे लेकर जागरुकता फैलाई जाए… अंकुश ने पापा को बताया कि स्कूल में तो हमें इसके बारे में पहले ही बता दिया गया था… 1 अक्टूबर 1975 को पहली बार इंडियन सोसायटी ऑफ ब्लड ट्रॉसफ्यूजन एण्ड इम्यूनोहैमेटोलॉजी ने राष्ट्रीय स्वैच्छिक रक्तदान दिवस की शुरुआत की थी…
चंद्रिका का मन नहीं माना… उसने कहा – लेकिन रक्तदान करता कौन है… मैंने तो कभी नहीं सुना… और जब कोई बीमारी नहीं है तो बिना बात के सूई क्यों लगानी… कितना दर्द होता है…
पापा ने चंद्रिका को प्यार से समझाया कि दर्द से ज़्यादा इस बात का सुकून होता है कि आपके रक्तदान से किसी को जीवनदान मिल सकेगा… वैसे अभी तुम छोटी हो, इसलिए रक्तदान नहीं कर सकती हो… जब बड़ी होगी, तो सूई का डर नहीं रक्तदान के जज़्बे को ज़रूर समझोगी… देश का नागरिक होने के नाते ये हमारी ज़िम्मेदारी है कि देश के सभी ब्लड बैंक हमेशा भरे रहे… लेकिन हमारे देश में हर साल जितना भी रक्तदान होता है उससे थोड़ी ज़्यादा की ही ज़रूरत है…
तो क्या कोई भी जाकर रक्तदान कर सकता है ? चंद्रिका ने उत्सुकता के साथ पूछा… इस पर मम्मी ने उसे बताया कि कोई भी स्वस्थ व्यक्ति, पुरुष और महिला दोनों, रक्तदान कर सकते हैं। पुरुष हर तीन महीने में एक बार रक्तदान कर सकते हैं जबकि महिलाएँ हर चार महीने में रक्तदान कर सकती हैं। बस कुछ बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है… जैसे – रक्तदान करने वाले व्यक्ति की आयु 18 से 65 वर्ष के बीच हो वज़न 45 किलोग्राम से कम नहीं हो तापमान सामान्य हो हीमोग्लोबिन 12.5 ग्राम से कम नहीं हो पिछले 12 महीने में कोई टैटू / एक्यूपंक्चर नहीं करवाया हो किसी भी प्रकार का कैंसर नहीं हो मिर्गी, अस्थमा, ब्लड प्रेशर, थैलेसीमिया, सिकल सेल एनीमिया, पॉलीसिथेमिया जैसी बीमारियाँ नहीं हो कुछ दवाइयाँ नहीं खानी चाहिए, और अगर आप ऐसी दवाइयाँ खा रहे हैं तो रक्तदान नहीं करना चाहिए हेपेटाइटिस बी, सी, क्षय रोग, कुष्ठ, एचआईवी नहीं हो हृदय रोग नहीं हो स्थानीय क्षेत्रों में रहने पर पिछले 3 महीनों या 3 वर्षों में मलेरिया का इलाज नहीं कराया हो प्रसव कम से कम एक साल पहले हुआ हो और स्तनपान बंद कर दिया हो पिछले 15 दिनों में हैजा, टाइफाइड, डिप्थीरिया, टेटनस, प्लेग, गैमाग्लोबुलिन और पिछले 1 साल में रेबीज़ का वैक्सीन नहीं लगा हो
लेकिन किसी एक व्यक्ति के रक्तदान नहीं करने से क्या बदल जाएगा? चंद्रिका के मन ने मासूम सा सवाल पूछा… मम्मी ने उसे समझाया कि कई बार एक व्यक्ति का रक्तदान, तीन ज़िंदगियाँ बचा सकता है… लेकिन चंद्रिका के मन में सवालों की लंबी लिस्ट थी… मम्मी की बात ख़त्म होते है चंद्रिका ने तुरंत दूसरा सवाल पूछा – कैसे पता चलता है कि कौन से ब्लड ग्रुप का खून कहां मिलेगा ? कैसे मिलेगा? इस सवाल को पापा ने पकड़ा और बच्चों को समझाने लगे – ये सारे रिकॉर्ड अस्पतालों और ब्लड बैंक के पास होते हैं… आपको डॉक्टर की पर्ची लेकर ब्लड बैंक जाना है जिसमें ये लिखा होगा कि कौन से ब्लड ग्रुप का कितने यूनिट खून की ज़रूरत है… अगर ब्लड बैंक में उस ब्लड ग्रुप का खून है तो वो आपको मिल जाएगा…
इसके अलावा साल 2016 में सरकार ने ई-रक्तकोश की पहल की थी… ये राज्य के सभी ब्लड बैंकों का एक नेटवर्क है… देश के किसी भी राज्य और जिले के ब्लड बैंक में खून है या नहीं, इसकी जानकारी आप blood bank.nhp.gov.in पर जाकर देख सकते हैं… साथ ही पूरे देश के अस्पतालों में 2020 में पोर्टल के लिए एक मोबाइल एप्लिकेशन लॉन्च किया गया था…
इस बार सवाल पूछने का ज़िम्मा अंकुश ने उठाया – जब हम अपनी मर्ज़ी से रक्तदान करते हैं तो ये फ़्री में ही लोगों को दिया जाता है? ये बात सही है कि ब्लड बैंक को मुफ्त में खून मिलता है… लेकिन खून को टेस्ट करने, स्टोर करने और उसके ट्रांसपोर्टेशन में काफी पैसा खर्च होता है… इसके अलावा ब्लड बैंक और वहां के स्टाफ को चलाने में भी खर्चा होता है…
स्कूल में मैडम बताती हैं कि खून हमारे शरीर में होता है तो ख़ुद को साफ़ करता रहता है… लेकिन ब्लड बैंक में खून कैसे साफ़ रहता है? मेरा मतलब है कि खून को बोतल में कैसे रखा जाता है… जिससे कि वो ख़राब न हो, और वक़्त आने पर ज़रूरतमंद के काम आ सके? छोटी सी उम्र में इतनी बड़ी-बड़ी बातें… मैं समझाती हूं… मम्मी ने बच्चों को बताया कि किसी भी ब्लड बैंक में खून को तीन अलग-अलग हिस्सों में रखा जाता है… वो हैं रेड सेल्स, प्लेटलेट्स और प्लाज्मा… ब्लड के रेड सेल्स को रेफ्रिजरेटर्स में मायनस 6 डिग्री सेल्सियस पर 42 दिनों तक रखा जा सकता है… वहीं प्लेटलेट्स को एजिटेटर्स में कमरे के तापमान पर पांच दिनों के लिए रखा जाता है… खून का प्लाज्मा फ्रीजर्स में एक साल के लिए भी रखा जा सकता है…
अब समझ में आ रहा है कि रक्तदान को महादान क्यों कहा जाता है… बातों-बातों में चंद्रिका की नज़र घड़ी पर पड़ी… अब बाक़ी बातें हम रात के खाने के समय करेंगे… फ़िलहाल आप दोनों जाइए और रक्तदान करके आइए…
Note : This story was published in prestigious Bal Bharati’ magazine for children in October 2022.
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