Note : This story is published in Vigyan Prasar’s prestigious magazine DREAM 2047 (Hindi) in May 2023.
आत्मनिर्भर भारत की ऊर्जा ज़रूरत
हाल ही में भारत जनसंख्या के मामले में दुनिया का नंबर एक देश बन गया है। कुछ दिन पहले संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड पॉपुलेशन डैशबोर्ड के अनुसार भारत की आबादी 1.4286 अरब हो गई है जबकि चीन की आबादी 1.4257 अरब से कुछ ज्यादा है। यूएन के आंकड़ों के अनुसार भारत में दुनिया की सबसे युवा आबादी रहती है। भारत की आधी आबादी 30 साल से कम लोगों की है जिनकी औसत उम्र 28 वर्ष है। देश के विकास की रफ़्तार को देखते हुए इसे सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही पहलुओं पर देखा जा रहा है। फ़िलहाल हम इस मुद्दे से इतर भारत के तकनीकी विकास पर बात करेंगे। इस विकास में इस बढ़ी हुई आबादी का अहम योगदान है। साथ ही, देश में हो रहे तकनीकी विकास का फ़ायदा आबादी में गिना गया हर एक शख़्स उठा रहा है और आगे भी उठाएगा। लिहाज़ा इस विकास का महत्व कई गुना बढ़ जाता है।
एक दौर था जब मूलभूत ज़रूरतों में रोटी, कपड़ा और मकान की बात होती थी। फिर इसमें बिजली, पानी, ऊर्जा, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी ज़रूरतों को शामिल किया गया। इसके बार विज्ञान, प्रौद्योगिकी और तकनीकी विकास की लहर आई और आज का दौर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का है। वैज्ञानिक एआई को बनाने और विकसित करने में सफलताओं के साथ-साथ चुनौतियों का भी सामना कर रहे हैं। इस दौर में तकनीकी विकास अपने चरम पर है। ऐसे में कोई भी देश प्रौद्योगिकी और नई तकनीक के बूते ही किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ सकता है। भारत एक विकासशील देश है जो तेज़ी से विकसित होने की मंज़िल की तरफ़ दौड़ रहा है।
तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और जनसंख्या के साथ, ये ज़रूरी हो जाता है कि देश स्थायी ऊर्जा स्रोतों पर ध्यान दे। भारत ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में काम कर रहा है। आज भारत हर क्षेत्र में तकनीकी प्रगति का फ़ायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। तकनीकी विकास के कई आयाम हैं। इनमें से कुछ प्रमुख आयाम ऊर्जा, बुनियादी ढांचा, संचार, डिजिटल, प्रणाली, रसायन और सामग्री, भोजन और स्वास्थ्य देखभाल और एरोस्पेस हैं।
Box 1
राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस 11 मई को मनाया जाता है।
ये वो दिन है जब भारत ने राजस्थान के पोखरण में ‘ऑपरेशन शक्ति’ के तहत सफलतापूर्वक 3 परमाणु परीक्षण करके परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों के समूह में शामिल होने में सफलता पाई थी।
ऊर्जा क्षेत्र में भारत का मुक़ाम
भारत ने स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा तक, रक्षा से लेकर कृषि तक, संचार से लेकर स्पेस तक के क्षेत्र में अभूतपूर्व तरक्की की है। तेज़ी से शहरीकरण और औद्योगीकरण की वजह से देश में ऊर्जा की मांग भी तरक़्क़ी की दर से ही बढ़ रही है। आगे बढ़ते रहने के लिए, देश को ऊर्जा सहित दूसरे क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनने पर ध्यान देना है। ऊर्जा हमारी रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने में अहम स्थान रखती है। ये अर्थव्यवस्था के विकास में ज़रूरी भूमिका निभाती है। भारत ने हाल के वर्षों में अपने ऊर्जा क्षेत्र को बढ़ाने में अच्छी प्रगति की है, लेकिन अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है। ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए देश को नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों और नवीन ऊर्जा समाधानों पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
ऊर्जा का सबसे आसान स्त्रोत है कोयला। वैश्विक स्तर पर कोयले को पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन माना गया है। भारत कोयले का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। साथ ही भारत दुनिया में ऊर्जा के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक है। देश के ऊर्जा मिश्रण में कोयला सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया जाता है जिसका आधे से ज़्यादा हिस्सा बिजली बनाने के काम आता है। इसलिए, भारत जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता कम करने और अपने जलवायु लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए धीरे-धीरे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों, जैसे जैव, पवन और सौर ऊर्जा की तरफ़ बढ़ रहा है।
सरकार ने भारत में नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं, जिनमें राष्ट्रीय सौर मिशन, राष्ट्रीय पवन ऊर्जा मिशन और राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति शामिल हैं। इसमें वर्ष 2030 तक 450 GW नवीकरणीय ऊर्जा प्राप्त करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य भी तय किया है। इसमें 280 GW सौर ऊर्जा, 140 GW पवन ऊर्जा और 10 GW जैव-ऊर्जा शामिल है।
वर्ष 2020 में, भारत सरकार ने घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और आयात पर देश की निर्भरता को कम करने के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान की घोषणा की। इस पहल में अक्षय ऊर्जा के उत्पादन और उपयोग को बढ़ावा देने और भारत में एक आत्मनिर्भर ऊर्जा क्षेत्र विकसित करने के लिए कई साधन शामिल हैं। अक्षय ऊर्जा वर्तमान में भारत की कुल स्थापित बिजली क्षमता का लगभग 30% है। इसके अलावा सरकार के कई और कार्यक्रम भी चल रहे हैं।
सौर ऊर्जा
प्रधानमंत्री ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान का मक़सद किसानों को सिंचाई और दूसरी कृषि-आधारित गतिविधियों के लिए बिजली का एक स्रोत देना है। इस योजना के तहत हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने और ऊर्जा के गैर-नवीकरणीय स्रोतों पर निर्भरता कम करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में सौर पंप स्थापित किए जा रहे हैं। इतना ही नहीं, अतिरिक्त ऊर्जा के ग्रिड को बेचने का विकल्प भी सरकार देती है।
भारत के कई राज्य रूफटॉप सौर ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा दे रहे हैं। इसमें घरों और व्यावसायिक भवनों की छतों पर सोलर पैनल लगाना शामिल है, जो उनकी ऊर्जा की ज़रूरतों के बड़े हिस्से को पूरा कर सकते हैं। सोलर प्लांट्स की लिस्ट में फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट्स, ऑफशोर विंड एनर्जी और वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट्स जैसी कई नवीन तकनीकों को विकसित कर शहरों में लगाया गया है। इससे पर्यावरण को बेहतर करने में मदद मिलती है और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन भी कम होता है।
पवन ऊर्जा
पवन ऊर्जा एक और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र है जिस पर भारत ध्यान केंद्रित कर रहा है। भारत दुनिया भार में चौथा सबसे बड़ा पवन ऊर्जा उत्पादक है। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) के अनुसार, सितंबर 2022 तक भारत में पवन ऊर्जा की कुल स्थापित क्षमता 41.2 GW है। जनवरी से अक्टूबर 2022 के दौरान 1.76 GW की कुल क्षमता बढ़ी है। भारत में पवन ऊर्जा पैदा करने के लिए 800 से ज़्यादा ऊर्जा संयंत्र मौजूद हैं। इतना ही नहीं, भारत में पवन ऊर्जा के क्षेत्र में 13.4 GW की परियोजनाओं को वर्ष 2024 तक स्थापित करने की उम्मीद है।
वर्ष 2022 में 3.2 GW, वर्ष 2023 में 4.1 GW, वर्ष 2024 में पवन ऊर्जा 4.6 GW तक बढ़ने की उम्मीद है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ विंड एनर्जी (NIWE) की 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक तमिलनाडु भारत में पवन ऊर्जा का सबसे बड़ा उत्पादक है। सरकार इसके महत्व को समझती है और इसके फ़ायदे आम आदमी तक पहुँचाने की लगातार कोशिश कर रही है। निवेशकों को प्रोत्साहित करने के लिए और पवन ऊर्जा अपनाने को बढ़ावा देने के लिए ज़रूरी नीतियों को भी लागू किया गया है।
जैव ऊर्जा
फसल, पेड-पौधों, गोबर, मानव-मल आदि जैविक वस्तुओं (बायोमास) में मौजूद ऊर्जा को जैव ऊर्जा कहते हैं। ये कृषि और वानिकी अवशेषों से मिलती है। इससे लगभग 16,000 मेगा वाट ऊर्जा मिलने की संभावना है। भारत में जैव ईंधन की मौजूदा उपलब्धता लगभग 120-150 मिलियन मीट्रिक टन प्रतिवर्ष है।
जैव ईंधन ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत है जिसका देश के कुल ईंधन इस्तेमाल में एक-तिहाई का योगदान है। ग्रामीण परिवारों में इसकी खपत लगभग 90 प्रतिशत है। जैव ईंधन का व्यापक इस्तेमाल खाना बनाने में किया जाता है। इसमें कृषि अवशेष, लकड़ी, कोयला, सूखा गोबर आदि भी शामिल है।
जीवाश्म ईंधन की तुलना में ये बेहतर ईंधन है। वैसे जैव ईंधन के लिए नए डिज़ाइन के धुँआ रहित स्टोव का इस्तेमाल सही माना जाता है। राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम में उप-योजनाएं शामिल हैं जैसे अपशिष्ट से ऊर्जा कार्यक्रम (शहरी, औद्योगिक और कृषि अपशिष्ट/अवशेषों से ऊर्जा पर कार्यक्रम) और बायोगैस संयंत्रों को बढ़ावा देने के लिए भी कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
Box item 2
विश्व स्तर पर चौथे स्थान पर है भारत
अक्षय ऊर्जा की स्थापित क्षमता (बड़े हाइड्रो सहित)
पवन ऊर्जा क्षमता
सौर ऊर्जा क्षमता
(स्त्रोत : वर्षांत समीक्षा 2022- नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय)
Box item 3
देश में 2022 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से कुल 172.72 GW बिजली की क्षमता मिल चुकी है। इसमें 119.09 GW नवीकरणीय ऊर्जा में, 46.85 GW हाइड्रो ऊर्जा और 6.78 GW की परमाणु ऊर्जा क्षमता शामिल है।
गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से कुल 42.26% ऊर्जा उत्पादन की क्षमता हासिल की जा चुकी है।
(स्त्रोत : वर्षांत समीक्षा 2022- नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय)
तेल से इलेक्ट्रिक तक का सफ़र
हमारे पास तेल और गैस के महत्वपूर्ण भंडार हैं। लेकिन इनके इस्तेमाल से प्रदूषण की समस्या बनी रहती है, फिर चाहे वो चूल्हा हो या वाहन। देश की आयातित तेल पर निर्भरता कम करने और वायु प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के अलावा, भारत हाइड्रोजन ईंधन सेल, इलेक्ट्रिक वाहनों, ऊर्जा-कुशल इमारतों और स्मार्ट ग्रिड जैसे नवीन ऊर्जा समाधानों पर भी ध्यान दे रहा है।
2018 में, सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए सब्सिडी देने के लिए फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ (हाइब्रिड एंड) इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (FAME II) योजना शुरू की। ये योजना इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने में बढ़ावा दे रही है और इलेक्ट्रिक वाहन निर्माताओं और खरीदारों को प्रोत्साहित करने के लिए भी कई योजनाएं शुरू की गई हैं। इससे इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद और चार्जिंग बुनियादी ढांचे की स्थापना के लिए वित्तीय प्रोत्साहन भी मिलता है।
देश ऊर्जा-कुशल इमारतों को बढ़ावा देने के लिए नीतियों को भी लागू कर रहा है और ऊर्जा खपत को अनुकूलित करने के लिए स्मार्ट ग्रिड की संभावना तलाश रहा है। भारत सरकार पारंपरिक बिजली संयंत्रों की दक्षता में सुधार और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए भी काम कर रही है। सरकार ने 2030 तक कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता को 33-35% तक कम करने का लक्ष्य रखा है।
इसके अलावा सरकार गैस के चूल्हे मुहैया कराने और एलपीजी पाइपलाइन बिछाकर प्रदूषण पर क़ाबू पाने की तरफ़ काम कर रही है। तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) भारत में ऊर्जा का अहम स्रोत बन गया है। सरकार उत्सर्जन को कम करने और ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने के लिए इसके इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही है। इतना ही नहीं, कई ऐसे प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है जिनसे भारत को ऊर्जा कुशल देश बनने में मदद मिलेगी।
Box item 4
ऊर्जा ज़रूरतें पूरी करने के लिए क्या करें ?
1. अक्षय ऊर्जा स्रोतों जैसे सौर, पवन और जल विद्युत का उपयोग बढ़ाना।
2. नई ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित करना और निवेश करना।
3. उद्योगों और घरों में ऊर्जा-कुशल प्रथाओं को बढ़ावा देना।
4. ज़्यादा परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना करना।
5. इलेक्ट्रिक वाहनों और सार्वजनिक परिवहन के उपयोग के लिए नीतियों को लागू करना।
6. ऊर्जा के कुशल वितरण और प्रबंधन के लिए स्मार्ट ग्रिड सिस्टम विकसित करना।
7. स्वच्छ और स्थायी जैव ईंधन के इस्तेमाल को बढ़ावा देना।
8. बैटरी और ईंधन सेल जैसी ऊर्जा भंडारण तकनीकों के उपयोग को बढ़ावा देना।
9. सरकारी भवनों और सुविधाओं में ऊर्जा संरक्षण उपायों को लागू करना।
10. ऊर्जा-बचत प्रथाओं को अपनाने के लिए व्यक्तियों और व्यवसायों के लिए प्रोत्साहन प्रदान करना।
ऊर्जा के क्षेत्र में तकनीकी विकास के मील के पत्थर
- एचबीजे (हजीरा-बीजापुर-जगदीशपुर) भारत की पहली क्रॉस स्टेट गैस पाइपलाइन है। ये हजीरा, गुजरात से विजयपुर, मध्य प्रदेश से होते हुए जगदीशपुर, उत्तर प्रदेश तक चलती है। ये पाइपलाइन इसके किनारे स्थित कई उद्योगों की जीवन रेखा है। ये 1987 के बाद से लगभग 3,474 किलोमीटर वाली दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे लंबी भूमिगत पाइपलाइन में से एक है। ये पाइपलाइन 6 राज्यों (एनसीटी सहित), 69 नदियों, 300 सड़कों और पूरे भारत में कई रेलवे क्रॉसिंग के साथ चलती है और गैस पाइपलाइन मार्ग के साथ कई उद्योगों का समर्थन करती है। ये परियोजना 1986 में गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (गेल) को शामिल करने के बाद शुरू की गई थी। बाद में राजस्थान, हरियाणा और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT) राज्यों में इसका विस्तार किया गया। इससे कुल ग्रिड लंबाई 3,474 किलोमीटर तक बढ़ गई। वर्ष 1998 में स्थापित इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड ने पूरे शहर में गैस ग्रिड स्थापित करने के लिए पाइपलाइन की दिल्ली शाखा का नियंत्रण ले लिया। इसकी शाखाएँ राजस्थान के कोटा, शाहजहाँपुर, बबराला और उत्तर प्रदेश की दूसरी जगहों तक है।
- पुरुलिया पंप स्टोरेज हाइडल प्रोजेक्ट एक बड़ी मशीन है जो भारत में ऊर्जा को स्टोर और इस्तेमाल करने में मदद करती है। ये दुनिया में सबसे बड़ा और भारत में पहला 900MW पंप स्टोरेज प्रोजेक्ट है। इसकी कुल संयंत्र दक्षता लगभग 78% है। ये परियोजना 2007 में पश्चिम बंगाल राज्य विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड द्वारा शुरू की गई थी। ये समय से पहले पूरी हो गई थी। इसके कई फायदे हैं, जिनमें बड़ी ऊर्जा भंडारण क्षमता और लंबे समय तक काम करने की क्षमता शामिल है। इस परियोजना का मक़सद पीक लोड के समय पर टर्बाइन के माध्यम से बिजली का उत्पादन करके लोड की मांग को पूरा करना है। इसी तरह ऑफ पीक समय में सिस्टम में मौजूद अतिरिक्त बिजली का इस्तेमाल किया जा सकता है।
- भारत बिजली लाने के लिए मजबूत विद्युत लाइनें बनाना चाहता था। उसके पास पहले से ही 400 kV तक जाने वाली लाइनें थीं, जो बहुत ज़्यादा है, लेकिन वो और भी मजबूत स्थिति बनाना चाहता था। इसलिए एक नई तरह की लाइन का परीक्षण किया गया जो 1200 kV तक जाती है। ये दुनिया में सबसे ज्यादा है। भारत ने मध्य प्रदेश के बीना में दुनिया का सबसे ऊंचा 1,200kV तक जाने वाला एसी वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइन टेस्ट स्टेशन बनाया है। स्टेशन को 2012 में कमीशन किया गया था और 2016 में इसकी पूरी क्षमता के साथ इसे तैयार किया गया। परियोजना का मक़सद भारतीय परिस्थितियों के लिए डिजाइन मापदंडों को ठीक करना है। साथ ही 1,200kV एसी उपकरण और ट्रांसमिशन लाइनों के लिए देश की विनिर्माण और परीक्षण क्षमताओं को स्थापित करना था।
- भारत में नेशनल सिंक्रोनस पावर ग्रिड अलग-अलग जगहों को जोड़ता है जहां बिजली बनाई और इस्तेमाल की जाती है। ग्रिड ने नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों के कनेक्शन की मदद से उत्पादन के दूसरे स्त्रोतों और इस्तेमाल होने वाले केंद्रों को जोड़ने का काम किया है। इससे पूरे भारत में बिजली का सही वितरण मुमकिन हो पाता है। पहले सिर्फ़ छोटी स्थानीय प्रणालियाँ थीं, लेकिन समय के साथ बड़ी व्यवस्थाएँ बनाईं गईं। ये कोशिश वर्षों चलती रही जब तक कि पूरे देश के लिए एक बड़ी प्रणाली नहीं बना दी गई। ये ऐसा है जैसे सभी छोटी प्रणालियों को एक साथ मिला कर एक बड़ी प्रणाली बनाई गई हो। अब, ये दुनिया के सबसे बड़े नेटवर्क में से एक है।
- भारत में लंबी दूरी की बल्क पॉवर ट्रांसमिशन के लिए HVDC ट्रांसमिशन तकनीक के उपयोग की अनुमति दी गई, जो पारंपरिक HVAC ट्रांसमिशन के साथ संभव नहीं था। NHVDC प्रायोगिक लाइन परियोजना ने दो राज्यों आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच अलग-अलग ऑपरेटिंग फ्रीक्वेंसी वाले बिजली हस्तांतरण की समस्या का सफलतापूर्वक समाधान किया, जो एक महत्वपूर्ण तकनीकी उपलब्धि थी। ये एक लंबी एक्सटेंशन कॉर्ड की तरह है जो कई मील तक जा सकती है। एक ही टावर पर एसी और डीसी बिजली प्रवाह की अनुमति और एक ही टावर में एसी डबल सर्किट लाइन को एसी और डीसी में परिवर्तित करने की अनुमति मिल गई।
Box item 5
तकनीकी विकास के फ़ायदे
- ज़्यादा रोजगार मिल रहे हैं
- उत्पादन व निर्यात के क्षेत्र में बढ़ोतरी हुई है
- लोगों का जीवन आसान बनाने में भी मदद मिली है
- बिजली की ज़रूरतें बेहतर तरीक़े से पूरी हो रही हैं
- नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा मिल रहा है
- देश में मानवीय जरूरतों के हिसाब से तकनीकी विकास हो रहा है
- संचार के क्षेत्र में विकास हुआ है
- कृषि की स्थिति में सुधार हुआ है
- कंप्यूटर, इंटरनेट, मोबाइल, टीवी जैसे उपकरण मिले हैं
ये सभी उदाहरण बिल्कुल सटीक और फ़ायदेमंद हैं। ऐसी कई परियोजनाएं देश के अलग-अलग हिस्सों में चल रही हैं और कई नई परियोजनाओं पर काम चल रहा है। भारत के आर्थिक विकास के लिए ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना ज़रूरी है। आत्मनिर्भर ऊर्जा के लक्ष्य को पाने के लिए, भारत को अक्षय ऊर्जा स्रोतों में निवेश जारी रखने और ऊर्जा-कुशल समाधानों को बढ़ावा देने की ज़रूरत है। ध्यान से देखें और आँकड़ों की मानें तो सरकार की कोशिशें रंग ला रही हैं। देश और दुनिया के लिए एक स्थायी भविष्य पाने की तरफ भारत का महत्वपूर्ण कदम है।
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Note : This story is published in Vigyan Prasar’s prestigious magazine DREAM 2047 (Hindi) in May 2023.
आत्मनिर्भर भारत की ऊर्जा ज़रूरत
हाल ही में भारत जनसंख्या के मामले में दुनिया का नंबर एक देश बन गया है। कुछ दिन पहले संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड पॉपुलेशन डैशबोर्ड के अनुसार भारत की आबादी 1.4286 अरब हो गई है जबकि चीन की आबादी 1.4257 अरब से कुछ ज्यादा है। यूएन के आंकड़ों के अनुसार भारत में दुनिया की सबसे युवा आबादी रहती है। भारत की आधी आबादी 30 साल से कम लोगों की है जिनकी औसत उम्र 28 वर्ष है। देश के विकास की रफ़्तार को देखते हुए इसे सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही पहलुओं पर देखा जा रहा है। फ़िलहाल हम इस मुद्दे से इतर भारत के तकनीकी विकास पर बात करेंगे। इस विकास में इस बढ़ी हुई आबादी का अहम योगदान है। साथ ही, देश में हो रहे तकनीकी विकास का फ़ायदा आबादी में गिना गया हर एक शख़्स उठा रहा है और आगे भी उठाएगा। लिहाज़ा इस विकास का महत्व कई गुना बढ़ जाता है।
एक दौर था जब मूलभूत ज़रूरतों में रोटी, कपड़ा और मकान की बात होती थी। फिर इसमें बिजली, पानी, ऊर्जा, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी ज़रूरतों को शामिल किया गया। इसके बार विज्ञान, प्रौद्योगिकी और तकनीकी विकास की लहर आई और आज का दौर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का है। वैज्ञानिक एआई को बनाने और विकसित करने में सफलताओं के साथ-साथ चुनौतियों का भी सामना कर रहे हैं। इस दौर में तकनीकी विकास अपने चरम पर है। ऐसे में कोई भी देश प्रौद्योगिकी और नई तकनीक के बूते ही किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ सकता है। भारत एक विकासशील देश है जो तेज़ी से विकसित होने की मंज़िल की तरफ़ दौड़ रहा है।
तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और जनसंख्या के साथ, ये ज़रूरी हो जाता है कि देश स्थायी ऊर्जा स्रोतों पर ध्यान दे। भारत ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में काम कर रहा है। आज भारत हर क्षेत्र में तकनीकी प्रगति का फ़ायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। तकनीकी विकास के कई आयाम हैं। इनमें से कुछ प्रमुख आयाम ऊर्जा, बुनियादी ढांचा, संचार, डिजिटल, प्रणाली, रसायन और सामग्री, भोजन और स्वास्थ्य देखभाल और एरोस्पेस हैं।
Box 1
राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस 11 मई को मनाया जाता है।
ये वो दिन है जब भारत ने राजस्थान के पोखरण में ‘ऑपरेशन शक्ति’ के तहत सफलतापूर्वक 3 परमाणु परीक्षण करके परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों के समूह में शामिल होने में सफलता पाई थी।
ऊर्जा क्षेत्र में भारत का मुक़ाम
भारत ने स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा तक, रक्षा से लेकर कृषि तक, संचार से लेकर स्पेस तक के क्षेत्र में अभूतपूर्व तरक्की की है। तेज़ी से शहरीकरण और औद्योगीकरण की वजह से देश में ऊर्जा की मांग भी तरक़्क़ी की दर से ही बढ़ रही है। आगे बढ़ते रहने के लिए, देश को ऊर्जा सहित दूसरे क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनने पर ध्यान देना है। ऊर्जा हमारी रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने में अहम स्थान रखती है। ये अर्थव्यवस्था के विकास में ज़रूरी भूमिका निभाती है। भारत ने हाल के वर्षों में अपने ऊर्जा क्षेत्र को बढ़ाने में अच्छी प्रगति की है, लेकिन अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है। ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए देश को नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों और नवीन ऊर्जा समाधानों पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
ऊर्जा का सबसे आसान स्त्रोत है कोयला। वैश्विक स्तर पर कोयले को पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन माना गया है। भारत कोयले का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। साथ ही भारत दुनिया में ऊर्जा के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक है। देश के ऊर्जा मिश्रण में कोयला सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया जाता है जिसका आधे से ज़्यादा हिस्सा बिजली बनाने के काम आता है। इसलिए, भारत जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता कम करने और अपने जलवायु लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए धीरे-धीरे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों, जैसे जैव, पवन और सौर ऊर्जा की तरफ़ बढ़ रहा है।
सरकार ने भारत में नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं, जिनमें राष्ट्रीय सौर मिशन, राष्ट्रीय पवन ऊर्जा मिशन और राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति शामिल हैं। इसमें वर्ष 2030 तक 450 GW नवीकरणीय ऊर्जा प्राप्त करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य भी तय किया है। इसमें 280 GW सौर ऊर्जा, 140 GW पवन ऊर्जा और 10 GW जैव-ऊर्जा शामिल है।
वर्ष 2020 में, भारत सरकार ने घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और आयात पर देश की निर्भरता को कम करने के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान की घोषणा की। इस पहल में अक्षय ऊर्जा के उत्पादन और उपयोग को बढ़ावा देने और भारत में एक आत्मनिर्भर ऊर्जा क्षेत्र विकसित करने के लिए कई साधन शामिल हैं। अक्षय ऊर्जा वर्तमान में भारत की कुल स्थापित बिजली क्षमता का लगभग 30% है। इसके अलावा सरकार के कई और कार्यक्रम भी चल रहे हैं।
सौर ऊर्जा
प्रधानमंत्री ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान का मक़सद किसानों को सिंचाई और दूसरी कृषि-आधारित गतिविधियों के लिए बिजली का एक स्रोत देना है। इस योजना के तहत हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने और ऊर्जा के गैर-नवीकरणीय स्रोतों पर निर्भरता कम करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में सौर पंप स्थापित किए जा रहे हैं। इतना ही नहीं, अतिरिक्त ऊर्जा के ग्रिड को बेचने का विकल्प भी सरकार देती है।
भारत के कई राज्य रूफटॉप सौर ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा दे रहे हैं। इसमें घरों और व्यावसायिक भवनों की छतों पर सोलर पैनल लगाना शामिल है, जो उनकी ऊर्जा की ज़रूरतों के बड़े हिस्से को पूरा कर सकते हैं। सोलर प्लांट्स की लिस्ट में फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट्स, ऑफशोर विंड एनर्जी और वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट्स जैसी कई नवीन तकनीकों को विकसित कर शहरों में लगाया गया है। इससे पर्यावरण को बेहतर करने में मदद मिलती है और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन भी कम होता है।
पवन ऊर्जा
पवन ऊर्जा एक और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र है जिस पर भारत ध्यान केंद्रित कर रहा है। भारत दुनिया भार में चौथा सबसे बड़ा पवन ऊर्जा उत्पादक है। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) के अनुसार, सितंबर 2022 तक भारत में पवन ऊर्जा की कुल स्थापित क्षमता 41.2 GW है। जनवरी से अक्टूबर 2022 के दौरान 1.76 GW की कुल क्षमता बढ़ी है। भारत में पवन ऊर्जा पैदा करने के लिए 800 से ज़्यादा ऊर्जा संयंत्र मौजूद हैं। इतना ही नहीं, भारत में पवन ऊर्जा के क्षेत्र में 13.4 GW की परियोजनाओं को वर्ष 2024 तक स्थापित करने की उम्मीद है।
वर्ष 2022 में 3.2 GW, वर्ष 2023 में 4.1 GW, वर्ष 2024 में पवन ऊर्जा 4.6 GW तक बढ़ने की उम्मीद है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ विंड एनर्जी (NIWE) की 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक तमिलनाडु भारत में पवन ऊर्जा का सबसे बड़ा उत्पादक है। सरकार इसके महत्व को समझती है और इसके फ़ायदे आम आदमी तक पहुँचाने की लगातार कोशिश कर रही है। निवेशकों को प्रोत्साहित करने के लिए और पवन ऊर्जा अपनाने को बढ़ावा देने के लिए ज़रूरी नीतियों को भी लागू किया गया है।
जैव ऊर्जा
फसल, पेड-पौधों, गोबर, मानव-मल आदि जैविक वस्तुओं (बायोमास) में मौजूद ऊर्जा को जैव ऊर्जा कहते हैं। ये कृषि और वानिकी अवशेषों से मिलती है। इससे लगभग 16,000 मेगा वाट ऊर्जा मिलने की संभावना है। भारत में जैव ईंधन की मौजूदा उपलब्धता लगभग 120-150 मिलियन मीट्रिक टन प्रतिवर्ष है।
जैव ईंधन ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत है जिसका देश के कुल ईंधन इस्तेमाल में एक-तिहाई का योगदान है। ग्रामीण परिवारों में इसकी खपत लगभग 90 प्रतिशत है। जैव ईंधन का व्यापक इस्तेमाल खाना बनाने में किया जाता है। इसमें कृषि अवशेष, लकड़ी, कोयला, सूखा गोबर आदि भी शामिल है।
जीवाश्म ईंधन की तुलना में ये बेहतर ईंधन है। वैसे जैव ईंधन के लिए नए डिज़ाइन के धुँआ रहित स्टोव का इस्तेमाल सही माना जाता है। राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम में उप-योजनाएं शामिल हैं जैसे अपशिष्ट से ऊर्जा कार्यक्रम (शहरी, औद्योगिक और कृषि अपशिष्ट/अवशेषों से ऊर्जा पर कार्यक्रम) और बायोगैस संयंत्रों को बढ़ावा देने के लिए भी कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
Box item 2
विश्व स्तर पर चौथे स्थान पर है भारत
अक्षय ऊर्जा की स्थापित क्षमता (बड़े हाइड्रो सहित)
पवन ऊर्जा क्षमता
सौर ऊर्जा क्षमता
(स्त्रोत : वर्षांत समीक्षा 2022- नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय)
Box item 3
देश में 2022 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से कुल 172.72 GW बिजली की क्षमता मिल चुकी है। इसमें 119.09 GW नवीकरणीय ऊर्जा में, 46.85 GW हाइड्रो ऊर्जा और 6.78 GW की परमाणु ऊर्जा क्षमता शामिल है।
गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से कुल 42.26% ऊर्जा उत्पादन की क्षमता हासिल की जा चुकी है।
(स्त्रोत : वर्षांत समीक्षा 2022- नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय)
तेल से इलेक्ट्रिक तक का सफ़र
हमारे पास तेल और गैस के महत्वपूर्ण भंडार हैं। लेकिन इनके इस्तेमाल से प्रदूषण की समस्या बनी रहती है, फिर चाहे वो चूल्हा हो या वाहन। देश की आयातित तेल पर निर्भरता कम करने और वायु प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के अलावा, भारत हाइड्रोजन ईंधन सेल, इलेक्ट्रिक वाहनों, ऊर्जा-कुशल इमारतों और स्मार्ट ग्रिड जैसे नवीन ऊर्जा समाधानों पर भी ध्यान दे रहा है।
2018 में, सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए सब्सिडी देने के लिए फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ (हाइब्रिड एंड) इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (FAME II) योजना शुरू की। ये योजना इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने में बढ़ावा दे रही है और इलेक्ट्रिक वाहन निर्माताओं और खरीदारों को प्रोत्साहित करने के लिए भी कई योजनाएं शुरू की गई हैं। इससे इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद और चार्जिंग बुनियादी ढांचे की स्थापना के लिए वित्तीय प्रोत्साहन भी मिलता है।
देश ऊर्जा-कुशल इमारतों को बढ़ावा देने के लिए नीतियों को भी लागू कर रहा है और ऊर्जा खपत को अनुकूलित करने के लिए स्मार्ट ग्रिड की संभावना तलाश रहा है। भारत सरकार पारंपरिक बिजली संयंत्रों की दक्षता में सुधार और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए भी काम कर रही है। सरकार ने 2030 तक कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता को 33-35% तक कम करने का लक्ष्य रखा है।
इसके अलावा सरकार गैस के चूल्हे मुहैया कराने और एलपीजी पाइपलाइन बिछाकर प्रदूषण पर क़ाबू पाने की तरफ़ काम कर रही है। तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) भारत में ऊर्जा का अहम स्रोत बन गया है। सरकार उत्सर्जन को कम करने और ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने के लिए इसके इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही है। इतना ही नहीं, कई ऐसे प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है जिनसे भारत को ऊर्जा कुशल देश बनने में मदद मिलेगी।
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ऊर्जा ज़रूरतें पूरी करने के लिए क्या करें ?
1. अक्षय ऊर्जा स्रोतों जैसे सौर, पवन और जल विद्युत का उपयोग बढ़ाना।
2. नई ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित करना और निवेश करना।
3. उद्योगों और घरों में ऊर्जा-कुशल प्रथाओं को बढ़ावा देना।
4. ज़्यादा परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना करना।
5. इलेक्ट्रिक वाहनों और सार्वजनिक परिवहन के उपयोग के लिए नीतियों को लागू करना।
6. ऊर्जा के कुशल वितरण और प्रबंधन के लिए स्मार्ट ग्रिड सिस्टम विकसित करना।
7. स्वच्छ और स्थायी जैव ईंधन के इस्तेमाल को बढ़ावा देना।
8. बैटरी और ईंधन सेल जैसी ऊर्जा भंडारण तकनीकों के उपयोग को बढ़ावा देना।
9. सरकारी भवनों और सुविधाओं में ऊर्जा संरक्षण उपायों को लागू करना।
10. ऊर्जा-बचत प्रथाओं को अपनाने के लिए व्यक्तियों और व्यवसायों के लिए प्रोत्साहन प्रदान करना।
ऊर्जा के क्षेत्र में तकनीकी विकास के मील के पत्थर
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तकनीकी विकास के फ़ायदे
ये सभी उदाहरण बिल्कुल सटीक और फ़ायदेमंद हैं। ऐसी कई परियोजनाएं देश के अलग-अलग हिस्सों में चल रही हैं और कई नई परियोजनाओं पर काम चल रहा है। भारत के आर्थिक विकास के लिए ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना ज़रूरी है। आत्मनिर्भर ऊर्जा के लक्ष्य को पाने के लिए, भारत को अक्षय ऊर्जा स्रोतों में निवेश जारी रखने और ऊर्जा-कुशल समाधानों को बढ़ावा देने की ज़रूरत है। ध्यान से देखें और आँकड़ों की मानें तो सरकार की कोशिशें रंग ला रही हैं। देश और दुनिया के लिए एक स्थायी भविष्य पाने की तरफ भारत का महत्वपूर्ण कदम है।
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