आज़ादी का दिन observations का दिन था…
पूरे दिन मेसेज फॉरवर्ड किए जाते रहे… DP बदली गईं… तिरंगे लहराए गए… पतंगें खरीदी और उड़ाई गईं… तिरंगे के रंगों से मैचिंग कपड़े पहने गए… देश पर गर्व होने के भाषण दिए गए… देश को महान बनाने की बातें की गईं…
आज़ादी से यूं प्रफुल्लित होने में कुछ बुरा नहीं है… लेकिन इस खुशी में बहुत सी नकली उम्मीदों का प्रदूषण भी है… ये ऐसी उम्मीदें हैं जिनके प्रति किसी की निजी जवाबदेही नहीं है…
सब को देश में बदलाव और क्रांति लाने के लिए किसी दूसरे व्यक्ति की ज़रूरत है… जो उम्मीदों से भरे ट्रक का ड्राइवर बन जाए… (*कौन सी उम्मीदें ? ये जानने के लिए आपको इस लेख के निचले हिस्से में जाना होगा)
उम्मीदों के संदर्भ में बुद्ध कहते हैं कि उम्मीद से इतनी समस्या नहीं है बल्कि उम्मीद से हमारा जो लगाव होता है, वो तकलीफ का कारण बनता है…
नकली उम्मीदों और उम्मीदों से लगाव को एक तरफ रख दें, और अपने-अपने हिस्से का काम कर लें… तो सही मायने में आज़ादी साकार हो जाएगी…
इस विचार से जुड़ा ‘खुराफ़ाती फॉर्मूला’ नीचे लिखा हुआ है… ये फॉर्मूला सौ फीसदी आज़ाद है…
कहते हैं उम्मीद पर दुनिया कायम है
यानी उम्मीद = दुनिया
ये भी कहा जाता है कि उम्मीद करने से दर्द मिलता है
यानी उम्मीद = दर्द
तो इस हिसाब से तो
दुनिया = दर्द
कमाल है बिल्कुल सटीक equation बन गया… दुनिया तो दर्द से भरी है ही… तभी तो आज़ादी के दिन को भी इस दर्द के साथ ही याद किया जाता है…
(*उम्मीदें = महिलाओं को सुरक्षा मिले, धर्म और जाति के नाम पर भेदभाव बंद हो जाए, मंदिर-मस्ज़िद की लड़ाई खत्म हो जाए, प्रदूषण, पर्यावरण, जनसंख्या, गरीबी, अशिक्षा… जैसी सामाजिक बुराइयां गायब हो जाएं… वगैरह…वगैरह)
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आज़ादी का दिन observations का दिन था…
पूरे दिन मेसेज फॉरवर्ड किए जाते रहे… DP बदली गईं… तिरंगे लहराए गए… पतंगें खरीदी और उड़ाई गईं… तिरंगे के रंगों से मैचिंग कपड़े पहने गए… देश पर गर्व होने के भाषण दिए गए… देश को महान बनाने की बातें की गईं…
आज़ादी से यूं प्रफुल्लित होने में कुछ बुरा नहीं है… लेकिन इस खुशी में बहुत सी नकली उम्मीदों का प्रदूषण भी है… ये ऐसी उम्मीदें हैं जिनके प्रति किसी की निजी जवाबदेही नहीं है…
सब को देश में बदलाव और क्रांति लाने के लिए किसी दूसरे व्यक्ति की ज़रूरत है… जो उम्मीदों से भरे ट्रक का ड्राइवर बन जाए… (*कौन सी उम्मीदें ? ये जानने के लिए आपको इस लेख के निचले हिस्से में जाना होगा)
उम्मीदों के संदर्भ में बुद्ध कहते हैं कि उम्मीद से इतनी समस्या नहीं है बल्कि उम्मीद से हमारा जो लगाव होता है, वो तकलीफ का कारण बनता है…
नकली उम्मीदों और उम्मीदों से लगाव को एक तरफ रख दें, और अपने-अपने हिस्से का काम कर लें… तो सही मायने में आज़ादी साकार हो जाएगी…
कमाल है बिल्कुल सटीक equation बन गया… दुनिया तो दर्द से भरी है ही… तभी तो आज़ादी के दिन को भी इस दर्द के साथ ही याद किया जाता है…
(*उम्मीदें = महिलाओं को सुरक्षा मिले, धर्म और जाति के नाम पर भेदभाव बंद हो जाए, मंदिर-मस्ज़िद की लड़ाई खत्म हो जाए, प्रदूषण, पर्यावरण, जनसंख्या, गरीबी, अशिक्षा… जैसी सामाजिक बुराइयां गायब हो जाएं… वगैरह…वगैरह)
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