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नींद भी बहुत कन्फ्यूज़ करती है

Sleeping habits can at times be very disgusting. Sometimes sleeping whole night makes you feel tired in the morning. Sometimes sleeping for a few hours makes you feel fresh and lively. What is the secret of this sleep system ? I have tried to analyse here.

Disclaimer - यहां नींद पर कोई ज्ञान नहीं दिया जाएगा… 
बस आपके मन की भावनाओं को शब्द दिए जाएंगे… 
इसलिए पढ़ने से भागे नहीं, पढ़े और फिर काम पर भागें… 

एक तरफ कहते हैं कि जहां सुकून होता है, वहीं नींद होती है…

दूसरी तरफ कहते हैं डिप्रेशन में नींद बहुत आती है…

स्कूल में पढ़ाए गए गणित के फॉर्मूले पर चलें तो…
अगर, a = b है
और b = c है
तो a = c होता है
यानी अगर सुकून a है, नींद b है और डिप्रेशन c है,
तो सुकून और डिप्रेशन एक ही बात हुई…

a (सुकून) = b (नींद आना)
और b (नींद आना) = c (डिप्रेशन),
तो a (सुकून) = c (डिप्रेशन) हुआ न…
सचमुच बहुत कन्फ्यूज़न है… सुकून = डिप्रेशन कैसे हो सकता है ?

आसानी से नींद आने का मतलब क्या होता है ?
इसके कई मतलब होते हैं… जैसे कि आप पर कोई ज़िम्मेदारी नहीं है… कोई टेंशन नहीं है… कोई काम नहीं है… आप अपने जीवन से खुश हैं, संतुष्ट हैं… आपका दिमाग शांत है… आस-पास की चीज़ों से आपको खास फर्क नहीं पड़ता है… आप अपने जीवन के हर फ्रंट पर बेहतरीन काम कर रहे हैं… आपको भविष्य की कोई चिंता नहीं है… वर्तमान की कोई फिक्र नहीं है… और बीते हुए वक्त का कोई ग़म नहीं है… लाज़मी है कि ऐसे लोगों को ज़्यादा नींद आती है…

अब जानते हैं कि नींद न आने की क्या वजह हो सकती हैं? 
ये वो लोग हैं जिन्होंने अपने जीवन में मुसीबतों का हर वक्त स्वागत किया है… वो लोग जो दफ्तर, घर, दोस्त, रिश्तेदार, बच्चे, पति-पत्नी आदि सभी से दुखी रहते हैं… जो भविष्य की चिंता में गले जा रहे हैं… वर्तमान की फिक्र उन्हें खाए जा रही है… बीते हुए वक्त के ग़म को वो चाहकर भी भूल नहीं पा रहे हैं… 
रात में ऐसे लोगों की बार-बार नींद टूटती है… कितनी ही देर बिस्तर पर लेट लें, सपनों की दुनिया में खोने का चांस नहीं मिलता… और अगर नींद आ भी जाए, तो वो गहरी नहीं होती है… बल्कि ज़रा सी खटक पर आपकी आंख खुल जाती है…

जिसे नींद आती है वो ज्यादा सुखी है या जिसे नहीं आती है वो ? 
ये अपने आप में कन्फ्यूज़ करने वाला सवाल है…
जब मैंने वीकिपीडिया से नींद के बारे में पूछा तो उसने बताया – नींद के उद्देश्य और प्रक्रिया सिर्फ आंशिक रूप से ही स्पष्ट हैं और ये गहन शोध के विषय हैं… और तो और वीकिपीडिया ने मुझे नींद के घंटे गिनाने शुरु कर दिए… जैसे बच्चों को 18 घंटे सोने चाहिए और बुज़ुर्गों को 8 घंटे… बाकी सब खुद को बीच में एडजस्ट कर लीजिए…
अब नींद तो नींद है… जितनी आए उतना सो लो… लेकिन ऐसा होता नहीं है… कम सोने से परेशानी होती है तो ज़्यादा सोने से भी दिक्कत होती है… 8-10 घंटे सोने के बाद सुबह उठकर थकान लगती है… और कभी-कभी 5 घंटे सोकर भी अगले दिन पूरी फुर्ती के साथ काम करने का मन करता है… ऐसे में ये कह पाना मुश्किल है कि आपका सुख किसमें छिपा है – कम नींद में या ज़्यादा नींद में…

नींद के भी प्रकार होते हैं 
नींद दो तरह की होती है…
गहरी नींद यानी नॉन रैपिड आई मूवमेंट स्लीप
और कच्ची नींद, जिसे सपनों वाली नींद भी कहते हैं…
अगर नॉन रैपिड आई मूवमेंट स्लीप 5 घंटे की भी आ जाए, तो बॉडी रिलैक्स हो जाती है…
लेकिन कच्ची नींद भले ही 8 घंटे की हो या 10 घंटे की, वह बॉडी को रिलैक्स नहीं करती है…

तो क्या करें ?

ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है

जी बिल्कुल, खुद अपने लाइफस्टाइल को आंकिए… समझिए… जानिए… बूझिए…
बल्कि, बूझने की ज़रूरत है ही नहीं, बस बत्ती बुझाइए…

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