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Beti Bachao Beti Padhao – 10 Years

Note : This story was published in prestigious Bal Bharati’ magazine for children in July 2023.

नएभारतकीनईशक्ति: बेटियोंकीशिक्षा, देशकीप्रगति 

बेटियों का स्वर्ण युग: 10 वर्षों की गौरव गाथा 

सूरज उग रहा था। आकाश गुलाबी-सुनहरी रंगों से रंग चुका था। गाँव के तालाब के किनारे रवि और उसकी बहन आर्या दौड़ लगा रहे थे। आर्या छोटी थी, लेकिन तेज़ भागती थी। अचानक उसने छलांग लगाई और चिल्लाई—

“भैया, देखो! मैं जीत गई!”

रवि हँस पड़ा, “हां, आर्या! पर ये मत भूलना, असली दौड़ तो अभी बाकी है।”

आर्या की आँखों में चमक थी। वो सिर्फ़ दौड़ में ही नहीं, पढ़ाई में बहुत होशियार थी और स्कूल में सबसे तेज़ गणित हल करती थी। उस दिन स्कूल में एक बड़ी सभा हो रही थी। इस सभा में गणित में सबसे ज़्यादा अंक लाने के लिए आर्या को स्टेज पर सम्मान मिलने वाला था। 

प्रधान जी, गाँव के शिक्षक, और कई अधिकारी आए थे। उन्होंने मंच से आर्या का नाम पुकारा, आर्या स्टेज पर गई और अवॉर्ड लेकर बहुत खुश हुई। सभा में तालियाँ गूंज उठीं। 

शिक्षक ने मुस्कुराते हुए याद किया कि आज से दस साल पहले हमारे देश में लड़कियों को पढ़ाई से दूर रखा जाता था। लेकिन फिर सरकार ने एक मिशन शुरू किया— “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ”। और देखिए आज लड़कियाँ हर क्षेत्र में देश का नाम रोशन कर रही हैं। 

अब आर्या की आँखों में जिज्ञासा थी। उसने स्टेज पर ही पूछा – “लेकिन सर, ये योजना है क्या ? इससे क्या हुआ ?” 

एक दशक पहले: 2015 की शुरुआत 

शिक्षक ने बच्चों को और सभा में मौजूद लोगों को सम्बोधित किया – “बात दस साल पहले की है। उस समय बेटियों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। उन्हें स्कूल जाने का मौका नहीं मिलता था, और कई जगहों पर उन्हें बोझ समझा जाता था। लड़कियों की संख्या घटती जा रही थी, जिससे समाज का संतुलन बिगड़ने लगा था।”

“फिर क्या हुआ, सर?” आर्या ने उत्सुकता से पूछा।

“फिर, 22 जनवरी 2015 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरियाणा के पानीपत में एक बहुत बड़ी योजना की घोषणा की— ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’। ये सिर्फ एक योजना नहीं थी, बल्कि ये पूरे देश के लिए एक नई सोच का जन्म था। सरकार ने 100 करोड़ रुपये का बजट रखा और शुरुआत में इसे 100 जिलों में लागू किया गया।”

पहला पड़ाव: 2015-2017 – शुरुआती संघर्ष 

लेकिन कोई भी बदलाव एक दिन में नहीं आता। इस योजना को सफल बनाने के लिए सरकार को और समाज को मिलकर काम करना था।

  • #SelfieWithDaughter अभियान चलाया गया। इस पहल ने दुनियाभर में चर्चा बटोरी। लोग अपनी बेटियों के साथ तस्वीरें खींचकर सोशल मीडिया पर डालने लगे। ये एक संदेश था कि बेटियां अभिशाप नहीं, वरदान हैं।
  • स्कूलों में जागरूकता कार्यक्रम हुए। गांव-गांव में माता-पिता को समझाया गया कि लड़कियों की पढ़ाई सिर्फ उनका अधिकार ही नहीं, बल्कि पूरे देश का भविष्य भी है। 
  • बेटियों को आर्थिक सहायता दी गई। गरीब परिवारों की बच्चियों को फ्री किताबें, साइकिल, वर्दी और छात्रवृत्ति दी जाने लगी, ताकि वे स्कूल जाने से न डरें।

दूसरा पड़ाव: 2018-2020 – बदलाव की लहर 

धीरे-धीरे इस योजना का असर दिखने लगा।

  • लिंग अनुपात में सुधार हुआ। पहले 1000 लड़कों पर सिर्फ 918 लड़कियां होती थीं, लेकिन इस योजना के बाद ये बढ़कर 943 हो गया। ये पहली बार था जब लड़कियों की संख्या बढ़ने लगी। 
  • सरकार ने बेटियों को सुरक्षित और आत्मनिर्भर बनाने के लिए मिशन शक्ति अभियान शुरू किया। स्कूलों में सेल्फ-डिफेंस क्लासेस शुरू हुईं, जिससे लड़कियां खुद को बचाने में सक्षम हुईं। 
  • उत्तर प्रदेश में कन्या सुमंगला योजना आई, जिसमें बेटियों की पढ़ाई और विवाह के लिए आर्थिक मदद दी गई। धीरे-धीरे दूसरे राज्यों ने भी इसे अपनाया।
  • सुकन्या समृद्धि योजना की मदद से सरकार ने बेटियों के लिए एक विशेष बैंक योजना शुरू किया, जिससे माता-पिता को उनकी शिक्षा और भविष्य की चिंता करने की जरूरत नहीं थी।

तीसरा पड़ाव: 2021-2024 – सफलता की कहानी 

अब बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ सिर्फ एक सरकारी योजना नहीं थी, बल्कि ये जन आंदोलन बन चुका था। 

  • लड़कियों की स्कूल में भागीदारी बढ़ रही थी। पहले 2014-15 में माध्यमिक स्कूलों में लड़कियों का नामांकन सिर्फ 75.51% था, लेकिन 2021 तक ये बढ़कर 79.4% हो गया।
  • ‘स्टेम फॉर गर्ल्स’ पहल की गई। सरकार ने लड़कियों को विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) की पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया, जिससे आज हजारों लड़कियां वैज्ञानिक, इंजीनियर और शोधकर्ता बन रही हैं।
  • सशक्त बेटियाँ – आत्मनिर्भर भारत की गूंज पूरे देश में सुनाई देने लगी। अब सिर्फ शहरों में ही नहीं, बल्कि गाँवों  में भी लड़कियां नौकरी कर रही थीं, बिजनेस चला रही थीं और समाज को बदल रही थीं। 

2025: एक नया सवेरा, एक नई उड़ान 

आर्या को ये सब सुनकर एक नई उड़ान महसूस हुई। शिक्षक ने आर्या के दोस्तों को भी स्टेज पर बुलाया। मंच पर मौजूद सभी लड़कियां अपनी सफलता की कहानियां सुनाना चाहती थीं। सबसे पहले मंच पर एक लड़की आई, जिसका नाम “नेहा” था। उसने माइक पकड़ा और कहा — 

“मैं एक छोटे गाँव की लड़की थी, जहां बेटियों को ज्यादा पढ़ने नहीं दिया जाता था। लेकिन ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना की वजह से मुझे छात्रवृत्ति मिली, स्कूल जाने का मौका मिला, और आज मैं डॉक्टर बनने की राह पर हूँ।”

पूरा गाँव तालियों से गूंज उठा। फिर एक और लड़की “संध्या” आई, जिसने बताया कि कैसे मिशन शक्ति के तहत उसे सेल्फ-डिफेंस ट्रेनिंग मिल रही है और वो आगे चलकर अपने जैसी दूसरी लड़कियों को आत्मरक्षा सिखाना चाहती है। 

एक-एक करके कई लड़कियां मंच पर आईं और अपनी प्रेरणादायक कहानियां साझा कीं— कोई पुलिस ऑफिसर बनना चाहती है, कोई वैज्ञानिक, तो कोई सोशल वर्कर। सबके चेहरे गर्व से चमक रहे थे।

अचानक आया एक रहस्यमयी संदेश। तभी स्टेज के पीछे से एक अधिकारी मंच पर आए और बोले — 

“हमारे पास प्रधानमंत्री कार्यालय से एक विशेष संदेश आया है।” 

सभी लोग चौंक गए। एक बड़ी स्क्रीन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक वीडियो मैसेज दिखाया गया—

“आज हम ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान के 10 वर्ष पूरे कर रहे हैं। पिछले एक दशक में ये एक परिवर्तनकारी, जन-संचालित पहल बन गई है और इसमें समाज के सभी वर्गों के लोगों की भागीदारी है। ये पहल लैंगिक पूर्वाग्रहों को कम करने में सहायक रही है और इसने ये सुनिश्चित करने के लिए सही माहौल बनाया है कि बालिकाओं को शिक्षा और अपने सपनों को हासिल करने के अवसरों तक पहुंच मिले। आइए, हम अपनी बेटियों के अधिकारों की रक्षा करना जारी रखें, उनकी शिक्षा सुनिश्चित करें और ऐसा समाज बनाएं जहां वे बिना किसी भेदभाव के आगे बढ़ सकें।” 

सभी लोगों ने ज़ोरदार तालियाँ बजाईं।

अब आर्या की बारी थी। 

“आज मैं जान गई कि मैं अकेली नहीं हूँ। देशभर में लाखों लड़कियां मेरी तरह सपने देख रही हैं और उन्हें पूरा कर रही हैं। अब मैं और भी मेहनत करूंगी, पढ़ूंगी, और एक दिन भारत की सबसे बेहतरीन वैज्ञानिक बनूंगी।”

पूरा गाँव तालियों से गूंज उठा। आर्या के भाई की आँखों में आँसू थे, लेकिन वे खुशी के थे।

अगले दस साल का सपना 

जैसे-जैसे जश्न खत्म हो रहा था,  शिक्षकों ने आर्या से कहा—

“अब अगला लक्ष्य तुम्हारे हाथ में है, बेटा। आज हमने दस साल का सफर पूरा किया है, लेकिन आने वाले दस साल और भी शानदार होने वाले हैं। बेटियाँ सिर्फ पढ़ेंगी नहीं, बल्कि दुनिया बदलेंगी। अब तुम्हारी बारी है— तुम वो उजाला बनो, जिससे दुनिया रोशन हो।”

आर्या ने सिर हिलाया और आसमान की ओर देखा। चाँद और सितारे चमक रहे थे, जैसे कह रहे हों—

“उड़ो, बेटियों। अब कोई तुम्हें रोक नहीं सकता।” 

“बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” सिर्फ एक योजना नहीं, बल्कि बदलाव की लहर है— और ये लहर अब कभी नहीं रुकेगी। 

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Science journalist | Anchoring & Conceptualising Science Infotainment Shows for Vigyan Prasar, Doordarshan & All India Radio | Indie Writer & Filmmaker | GOI Projects | Sci-Expert @ CIET, NCERT | 16 yr Experience