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Electric Vehicle Revolution in India

Note : This story was published in CSIR-NISCAIR’s prestigious magazine ‘ Vigyan Pragati’ in October 2024.

भारत में ईवी वाली करंट क्रांति 

बैटरी में नवाचार, एक ही चार्जर से हो हर ईवी चार्ज 

बैटरी, चार्जर, ईवी… ये वो शब्द हैं जिनसे आजकल भारत का भविष्य चार्ज हो रहा है। भारत की सड़कों पर चलने वाले 38 करोड़ से भी ज़्यादा वाहनों की ज़िंदगी बदलने वाली है। भारत में एक दिन ऐसा भी आने वाला है जब पेट्रोल डीज़ल वाले वाहन मुख्यधारा से बाहर हो जाएँगे, इन्हें करंट लग जाएगा लेकिन इसमें अभी वक्त है। वर्तमान में हम इलेक्ट्रिक वाहन व्यवस्था की शिशु अवस्था में है। गाड़ियाँ तो लगातार लॉन्च हो रही हैं, लेकिन आम लोगों में अभी इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर उतना आत्मविश्वास नहीं आया है, जितना पेट्रोल डीज़ल की गाड़ियों पर है। इलेक्ट्रिक वाहनों से जुड़े कुछ स्पीड ब्रेकर भी हैं जैसे जितने इलेक्ट्रिक वाहन उतनी ही तरह के चार्जर हैं। सबके लिए एक जैसा स्टैंडर्ड चार्जिंग सिस्टम होगा तो लोगों को आसानी होगी। बैटरी की तकनीक में भी नवाचार की गुंजाइश है ताकि चार्जिंग का समय कम से कम हो सके। क़ीमत कम हो तो इनका प्रसार और ज़्यादा होगा। इन सारे पहलुओं को ध्यान में रखकरएक ऐसे मिशन की ज़रूरत है जो इलेक्ट्रिक वाहनों की छोटी-छोटी अड़चनें दूर करके इसे मुख्यधारा में ला सके। 

भारत में ईवी की जोश भरी शुरुआत 

भारत की पहली सफल इलेक्ट्रिक कार “रेवा” 11 मई 2001 को बैंगलोर में लॉन्च की गई थी। इसे शहर में छोटे सफर के लिए डिजाइन किया गया था। रेवा ने भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग में एक महत्वपूर्ण कदम रखा और इसके बाद देश में इलेक्ट्रिक वाहनों की दिशा में कई और प्रगति देखी गई। इससे पहले भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का विकास और उपयोग सीमित था। हालांकि, कुछ प्रोटोटाइप और सीमित उत्पादन के वाहन ज़रूर मौजूद थे, लेकिन वे बड़े पैमाने पर उत्पादन और उपयोग के लिए नहीं थे। मुख्य कारणों में तकनीकी सीमाएं, बैटरी टेक्नोलॉजी का अभाव, और आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी शामिल थी। 

1990 के दशक में कुछ विश्वविद्यालय और रिसर्च संस्थानों ने इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रोटोटाइप पर काम किया। ये कोशिशें मुख्य रूप से प्रयोगात्मक थे और बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए नहीं थे। 1980 और 1990 के दशक में कुछ छोटे निर्माता और स्टार्टअप्स ने इलेक्ट्रिक वाहनों के विकास पर काम किया, लेकिन इन प्रयासों को व्यापक समर्थन नहीं मिला। इन वाहनों का उपयोग मुख्य रूप से विशेष परिस्थितियों में, जैसे कि प्रदर्शनी या छोटे परिसरों में किया गया। 2001 में रेवा की लॉन्चिंग से पहले, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए आवश्यक बैटरी और मोटर टेक्नोलॉजी में काफी प्रगति नहीं हुई थी। हालांकि, रेवा के आगमन ने भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग में एक नया अध्याय शुरू किया और इसके बाद इलेक्ट्रिक वाहनों की दिशा में लगातार प्रगति देखी गई।

2010 के दशक में महिंद्रा ने “ई2ओ” लॉन्च किया, जो तकनीकी रूप से बेहतर विकल्प था। 2013 में, भारत सरकार ने “राष्ट्रीय विद्युत गतिशीलता मिशन योजना” (NEMMP) लॉन्च किया, जिसका उद्देश्य 2020 तक 6-7 मिलियन विद्युत और हाइब्रिड वाहनों को सड़कों पर लाना था। इस योजना ने एक मजबूत आधारशिला रखी और कई पायलट प्रोजेक्ट्स शुरू किए गए, जैसे कि इलेक्ट्रिक बसों का इस्तेमाल और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास। 

2017 में सरकार ने “फेम इंडिया” योजना की शुरुआत की, जिससे इलेक्ट्रिक वाहनों का बाजार तेजी से बढ़ा। कई स्टार्टअप और कंपनियों ने इलेक्ट्रिक स्कूटर, बाइक, और कार लॉन्च किए। प्रमुख ऑटोमोबाइल निर्माता जैसे टाटा, महिंद्रा, MG मोटर्स, हीरो इलेक्ट्रिक, और कई स्टार्टअप कंपनियाँ इलेक्ट्रिक वाहनों के क्षेत्र में अपनी जगह बना रही हैं। बैटरी निर्माण, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और सरकारी नीतियों में भी तेजी से प्रगति हो रही है। 

Box item 1 : 

विश्वईवीदिवस 2024: सततगतिशीलताकाउत्सव 

हर साल 9 सितंबर को विश्व ईवी दिवस मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के विकास को प्रोत्साहित करना और उनके लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।

#DriveChange अभियान 

इस अभियान का मकसद व्यवसायों, नीति निर्माताओं और आम लोगों को प्रोत्साहित करना है कि वे एक स्वच्छ और हरित भविष्य के लिए अपना योगदान दें। 

कदम-कदम पर साथ है सरकार 

  • भारत सरकार ने 2030 तक सड़कों पर चलने वाले सभी नए वाहनों में से 30% इलेक्ट्रिक वाहन बनाने का लक्ष्य रखा है। 
  • फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ (हाइब्रिड &) इलेक्ट्रिक व्हीकल्स” (फ़ेम) योजना के तहत ईवी की खरीद और उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय सहायता दी जाती है, फेम II योजना के तहत 10,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। 
  • इलेक्ट्रिक वाहनों पर GST दर 12% है, जबकि पेट्रोल और डीजल वाहनों पर 28% है। आयकर अधिनियम की धारा 80EEB के तहत ईवी खरीदने पर ₹1.5 लाख तक की आयकर छूट मिलती है। 
  • पूरे देश में चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को विकसित करने के लक्ष्य के तहत पब्लिक चार्जिंग स्टेशन स्थापित किए जा रहे हैं। 
  • ईवी खरीदने वालों को टैक्स में छूट और सब्सिडी दी जाती है ताकि इनकी कीमतें आम आदमी की पहुँच में आ सकें। 
  • ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के तहत इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए घरेलू कंपनियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। 

राज्य सरकारें भी ईवी को दे रही हैं बढ़ावा  

दिल्ली ईवी नीति: ईवी खरीद पर 1.5 लाख रुपये तक की सब्सिडी, पुराने वाहनों को हटाने पर जोर, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास।

महाराष्ट्र ईवी नीति: 2025 तक 10 लाख ईवी का लक्ष्य, चार्जिंग स्टेशन के लिए बजट और टैक्स छूट।

कर्नाटक ईवी नीति: बेंगलुरु को ईवी हब बनाने की योजना, SEZ की स्थापना। 

तमिलनाडु ईवी नीति: ईवी निर्माण के लिए 50,000 करोड़ रुपये का निवेश, चेन्नई को ईवी हब बनाने की योजना, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करना। 

गुजरात ईवी नीति: 2030 तक 2 लाख चार्जिंग स्टेशन का लक्ष्य, ईवी खरीद पर 50,000 रुपये की सब्सिडी, सौर ऊर्जा से संचालित चार्जिंग स्टेशनों की स्थापना।

आंध्र प्रदेश ईवी नीति: ईवी निर्माण और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए 30,000 करोड़ रुपये का निवेश, विशाखापट्टनम और तिरुपति में ईवी हब बनाने की योजना, नए निवेशकों को प्रोत्साहन।

पंजाब ईवी नीति: ग्रीन टैक्स में छूट, चार्जिंग स्टेशन के लिए भूमि उपलब्ध कराना, लुधियाना को ईवी निर्माण का केंद्र बनाना, जागरूकता अभियान चलाना। 

राजस्थान ईवी नीति: 2025 तक 50,000 ईवी का लक्ष्य, जयपुर और उदयपुर में चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास।

उत्तर प्रदेश ईवी नीति: ईवी निर्माण और खरीद पर सब्सिडी और टैक्स छूट, नोएडा और लखनऊ को ईवी हब के रूप में विकसित करने की योजना। 

ईवी की बैटरी बन सकती है गेम चेंजर

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की प्रमुख मौशुमी मोहंती बताती हैं कि भारत में इलेक्ट्रिक वाहन सेगमेंट तेजी से बढ़ रहे हैं। इनमें खासतौर पर टू-व्हीलर, थ्री-व्हीलर और बसें शामिल हैं। सरकार इन सेगमेंट्स को सब्सिडी और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार का समर्थन दे रही है, जिससे ये सेगमेंट्स और भी मजबूत हो रहे हैं। इन सेगमेंट्स की सफलता फोर-व्हीलर वाहनों के लिए भी रास्ता साफ कर रही है। सिर्फ मांग बढ़ाने पर ही नहीं, बल्कि उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहनों के जरिए आपूर्ति पक्ष का भी समर्थन किया जा रहा है। अधिकांश दो और तीन पहिया वाहन घर पर ही चार्ज होते हैं, जबकि वाणिज्यिक उपयोग के लिए आमतौर पर सार्वजनिक चार्जिंग सिस्टम का उपयोग होता है। ईवी की स्वीकृति बढ़ाने के लिए उचित चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास और कीमतों में कमी अहम बिंदु होंगे। 

इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के लिए अलग-अलग तरह की बैटरियों का इस्तेमाल हो रहा है। इनमें मुख्य रूप से लिथियम-आयन, निकेल-मेटल हाइड्राइड और लिथियम फेरो फॉस्फेट बैटरियाँ शामिल हैं। इन बैटरियों की संरचना, चार्जिंग प्रक्रिया और बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम (बीएमएस) अलग-अलग होते हैं, जिससे एक बैटरी को दूसरे वाहन में इस्तेमाल करना मुश्किल हो जाता है। हर बैटरी में अलग-अलग रसायनिक पदार्थ और संरचना होती है। इससे उनके काम करने का तरीका और विशेषताएँ भी अलग-अलग होती हैं। अलग-अलग बैटरियों की चार्ज होने की गति, वोल्टेज और चार्जिंग के तरीके अलग होते हैं। इससे अलग-अलग चार्जर और चार्जिंग स्टेशन की जरूरत पड़ती है। हर प्रकार की बैटरी के लिए एक खास बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम (बीएमएस) की जरूरत होती है, जो बैटरी के स्वास्थ्य, सुरक्षा और प्रदर्शन को मॉनिटर और नियंत्रित करता है। 

इस समस्या का समाधान बैटरी मानकीकरण के माध्यम से किया जा सकता है। नीति आयोग में पूर्व प्रमुख सलाहकार और महानिदेशक और वर्तमान में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) कानपुर में विशिष्ट प्रोफेसर अनिल श्रीवास्तव बताते हैं कि “इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरियों का मानकीकरण ज़रूरी है। फिलहाल अलग-अलग तरह की बैटरियाँ हैं और उनके बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम्स भी अलग-अलग हैं। अगर सभी इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरियों के प्रोटोकॉल का मानकीकरण हो जाए और चार्जिंग प्रक्रियाएं समान हो सकें, तो व्यवस्था अधिक प्रभावी हो सकती है। एक वाहन की बैटरी को दूसरे वाहन में उपयोग करने योग्य बनाने या बैटरियों के समान मॉड्यूल बनाने के लिए मानकीकरण आवश्यक है। सरकार को इस दिशा में नीतियां बनानी चाहिए ताकि बैटरी और चार्जर में समानता आए और स्वीकार्यता बढ़े। वाहन निर्माताओं को बैटरी मानकीकरण में रुचि नहीं है, जो आम लोगों के लिए नुकसानदायक है। सरकार को इस मुद्दे में हस्तक्षेप करना चाहिए।” 

बैटरी मानकीकरण न केवल ईवी उपयोगकर्ताओं के लिए फायदेमंद होगा, बल्कि भारतीय ईवी बाजार के लिए भी काफी लाभकारी सिद्ध हो सकता है। अगर सरकार, निर्माता और उपभोक्ता मिलकर इस दिशा में काम करें, तो एक प्रभावी ईवी इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण संभव है। भारतीय संदर्भ में, बैटरी मानकीकरण के लिए नीतियों का निर्माण और उनके सफल कार्यान्वयन से ईवी का उपयोग भविष्य में और भी बढ़ सकता है। इससे पर्यावरण की सुरक्षा और देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल सकेगी। 

आखिर ये होगा कैसे? 

  1. सरकार को बैटरी मानकीकरण के लिए स्पष्ट नीतियां और दिशानिर्देश तैयार करने चाहिए। इससे सभी निर्माता एक ही मानक का पालन करेंगे। 
  2. बैटरी निर्माता और वाहन निर्माता एक साथ आकर मानकीकरण की प्रक्रिया को अपनाएं। इससे उत्पादन लागत कम होगी और उपभोक्ताओं को बेहतर सेवाएं मिलेंगी। 
  3. नए प्रकार की बैटरियों पर शोध किया जाए जो अधिक सुरक्षित और कुशल हों। 
  4. ईवी इस्तेमाल करने वालों और सर्विस देने वालों को बैटरी मानकीकरण और नई तकनीकों के बारे में जागरूक किया जाए। 
  5. सभी सम्बन्धित पक्षों को सहयोग और भागीदारी से काम करना चाहिए ताकि एक मजबूत और विश्वसनीय ईवी इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किया जा सके। 
  6. बैटरी मानकीकरण के फायदों के बारे में जनता को जागरूक करना भी आवश्यक है, ताकि अधिक लोग ईवी की ओर आकर्षित हों। 

चार्जिंग टाइम को कम करने के लिए फ़ास्ट चार्जर बनाए जा रहे हैं। स्कूटर की बैटरी 1.5 से 3 किलोवॉट, थ्री-व्हीलर की बैटरी 5 से 9 किलोवॉट, फोर व्हीलर की बैटरी 25 से 45 किलोवॉट और बस या ट्रक की बैटरी 100 से 150 किलोवॉट की होती है। बैटरी की गुणवत्ता, उसे चार्ज करने के समय और उसके साइज के अलावा, करंट के स्रोत और चार्जर के प्रकार (स्लो या फ़ास्ट, एसी या डीसी) पर भी निर्भर करता है। मौशुमी भविष्य को लेकर आश्वस्त हैं कि इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरी के लिए स्थानीय स्रोतों से सामग्री लाने और देश में बड़े पैमाने पर निर्माण करने की योजना है। हमारी प्रयोगशालाएं ईवी बैटरी सामग्रियों पर काम कर रही हैं, जो न केवल सस्ती होंगी, बल्कि यहां के मौसम और सड़कों के लिए भी उपयुक्त होंगी। अभी जो बैटरी तकनीकें इस्तेमाल हो रही हैं, उनके प्रोटोटाइप और निर्माण के प्रयास चल रहे हैं। साथ ही, भारत की जरूरतों के हिसाब से बैटरी बनाने के लिए भी कई कदम उठाए जा रहे हैं। इससे इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमतें कम होंगी और लोगों के लिए इन्हें अपनाना आसान होगा। 

क्या होंगे फ़ायदे ? 

1. चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार: बैटरी मानकीकरण से चार्जिंग स्टेशनों को डिजाइन करने और उन्हें संचालित करने में आसानी होगी। एक समान चार्जिंग प्रोटोकॉल से चार्जिंग स्टेशनों की संख्या बढ़ाने और उनके उपयोग को अधिक प्रभावी बनाने में मदद मिलेगी।

2. लागत में कमी: बैटरी मानकीकरण से निर्माताओं के लिए उत्पादन लागत कम होगी। इससे EVs की कीमतें भी घटेंगी और आम लोगों के लिए इन्हें खरीदना अधिक सुलभ होगा।

3. सस्टेनेबिलिटी और रिसाइक्लिंग: एक समान बैटरी मानक से बैटरी रिसाइक्लिंग और पुन: उपयोग में आसानी होगी, जो पर्यावरण के लिए लाभकारी होगा। 

Box item 3 

ईवीचार्जिंगस्टेशनकेलेवल 

1. लेवल 1 चार्जिंग स्टेशन: ये चार्जिंग स्टेशन आमतौर पर घरेलू उपयोग के लिए होते हैं और 120 वोल्ट की आउटलेट का उपयोग करते हैं। इन्हें पूरी तरह चार्ज करने में 8-12 घंटे लगते हैं। यह उन लोगों के लिए उपयुक्त है जो रात भर में अपने वाहन को चार्ज करना चाहते हैं।

2. लेवल 2 चार्जिंग स्टेशन: ये स्टेशन 240 वोल्ट की आउटलेट का उपयोग करते हैं और 3-4 घंटे में वाहन को चार्ज कर सकते हैं। ये स्टेशन सार्वजनिक स्थानों जैसे मॉल, ऑफिस बिल्डिंग, और पार्किंग गैरेज में पाए जाते हैं। 

3. डीसी फास्ट चार्जिंग स्टेशन: ये उच्च क्षमता वाले चार्जिंग स्टेशन होते हैं जो वाहन को 30 मिनट में 80% तक चार्ज कर सकते हैं। ये स्टेशन हाईवे के पास और प्रमुख मार्गों पर स्थित होते हैं, जिससे लम्बी यात्राओं के दौरान वाहन को तेजी से चार्ज किया जा सकता है। 

ईवीचार्जकरनेकेलिएबिजलीकहांसेआएगी

ईवी चार्जिंग स्टेशन की संख्या लगातार बढ़ रही है और ईवी मानकीकरण पर भी विचार चल रहा है। शायद कुछ समय बाद ईवी चार्जिंग कोई बड़ा मुद्दा न रहे। लेकिन एक और महत्वपूर्ण विषय है जिस पर अभी से ध्यान देना ज़रूरी है: क्या भारत के पास इतनी बिजली है कि हम ईवी क्रांति के लिए पूरी तरह तैयार हैं?

ये एक बहुत व्यापक विषय है, जिसके कई पहलू हैं। इसमें सरकार से लेकर आम आदमी तक, सभी को अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी निभानी होगी। अनिल जी ने इस दिशा में हमारा ध्यान आकर्षित किया कि “अगर सभी लोग एक ही समय पर अपने वाहन चार्ज करने लगे, तो बिजली पर भारी दबाव पड़ सकता है। वर्तमान में, 14% वाहन इलेक्ट्रिक हैं। हमारा ध्यान इस बात पर है कि हमारा ऊर्जा मिश्रण कोयला आधारित बिजली से सौर ऊर्जा में बदलने लगे। हमारा लक्ष्य 2030 तक इस परिवर्तन को पूरा करने का है। ये परिवर्तन तो लगातार जारी रहेगा लेकिन हमें ये भी देखना होगा कि ग्रिड इस बढ़ते लोड को कैसे सँभालेगा। 

जीवाश्म ईंधन से सौर ऊर्जा में परिवर्तन, ऊर्जा मिश्रण में बदलाव, और इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाना – इन सभी तत्वों को एक मॉडल में समाहित करने पर ही हमें समझ आएगा कि हम कहां खड़े हैं, कहां पहुंच सकते हैं, और आगे बढ़ने में कितना समय लगेगा। जैसे-जैसे हमारा फोकस सौर ऊर्जा पर बढ़ रहा है, ऊर्जा भंडारण वाली बैटरियाँ भी विकसित हो रही हैं, जिससे स्थिति और बेहतर हो रही है। हमें इन सभी चीजों को समग्र दृष्टिकोण से देखना होगा।”  

सौर ऊर्जा और ऊर्जा भंडारण पर विशेष ध्यान देने के साथ, हमें नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के विस्तार पर भी ध्यान देना चाहिए, जैसे पवन ऊर्जा और जल विद्युत। ये स्रोत हमें एक स्थायी ऊर्जा प्रणाली की ओर ले जा सकते हैं। ऊर्जा भंडारण में बैटरी टेक्नोलॉजी की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। उन्नत बैटरी सिस्टम हमें ऊर्जा को लंबे समय तक संग्रहीत करने और जरूरत के समय उसे उपयोग करने में मदद कर सकते हैं। 

एक और महत्वपूर्ण मुद्दा उभरता है – ऊर्जा की बर्बादी और इसका सही इस्तेमाल। हमारे पास पर्याप्त ऊर्जा स्रोत होने के बावजूद, अगर हम उसे सही तरीके से नहीं रखेंगे, तो समस्या का हल नहीं होगा। उदाहरण के लिए, बहुत से घरों में अभी भी बिजली के उपकरण अनावश्यक रूप से चलते रहते हैं, जिससे ऊर्जा की बर्बादी होती है। हमें ऊर्जा बचाने के तरीक़े ढूँढने और अपनाने की ज़रूरत है, जैसे ऊर्जा-दक्ष उपकरणों का उपयोग और स्मार्ट ग्रिड टेक्नोलॉजी का अपनाना। स्मार्ट ग्रिड टेक्नोलॉजी न सिर्फ़ बिजली की मांग और आपूर्ति को संतुलित करने में मदद करती है, बल्कि ये ऊर्जा वितरण को भी ज़्यादा कुशल बनाती है। 

इस विश्व ईवी दिवस पर हमें ऊर्जा शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों की भी ज़रूरत है, ताकि लोग ऊर्जा की बचत के महत्व को समझें और उसे अपनी रोज़मर्रा के जीवन में अपनाएं। ऊर्जा दक्षता और नवीकरणीय ऊर्जा की तरफ़ जागरूकता फैलाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। 

बैटरी तकनीक में नवाचार और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास से ईवी का भविष्य उज्ज्वल नजर आ रहा है। सरकार की ओर से लगातार समर्थन और नीतियों से इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग को बढ़ावा मिल रहा है। अलग-अलग राज्यों ने ईवी नीतियां लागू कर, सब्सिडी और टैक्स छूट के जरिए ईवी को आम आदमी की पहुंच में लाने की कोशिश की है। इसके साथ ही, बैटरी मानकीकरण से उत्पादन लागत कम होगी और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार होगा, जिससे ईवी अपनाने में आसानी होगी।

हालांकि, हमें ये भी ध्यान रखना होगा कि ईवी की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित हो। सौर ऊर्जा और ऊर्जा भंडारण में निवेश करके हम इस चुनौती का सामना कर सकते हैं। ईवी क्रांति न केवल पर्यावरण के लिए फायदेमंद है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती देगी। इसके लिए सरकार, उद्योग और जनता को मिलकर काम करना होगा। आइए, हम सभी मिलकर एक स्वच्छ और हरित भविष्य की दिशा में कदम बढ़ाएं।

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Science journalist | Anchoring & Conceptualising Science Infotainment Shows for Vigyan Prasar, Doordarshan & All India Radio | Indie Writer & Filmmaker | GOI Projects | Sci-Expert @ CIET, NCERT | 16 yr Experience