Note : This story was published in CSIR-NISCAIR’s prestigious Hindi magazine ‘Vigyan Pragati’ in June 2024.
पर्यावरणकरेंसी’ मेंनिवेश: आनेवालेकलकेलिएसुरक्षितविकल्प
ज़रा सोचिए… अगर हम किसी टाइम मशीन में बैठकर साल 2047 में पहुँच जाएँ तो? तब हम कितने अमीर होंगे? क्या हमारे आस-पास हरियाली होगी? पेड़-पौधों की भरमार होगी? यानी हम जंगल के मामले में अमीर होंगे?
क्या हमारे पास साफ़ हवा की दौलत होगी? क्या हमारे पास स्वच्छ पानी की सम्पदा होगी? सूरज, पानी और हवा मिलकर हमारी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा कर पाएंगे? क्या हम खेती और जंगल के अवशेष से वाहन चलाने वाली ऊर्जा बना पाएंगे? क्या हमारे आस-पास प्रदूषण का नामो-निशान नहीं होगा? ये सब ‘पर्यावरण करेंसी’ हैं जो किसी भी देश को समृद्ध बना सकती है। इस दौलत का कतरा-कतरा ज़रूरी है, क्योंकि बिना इस दौलत के तो कोई देश विकसित नहीं हो सकता है। इस करेंसी की फ़िक्र हर किसी को करनी होगी।
हवा-पानी-पेड़-पौधे-वातावरण आदि मिलकर पर्यावरण बनाते हैं जिसका मतलब होता है हमारे आस-पास का आवरण। पर्यावरण से जुड़े ये सवाल भविष्य में जाकर हल नहीं होंगे। इन सवालों को हम भविष्य पर छोड़ कर आज आराम से नहीं बैठ सकते हैं। इनके जवाब वर्तमान भी खोजेगा, और आने वाले भविष्य को भी खोजना होगा। यही है जनरेशन रेस्टोरेशन। मौजूदा पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी पर्यावरण की करेंसी अपने खाते में जोड़ना चाहती है। ये वो दौलत है जो आने वाले समय में सबसे क़ीमती होगी। जिस देश के पास ये दौलत होगी वो मालामाल होगा। लेकिन ये करेंसी आसानी से उपलब्ध नहीं है। इसमें बड़ा परिश्रम लगता है।
इस करेंसी के बिना फ़िलहाल हमारे पर्यावरण की स्थिति दुरुस्त नहीं है। जैसा कि हम जानते हैं जलवायु परिवर्तन के कारण भूकंप, बाढ़, और तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाएँ बढ़ रही हैं, इससे जलवायु और तापमान में भी बड़ा परिवर्तन हो रहा है। आपके आस-पास कई ऐसी जगह है जहां जलवायु परिवर्तन का असर देखा जा सकता है। बिना ज़्यादा समय लगाए आप ऐसे अनगिनत उदाहरण गिना सकते हैं। जैसे आजकल हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन का सीधा असर देखा जा सकता है। वही पोलर सर्किल में बर्फ़ की चादरें सिकुड़ रही हैं। आर्कटिक सागर की बर्फ कम हो रही है। दक्षिण भारत में ज़्यादा बारिश होने की की वजह से समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। महासागर गर्म हो रहा हैं। उनका अम्लीकरण बढ़ा रहा है। दुनिया भर में वायु प्रदूषण की मात्रा बढ़ने से गर्मियों में औसत तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है।
ये तो हुई दुनिया भर की बातें, अब ज़रा अपने आस-पास देखिए, अपने घर में देखिए। मार्च में ही पारा तीस के पार पहुंच जाता है। जानकारों की मानें तो पूर्व औद्योगिक काल की तुलना में मार्च 2024 लगभग 1.68 डिग्री सेल्सियस ज़्यादा गर्म रहा। इसके पीछे बड़ी वजह अल नीनो तूफ़ान को माना जा रहा है। लेकिन बहुत सारे जानकार जीवाश्म ईंधन के ज़्यादा इस्तेमाल को तापमान बढ़ने के पीछे का विलेन मानते हैं। तूफ़ान तो आते-जाते रहते हैं लेकिन वैज्ञानिकों को डर है कि तापमान को वापिस नॉर्मल लेवल पर लाना अब नामुमकिन होगा। ये सिर्फ़ कहने की बात नहीं है। ेश काे अलग-अलग हिस्सों से आने वाली ख़बरें तो आप देख ही रहे होंगे।
जलवायुपरिवर्तनकीवजहसेदेशकेशहरोंकाआंखों–देखाहाल
- मुंबई: मुंबई की बारिश के बारे में तो हम जानते ही हैं। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय और सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक नए अध्ययन से पता चला है कि इस क्षेत्र में हो रही बारिश हर साल 5.18 मिलीमीटर की दर से बढ़ रही है। भारी और अत्यधिक भारी बारिश की घटनाओं में भी वृद्धि दर्ज की गई है जो एक चिंता का विषय है।
- पुणे – पुणे में तापमान में वृद्धि हो रही है। वर्षा पैटर्न में भी बदलाव आया है जिससे बाढ़ की समस्या भी बढ़ रही हैं। वहीं पुणे और आसपास के कई गांवों में पानी की कमी से किसानों को समस्याएँ हो रही हैं और उनकी खेती पर असर पड़ रहा है।
- दिल्ली: दिल्ली भी जलवायु परिवर्तन के असर का शिकार है। यहाँ धूल-कीट और गर्मी समस्या बन चुकी हैं और वायु प्रदूषण की स्थिति भी गंभीर हो गई है। दिल्ली के कुछ हिस्से गंभीर पानी की कमी से जूझ रहे हैं, जो कि यमुना के प्रदूषण और भूजल की कमी के कारण और भी गंभीर हो जाता है। दिल्ली जल बोर्ड द्वारा आपूर्ति किया जाने वाला साठ प्रतिशत पानी प्रदूषित यमुना से मिलता है, जबकि बाकी भूजल से आता है। भूजल की कमी को दूर करना और पानी की गुणवत्ता में सुधार करना दिल्ली की जल संकट को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण है।
- बेंगलुरु: बेंगलुरु में पिछले कुछ सालों में पानी की कमी की समस्या बढ़ चुकी है। शहर में पिछले कुछ सालों में बारिश की मात्रा में भी कमी आई है और जल संसाधनों की स्थिति भी बहुत कमजोर हो गई है। बढ़ते शहरीकरण, अनियमित विकास और जलसंपदा के अत्यधिक उपयोग ने इस समस्या को गंभीर रूप से बढ़ा दिया है।
- चेन्नई: चेन्नई भी जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से जूझ रहा है। यहाँ समुद्री तटों पर तेज़ी से बढ़ता दबाव मुद्दा बन गया है और वर्षा ज़्यादा होने से जलवायु को नुकसान हो रहा है। चेन्नई में लगभग 1,400 मिमी की वार्षिक वर्षा के बावजूद, शहर ने 2019 में खुद को भीषण जल संकट की चपेट में पाया।
- केरल – केरल के कई गांवों में ज़्यादा बारिश की वजह से बाढ़ की समस्या हो रही है। उदाहरण के लिए, वायनाड जिले के गांवों में अचानक वर्षा में वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है।
- तमिलनाडु – तमिलनाडु के समुद्र तट के कई गांवों में चिंबुक और तूफान से होने वाले नुकसान की समस्या है।
- बंगाल – बंगाल के कई गांवों में जलवायु परिवर्तन के कारण सूखा और बाढ़ की समस्या है। कृषि और जल संसाधनों पर भी असर पड़ रहा है। प्रदूषण और जनसंख्या वृद्धि भी इस समस्या का मुख्य कारण है।
- उत्तरप्रदेश – उत्तर प्रदेश के कई गांवों में तापमान में वृद्धि और अचानक बारिश से होने वाली बाढ़ की समस्या है।
- गुजरात – गुजरात के कुछ गांवों में वायुमंडलीय प्रदूषण की समस्या है। अहमदाबाद और सूरत जैसे शहरों के आसपास कई गांव इस समस्या से जूझ रहे हैं और स्वास्थ्य को खतरा है।
#जनरेशनरेस्टोरेशनबदलपाएंगेहालात?
हालत ये हो गई है कि जिस आने वाली पीढ़ी के लिए कल तक हम बहुत कुछ बचाना चाहते थे, आज उन्हीं पर सब कुछ बचाने की ज़िम्मेदारी डालने वाले हैं। हम अपने बच्चों को पर्यावरण का महत्व और उसकी ज़रूरत समझाने में लगे हैं, जिससे कि वो अपना भविष्य ख़ुद ही संवार सकें। इन्हें #जनरेशनरेस्टोरेशनकहा जा सकता है। ये वो पीढ़ी है जो भूमि के साथ शांति स्थापित कर सकती है।
सेंटर फ़ॉर साइंस एंड एनवॉरमेंट (सीएसई) में पर्यावरण शिक्षा की प्रोग्राम मैनेजर तुषिता रावत बताती हैं कि “बच्चों को व्यवहार, दृष्टिकोण और कौशल सिखाना जरुरी है जो उन्हें बदलती दुनिया में ढालने में मदद करे। वातावरण शिक्षा युवाओं को जलवायु परिवर्तन से रूबरू कराती है और समाधानों को लागू करने के मौके मिलते हैं। आख़िरकार, बच्चे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को लेकर ज़्यादा संवेदनशील होते हैं और पिछली पीढ़ी की तुलना में सात गुना ज़्यादा इसकी चपेट में आने की आशंका है। ये एक शानदार अवसर है कि युवा, नीति निर्माण में सक्रिय रूप से शामिल होकर समाधान का हिस्सा बन सके। ये युवाओं के लिए न सिर्फ अपना ज्ञान बढ़ाने का बल्कि सामुदायिक कार्रवाई और नीति निर्माण में सक्रिय रूप से शामिल होकर समाधान का हिस्सा बनने का एक शानदार अवसर है।”
Box Item
ग्यारह साल का यशराज हर रोज़ अपने दादा जी के साथ पौधों के पानी देता है। उसने छोटे पौधों को बड़ा होते देखा है। उनमें नई पत्तियाँ और फूल लगते देखा है। पेड़ों पर फल लगते देखा है। पतझड़ में जब पेड़ों के पत्ते गिर जाते तो वो उदास हो जाता था। तब दादा जी उसे समझाते थे कि ये प्रकृति का नियम है। पुराने पत्ते जाएँगे तभी तो नए पत्ते आएँगे। एक दिन मम्मी-पापा के साथ गाड़ी में जाते हुए उसने सड़क किनारे एक लाइन से लगे पौधों को देखा, वो काफ़ी निराश लग रहे थे। यशराज ने पापा से गाड़ी रोकने के लिए कहा। उतर कर उसने पौधों को नज़दीक से देखा और बेहाल पौधों को लेकर चिंता जताई। मम्मी ने तुरंत ही उससे कहा कि अब तुम ही इनका हाल ठीक करोगे। गाड़ी रुकी थी तो पापा ने खिड़की से सड़क पर थूक दिया, तो यशराज ने तुरंत उन्हें टोका। ऐसा करना बुरी बात होती है पापा। छोटी बहन केले का छिलका खिड़की से बाहर फेंकने ही वाली थी कि यशराज की ये बात सुनकर उसने अपने हाथ रोक लिए। मम्मी ने फिर यशराज को शाबाशी दी और कहा कि अब तुम्हारी पीढ़ी ही धरती को उसके सुख वापस दिलाएगी।
जनरेशन रेस्टोरेशन को तैयार करने के लिए सीएसई का ग्रीन स्कूल प्रोग्राम (जीएसपी) स्कूलों और छात्रों को अपने संसाधन के इस्तेमाल का आंकलन करने और टिकाऊ बनने के लिए सक्रिय रूप से प्रथाओं को अपनाने का मौका देता है। हर साल, हजारों छात्र और शिक्षक इसमें भाग लेते हैं। इससे फायदा भी हुआ है, जैसे जीवाश्म ईंधन का सोच-समझ कर उपयोग करना, वर्षा जल संचयन के तरीके अपनाना, कचरे को अलग करना, आदि। तुषिता हमें ये उदाहरण देकर समझाती हैं। “आंध्र प्रदेश के अन्नामय्या में एक जीएसपी नेटवर्क स्कूल है। इस स्कूल के पास वर्षों से खाली पड़ी जमीन पर एक मियावाकी जंगल विकसित किया गया। ये एक स्थानीय एनजीओ और उसके छात्रों की मदद से किया गया था। अब, स्कूल में पर्यावरण शिक्षा कक्षाएं थोड़ी अलग दिखती हैं क्योंकि वे कक्षा की चारदीवारी से आगे निकल चुकी हैं और छात्र अब ‘करके सीख रहे हैं’। ऑडिट में दिए गए फीडबैक की मदद से कई जीएसपी स्कूलों ने स्कूल परिसर से पैकेज्ड खाद्य पदार्थों को पूरी तरह से हटा दिया है और सिर्फ ताजी बनी चीजें ही परोसी हैं। ये प्लास्टिक कचरे को कम करता है और युवाओं के स्वास्थ्य का भी ख्याल रखता है। स्कूलों का एक और समूह शून्य-अपशिष्ट स्कूल बनने की अपनी यात्रा पर है, जहां वे उत्पन्न होने वाले सभी कचरे का प्रबंधन करते हैं और लैंडफिल पर भार काफी हद तक कम हो जाता है।”
अशोक यूनिवर्सिटी में त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज के सेंटर फॉर हेल्थ एनालिटिक्स रिसर्च एंड ट्रेंड्स (CHART) की निदेशक और सेंटर फॉर क्रॉनिक डिजीज कंट्रोल में सीनियर रिसर्च साइंटिस्ट पूर्णिमा प्रभाकरण गर्व के साथ बताती हैं कि “आज के युवाओं की अच्छी बात ये है कि वो जलवायु परिवर्तन के मुद्दों के बारे में जागरूक हो रहे हैं। उन्हें पर्यावरण से जुड़े विषयों की न सिर्फ समझ है बल्कि कई बार वो बड़ों से भी ज़्यादा ज़िम्मेदार साबित होते हैं। इसकी शुरुआत हम घर से ही कर सकते हैं। हम अपने आप से और अपने घरों से ही जल संरक्षण, भोजन की बर्बादी से बचने, उपयोग में न होने पर लाइट बंद करने, असुरक्षित अपशिष्ट निपटान से बचने, सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने और जागरूकता फैलाने के लिए दिन-प्रतिदिन के सरल तरीकों से शुरुआत कर सकते हैं। हर व्यक्ति अपना घर, अपनी आदतें, अपना रहन-सहन ठीक कर लेगा तो बस देखते ही देखते पर्यावरण की सूरत बदल जाएगी।”
ये बात सच है कि हम समय को पीछे नहीं लौटा सकते, लेकिन हम जंगल उगा सकते हैं, जल स्रोतों को पुनर्जीवित कर सकते हैं, मिट्टी वापस ला सकते हैं, प्रदूषण को कम करने की कोशिश कर सकते हैं, नवीन ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकते हैं। ज़रूरत पड़ने पर समाज के अलग-अलग वर्गों जैसे डॉक्टर, नर्स, टीचर, आदि से भी मदद ली जा सकती है। ये समाज में जागरुकता फैलाने में मददगार साबित हो सकते हैं।
सततभविष्यकानिर्माणकैसेकरेइंसान ?
हरघरसोलर
हर घर पावर हाउस बन जाए तो क्या होगा ? हर छत पर पावर वाला गार्डन हो तो क्या होगा? ये एक बहुत महत्वाकांक्षी मिशन है जिसके तरह पहले ग्रीन घर बनेगा, फिर ग्रीन भारत बनेगा और फिर ग्रीन दुनिया बनेगी। वैसे भारत का लक्ष्य 2030 तक अपनी गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली उत्पादन क्षमता को 500 गीगावॉट तक बढ़ाना है। इसके लिए, उच्च सौर और पवन क्षमता वाले क्षेत्रों को मांग केंद्रों तक कुशल बिजली निकासी के लिए अंतर-राज्य ट्रांसमिशन सिस्टम से जोड़ने की आवश्यकता है। भारत में 2024 कैलेंडर वर्ष में 25 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता बढ़ने की संभावना है, जिसमें 1,37,500 करोड़ रुपये का निवेश होगा, जो कि 13.5 गीगावॉट से अधिक होगा। भारत में 2023 तक 150 गीगावॉट से अधिक की नवीन ऊर्जा क्षमता स्थापित हो चुकी है। इसमें 50 गीगावॉट से अधिक हिस्सा सौर ऊर्जा का है और 40 गीगावॉट से ज़्यादा पवन ऊर्जा है। 2023 में 74,250 करोड़ रुपये का निवेश देखा गया। इसी साल जनवरी में कैबिनेट ने नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को भी मंज़ूरी दी है।
प्रदूषणमुक्तभविष्य
नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल करने, सार्वजनिक परिवहन और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने, प्रदूषण नियंत्रण मानकों को लागू करने, प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को दंडित करने और पर्यावरण शिक्षा और जागरूकता बढ़ाने जैसी पहलों के माध्यम से प्रदूषण मुक्त भविष्य संभव है। नागरिक वाहन का उपयोग कम करके, ऊर्जा और पानी का संरक्षण करके, कचरे का पुनर्चक्रण करके, प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करके, पेड़ लगाकर और प्रदूषण मुक्त भविष्य के लिए मिलकर कोशिश की जाए तो प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
सरकार ने वायु प्रदूषण को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए उत्सर्जन मानकों और ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान जैसे नियामक उपाय किए हैं। सरकार ने उद्योगों, वाहनों और कृषि पद्धतियों सहित दूसरे स्रोतों से उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए कई पहल किए हैं। सरकार, जनता, और व्यापारिक संगठनों को मिलकर प्रदूषण मुक्त भविष्य की दिशा में आगे बढ़ना होगा।
पेड़कटनेनहींबढ़नेचाहिए
वनों की कटाई से वन्यजीवों को हानि होती है, मिट्टी का क्षरण होता है और जल संकट बढ़ता है। वनों की कटाई के कारणों में कृषि, औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, और खनन शामिल हैं। इससे होने वाले बुरे प्रभावों में जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वॉर्मिंग और जल चक्र का बाधित होना शामिल है। भारत में राज्य वन रिपोर्ट (ISFR) 2021 के अनुसार देश का कुल वन क्षेत्र देश के भौगोलिक क्षेत्र का 21.72 प्रतिशत है। 2019 की रिपोर्ट के मुकाबले 2021 में देश के कुल वन क्षेत्र में लगभग 1540 स्वक्वायर किलोमीटर की वृद्धि हुई है।
आईआईटी गांधीनगर के सिविल इंजीनियरिंग और पृथ्वी विज्ञान विभाग में विक्रम साराभाई चेयर प्रोफेसर विमल मिश्रा बताते हैं कि वन, जलवायु परिवर्तन के साथ ही दूसरी महत्वपूर्ण सेवाएँ भी देते हैं। हमें उनके स्थायी प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए वन पारिस्थितिकी प्रणालियों का महत्व समझना चाहिए। साथ ही देश भर में जल निकायों, नदियों और नम भूमि को पुनर्जीवित करने के लिए लोगों की भागीदारी भी हो रही है। स्वस्थ वातावरण बनाने में और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता के संरक्षण में सामुदायिक भागीदारी महत्वपूर्ण है।
वहीं बायो ट्रेंड एनर्जी के निर्देशक सुनील ढिंगरा को नवीन ऊर्जा के क्षेत्र में तीन दशकों से ज़्यादा का अनुभव है। वो बताते हैं कि खेती और जंगल के अवशेष यानी बायोमास को अगर सही तरीके से इस्तेमाल न किया जाए तो इससे प्रदूषण बढ़ सकता है। ये अवशेष अक्षय ऊर्जा का स्त्रोत है। इसे हम तकनीक की मदद से बायोमास पैलेट में बदलते हैं। घरों में खाना पकाने में इन बायोमास पैलेट का इस्तेमाल स्वच्छ ऊर्जा के रूप में किया जा सकता है।इसे बॉयलर में डालकर बिजली का उत्पादन भी किया जा सकता है। गैसिफिकेशन की मदद से खेती और जंगल के अवशेष को गैस में बदला जा सकता है। इसके अलावा इन अवशेष को बायोइथैनॉल, बायोडीजल और बायोहाइड्रोज में बदला जा सकता है जिसे स्वच्छ ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
ऊर्जाकुशलइमारतोंमेंकैसेरहें ?
आप एक शानदार घर बना रहे हैं, जिसमें सुनिश्चित किया जाएगा कि वह सुरक्षित है और पर्यावरण के लिए अच्छा है। अब, जिस तरह हमारे घर में हर चीज को साफ-सुथरा रखने के नियम हैं, उसी तरह इमारतों में भी ऐसे नियम हैं जिन्हें विनियम कहा जाता है ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि वे सुरक्षित हैं और पर्यावरण के लिए अच्छे हैं। ऐसे घर बनाने के लिए विभिन्न सरकारी नीतियां हैं, जैसे ग्रीन रेटिंग फॉर इंटीग्रेटेड हैबिटेट असेसमेंट (GRIHA) और एनर्जी कंजर्वेशन बिल्डिंग कोड (ECBC), जो ऊर्जा बचाने और पर्यावरण की रक्षा में मदद करती हैं। इस तरह के नियमों का पालन करके, हम लंबे समय में पैसा बचा सकते हैं और पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं।
उदाहरण के लिए, GRIHA लोगों को ये देखने में मदद करता है कि उनकी इमारत ऊर्जा की खपत और अपशिष्ट उत्पादन को कम करने में मदद कर रही है। ECBC का पालन करके, हम ऐसे घर बना सकते हैं जो कम बिजली का इस्तेमाल करते हैं, पर्यावरण के लिए बेहतर हैं और लंबे समय में पैसे बचाते हैं। इसलिए, स्मार्ट और टिकाऊ तरीके से घर बनाकर, हम पर्यावरण की रक्षा करने, ऊर्जा बचाने और लंबे समय में पैसा बचाने में मदद कर सकते हैं।
स्मार्टशहर – आपकेद्वारा, आपकेलिए
स्मार्ट शहर वहाँ रहने वालों के जीवन में प्रौद्योगिकी का उपयोग करके चीजों को बेहतर बना रहे हैं। ट्रैफ़िक और ऊर्जा के इस्तेमाल में सेंसर का उपयोग कर रहे हैं। स्मार्ट स्ट्रीटलाइट्स में निवेश कर रहे हैं। निवासियों के लिए सेवाओं में सुधार करने के लिए डेटा विश्लेषण कर रहे हैं। पर्यावरण की मदद के लिए नवीनीकरणीय ऊर्जा का उपयोग कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं से जुड़ी योजनाओं में शहर में रहने वालों को भी शामिल कर रहे हैं। कुल मिलाकर, स्मार्ट शहर वहाँ रहने वालों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहे हैं। विमल मिश्रा पर्यावरण संरक्षण में तकनीक और नवाचार की अहम भूमिका देखते हैं। “जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में तकनीकी नवाचार और ऊर्जा कुशल उपकरण अच्छी भूमिका निभा रहे हैं। ऊर्जा कुशल उपकरण, इलेक्ट्रिक वाहन और स्वच्छ ऊर्जा के नए स्रोत तकनीकी नवाचार के कुछ उदाहरण हैं जिन्हें दुनिया देख रही है। दूसरी तरफ, मज़बूत प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ आपदाओं पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।”
#जनरेशनरेस्टोरेशनकेलिएपर्यावरणमेंनिवेशकेतरीक़े
लम्बे समय से विज्ञान पत्रकारिता करते हुए इस विषय पर विशेषज्ञों से बात होती रहती है। उन सारी चर्चाओं और बातों का निचोड़ निकालकर एक सवाल का जवाब ढूँढते हैं। दरअसल, विशेषज्ञों का मानना है कि हर व्यक्ति को खुद से ये सवाल ज़रूर पूछना चाहिए – मैं क्या निवेश करूं ताकि हमारी पृथ्वी को संरक्षित रखा जा सके, और हमें भी संरक्षण मिले?
- पॉलीथीन बैग बाजार में आसानी से और निःशुल्क उपलब्ध है, लेकिन इस्तेमाल नहीं करें। जूट बैग या अन्य पर्यावरण-सौहार्दपूर्ण विकल्पों को खरीदें। ये पर्यावरण के लिए अच्छा है।
- उसी तरह, अगर आप एक साधारण इलेक्ट्रिक बल्ब खरीदते हैं या फिर एक एलईडी बल्ब ख़रीदते हैं, तो दूसरे बल्ब की कीमत ज़्यादा होगी। इसे खरीदने के लिए हमें अधिक पैसा निवेश करना होगा। लेकिन ये पर्यावरण के लिए अच्छा है।
- कचरे को अलग करना और भोजन की बर्बादी से बचना भी अच्छा तरीक़ा है। इस निवेश से हम आने वाली पीढ़ी को सही आदत और संसाधनों के सही इस्तेमाल के बारे में जागरुक कर सकेंगे।
- नवीकरणीय ऊर्जा में बड़े पैमाने पर निवेश करना पर्यावरण के लिए ज़रूरी है। हवा, पानी, सूरज की रोशनी से ऊर्जा बनाकर उसका उपयोग करने से #जनरेशनरेस्टोरेशन को भी बल मिलेगा।
- सार्वजनिक परिवहन जनसाधारण के लिए अच्छा निवेश है। इससे ईंधन की बचत होती है और पर्यावरण को कम नुकसान होता है। बस ये सुनिश्चित करना चाहिए कि सार्वजनिक परिवहन की स्थिति ठीक होती है।
- इसके अलावा इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल करना भी हर लिहाज़ से फ़ायदेमंद हो सकता है। जीवाश्म ईंधन की बचत होगी और प्रदूषण भी नहीं होगा।
- इमारतों की ऊर्जा कुशलता में सुधार करना भी पर्यावरण में निवेश का अच्छा तरीक़ा है। ऊर्जा कुशल इमारतें बनाने से वेंटिलेशन से लेकर एयर कंडिशनिंग तक हर चीज़ में कम ऊर्जा की ज़रूरत होती है।
- क्या आप अपने घरों में पौधे लगाते हैं और छत पर छोटे छोटे बाड़ उगाते हैं? ये हमारे पर्यावरण को सुरक्षित रखने में मदद करता है और हमें भी स्वस्थ और प्राकृतिक भोजन सप्लाई करता है।
भारत में जलपुरुष के नाम से मशहूर पर्यावरण कार्यकर्ता राजेन्द्र सिंह लगातार पानी को लेकर देश भर में काम कर रहे हैं। वो बताते हैं कि “पिछले 42 सालों में 10,600 स्क्वायर किलोमीटर क्षेत्र में जहां पहले बादल नहीं बरसते थे, वहां अच्छी बारिश होती है। यहां लोग खेती करने लगे हैं। राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में पानी के बहाव को बढ़ाने के लिए बहुत काम किए गए। इससे वहां की प्राकृतिक संसाधनों को पुनर्स्थापित किया गया और पर्यावरण को बचाने में मदद मिली। इस समर्थन से हरियाली बढ़ी, ऑक्सीजन के स्तर में वृद्धि हुई, तापमान में सुधार हुआ और प्राकृतिक प्रक्रियाओं में भी सुधार देखा गया। इस रेस्टोरेशन कार्य से प्राकृतिक संतुलन में सुधार हुआ और वातावरण को बचाने में महत्वपूर्ण काम हुआ। हमें अगर अपनी आने वाली पीढ़ी का भविष्य बेहतर बनाना है तो उन्हें रेजुवेनेशन के काम में लगाना होगा।”
हमने अपने पर्यावरण के संरक्षण में कई गलतियां की हैं। अब समय आ गया है कि हम सभी मिलकर इस परिस्थिति को सुधारें और निवेश से इसे बेहतर बनाएं। इस निवेश के माध्यम से हम अपने भविष्य को सुरक्षित रख पाएंगे। लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि हम पर्यावरण से जुड़े कारकों के बारे में जानकारी रखें।
वहीं पूर्णिमा प्रभाकरण स्वास्थ्य पर प्रभाव को लेकर बताती हैं कि “2015 से पर्यावरण स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करते हुए, मैं समझती हूं कि हमारे पास सीमित प्राकृतिक संसाधन हैं जैसे हवा, पानी, मिट्टी। ये संसाधन या तो कम हो रहे हैं या प्रदूषित हो रहे हैं। हमारे भविष्य के सपने कमजोर हो रहे हैं। ये कहना गलत नहीं होता कि इस स्थिति के लिए जिम्मेदार कारक काफी हद तक इंसानों द्वारा ही बनाए गए हैं। इस बात में निराशा और आशा दोनों ही है। निराशा इसलिए क्योंकि हम इन कारणों के बारे में जानते हुए भी कुछ कर नहीं रहे हैं जैसे बेरोकटोक विकास, औद्योगिक गतिविधि के कारण हवा और पानी में बढ़ते प्रदूषक तत्व और आशा की किरण इसलिए क्योंकि ये ऐसे मुद्दे ऐसे हैं जिन्हें आसानी से रोका जा सकता है। इन कारकों का प्रभाव प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हमारे जीवन पर पड़ता है। इसलिए ज़रूरी है कि न सिर्फ अपने लिए बल्कि हमारे बच्चों के लिए हम इन मुद्दों का समाधान ज़रूर करें।
जनरेशनरेस्टोरेशनकाबेमिसालउदाहरण – लिसिप्रियादेवीकंगुजम
तेरह साल की लिसिप्रिया देवी कंगुजम द चाइल्ड मूवमेंट की संस्थापक हैं और उन्होंने 32 देशों में 400 से अधिक संस्थानों में भाषण दिया है। उन्हें विश्व बाल शांति पुरस्कार मिला है। उन्होंने प्रदूषण से लड़ने और स्कूलों में जलवायु परिवर्तन साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए नए कानूनों की वकालत की है।
1. इतनीकमउम्रमेंजलवायुपरिवर्तनकोलेकरकामकरनेकेलिएकिसबातनेप्रेरितकिया?
मैंने बचपन में, 2018 और 2019 में, ओडिशा में चक्रवात तितली और चक्रवात फानी देखा है। 2019 में जब मैं दिल्ली गई तो वहाँ अत्यधिक गर्मी की लहर और वायु प्रदूषण संकट देखा। मेरे युवा जीवन के ऐसे सारे अनुभव मुझे एक मुखर बाल जलवायु कार्यकर्ता बनाते हैं।
2. 2018 मेंआपनेशुरुआतकी, उसकेबादयेसफ़रकैसेजारीरहा?
जून 2018 में, मैंने दिल्ली में संसद भवन के बाहर जलवायु परिवर्तन कानून बनाने के लिए विरोध प्रदर्शन शुरू किया। स्कूली बच्चों के साथ 2019 में ग्रेट अक्टूबर मार्च किया और जलवायु शिक्षा को अनिवार्य बनाने के लिए अभियान किया। 2019 में, मैंने स्पेन में COP25 में भाषण दिया और दुनिया ने मुझे पहचानना शुरू किया।
3. आपकोकिनचुनौतियोंकासामनाकरनापड़ा?
बाल जलवायु कार्यकर्ता होने के नाते, लोग मुझसे कहते थे कि “आप इस तरह के मुद्दों पर बोलने और इनमें शामिल होने के लिए बहुत छोटी हैं”। लेकिन मैं उन्हें बताना चाहती हूँ कि उम्र मायने नहीं रखती है। कभी-कभी, लोग मेरी आवाज़ का राजनीतिकरण करने की कोशिश करते हैं। और साथ ही अपनी सक्रियता और अध्ययन दोनों को संतुलित करने के लिए, मुझे अपनी पढ़ाई में ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती है।
4. जलवायुपरिवर्तनकेलिएआपकीवकालतनेभारतमेंनीतियोंऔरकानूनोंकोकैसेप्रभावितकियाहै?
2020 में, राष्ट्रपति ने दिल्ली में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर से निपटने के लिए एक नया वायु प्रदूषण कानून बनाने के लिए अध्यादेश पर हस्ताक्षर किए। संसद भवन पर दिल्ली पुलिस ने मुझे हिरासत में भी लिया था, पर मैंने विरोध किया। मेरे मित्रों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। 2022 में ताज महल को प्लास्टिक मुक्त स्मारक में बदला गया। हजारों स्कूल अब जलवायु शिक्षा को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाते हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय ने प्रत्येक छात्र को प्रत्येक वर्ष एक पेड़ लगाने की अनिवार्यता लगा दी है। भारत सरकार ने कक्षा 4 और 7 की सीबीएसई पाठ्यपुस्तक में जलवायु शिक्षा को मेरी कहानी के साथ अलग अध्याय के रूप में रखा है।
5. COVID-19 महामारीकेदौरान “इंडियानीड्सऑक्सीजनमिशन” अभियानकेबारेमेंबताइए।
ये मेरे युवा जीवन में किए गए सबसे बड़े मानवीय प्रयासों में से एक था। COVID19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान, मैंने क्राउडफंडिंग की और आपातकालीन ऑक्सीजन कंसेन्ट्रेटर मुहैया कराके भारत में 100 से ज़्यादा लोगों की जान बचाई। हमने भारत के विभिन्न राज्यों में सैकड़ों ऑक्सीजन सिलेंडर और ऑक्सीजन मशीनें भेजीं।
7. नोबेलशांतिपुरस्कारविजेताडॉ. जोसरामोसहोर्टाजैसेविश्वनेताओंकेसाथआपकीमुलाकातनेआपकेकामऔरमिशनकोकैसेप्रभावितकिया?
राष्ट्रपति होर्टा मेरे लिए एक महान प्रेरणा हैं। उनका नेतृत्व और दूरदर्शिता मुझे उनके नक्शेकदम पर चलने के लिए प्रेरित करती है।’ मैं वर्तमान में तिमोर लेस्ते के राष्ट्रपति के रूप में उनके दूसरे कार्यकाल में उनके विशेष दूत के रूप में काम कर रहा हूं। लिसिप्रिया फाउंडेशन का मुख्य लक्ष्य दुनिया के हथियार संघर्ष पीड़ित बच्चों के लिए शैक्षिक सहायता प्रदान करना और स्कूली बच्चों के बीच जलवायु कार्रवाई को बढ़ावा देना है।
8. विश्वपर्यावरणदिवसकेसम्मानमें, आपकैसेमानतीहैंकिभारतऔरदुनियाभरमेंपर्यावरणीयमुद्दोंकेसमाधानकेलिएव्यक्तिऔरसरकारेंमिलकरकामकरसकतीहैं?
विश्व पर्यावरण दिवस 2024 के अवसर पर सभी लोगों के लिए मेरा संदेश है। जलवायु परिवर्तन की समस्या सभी के लिए है। हमें तुरंत कार्रवाई की ज़रूरत है। अमीर देशों से नुकसान का भुगतान करने का आग्रह है। हम जलवायु के साथ हुए अन्याय को ख़त्म करना चाहते हैं। मेरी पीढ़ी पहले से ही जलवायु परिवर्तन का शिकार है। दोबारा वही परिणाम नहीं भुगतना चाहती।
पर्यावरणमेंशांतिस्थापितकरनेकामूलमंत्र
जानकार मानते हैं कि हर दिन एक पर्यावरण दिवस है। समाधान का हिस्सा बनने के लिए, हमें पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर लगातार काम करने और हर दिन बदलाव लाने की जरूरत है। वैसे भी पर्यावरण के बारे में न जाने कितना कुछ लिखा गया है। न जाने कितनी बातें कही गई हैं। न जाने कितनी चिंता जताई गई है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये मुद्दा वर्षों से ज़ोर-शोर से उठाया जाता रहा है।
हर साल विश्व पर्यावरण दिवस इसी उम्मीद के साथ मनाया जाता है कि अब कुछ बेहतर होगा। ये कोशिश वैसे तो सदियों से चल रही है लेकिन आधिकारिक तारीख़ 1972 में पड़ी। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस (डब्ल्यूईडी) के रूप में मनाने का ऐलान किया। “केवल एक पृथ्वी” के नारे के साथ पहली बार 1973 में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया।
बाद के वर्षों में, पर्यावरण के सामने आने वाली समस्याओं जैसे वायु प्रदूषण, प्लास्टिक प्रदूषण, अवैध वन्यजीव व्यापार, समुद्र-स्तर में वृद्धि और खाद्य सुरक्षा आदि के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक मंच के रूप में विकसित हुआ है। इसके अलावा, उपभोग पैटर्न और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण नीति में बदलाव लाया गया जिससे स्थितियाँ सुधरने की उम्मीद बंधी।
थीम – भूमिबहाली, मरुस्थलीकरणऔरसूखालचीलापन
विश्व पर्यावरण दिवस का 2024 संस्करण भूमि बहाली, मरुस्थलीकरण और सूखा लचीलापन पर केंद्रित है, क्योंकि ये वर्ष मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन की 30वीं वर्षगांठ का प्रतीक है।
भूमिबहाली – संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के अनुसार, धरती की 40 प्रतिशत भूमि बर्बाद हो गई है, जिससे दुनिया की आधी आबादी सीधे प्रभावित हो रही है। वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के लगभग आधे हिस्से को खतरा है।
मरुस्थलीकरण – 2000 के बाद से सूखे की स्थिति और अवधि में 29 प्रतिशत की वृद्धि हुई है – तत्काल कार्रवाई के बिना, सूखा 2050 तक दुनिया की तीन-चौथाई से ज़्यादा आबादी को प्रभावित कर सकता है।
सूखालचीलापन – भूमि बहाली संयुक्त राष्ट्र पारिस्थितिकी तंत्र बहाली दशक (2021-2030) का एक प्रमुख स्तंभ है, जो दुनिया भर में पारिस्थितिकी प्रणालियों की सुरक्षा और पुनरुद्धार के लिए एक रैली का आह्वान है, जो सतत विकास लक्ष्यों को पाने के लिए ज़रूरी है।
मेजबानदेश: सऊदीअरब
हर साल, विश्व पर्यावरण दिवस की मेजबानी एक अलग देश द्वारा की जाती है जिसमें आधिकारिक समारोह होते हैं। 2024 का मेजबान देश सऊदी अरब है, जो 2 से 13 दिसंबर 2024 तक संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (यूएनसीसीडी) के लिए सम्मेलन की मेजबानी करेगा।
विश्व पर्यावरण दिवस हर साल आता रहेगा। हम इसे यूँ ही मनाते रहेंगे लेकिन ’पर्यावरण करेंसी’ को हासिल करने का मूलमंत्र यही है कि दुनिया से लेकर देश तक की बातें कीजिए, चिंता जताइए, चर्चाएँ कीजिए… लेकिन शुरुआत अपने घर से ही करनी होगी। वो कहते हैं न कि दान या परोपकार अपने घर से ही शुरु होता है। जैसे हम अपने घर में खुश रहते हैं तो जानवरों को भी उनके घर में खुश रहने देना चाहिए। हमारे घर में एसी, आरओ, एयर प्यूरिफायर ज़रूरी हैं और जानवरों के घर यानी जंगलों में पेड़, खुली और साफ़ हवा, नदियों का स्वच्छ पानी। इस संतुलन को बनाने के लिए ढेर सारी कोशिशों और दूरदर्शिता की ज़रूरत है।
Note : This story was published in CSIR-NISCAIR’s prestigious Hindi magazine ‘Vigyan Pragati’ in June 2024.
पर्यावरणकरेंसी’ मेंनिवेश: आनेवालेकलकेलिएसुरक्षितविकल्प
ज़रा सोचिए… अगर हम किसी टाइम मशीन में बैठकर साल 2047 में पहुँच जाएँ तो? तब हम कितने अमीर होंगे? क्या हमारे आस-पास हरियाली होगी? पेड़-पौधों की भरमार होगी? यानी हम जंगल के मामले में अमीर होंगे?
क्या हमारे पास साफ़ हवा की दौलत होगी? क्या हमारे पास स्वच्छ पानी की सम्पदा होगी? सूरज, पानी और हवा मिलकर हमारी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा कर पाएंगे? क्या हम खेती और जंगल के अवशेष से वाहन चलाने वाली ऊर्जा बना पाएंगे? क्या हमारे आस-पास प्रदूषण का नामो-निशान नहीं होगा? ये सब ‘पर्यावरण करेंसी’ हैं जो किसी भी देश को समृद्ध बना सकती है। इस दौलत का कतरा-कतरा ज़रूरी है, क्योंकि बिना इस दौलत के तो कोई देश विकसित नहीं हो सकता है। इस करेंसी की फ़िक्र हर किसी को करनी होगी।
हवा-पानी-पेड़-पौधे-वातावरण आदि मिलकर पर्यावरण बनाते हैं जिसका मतलब होता है हमारे आस-पास का आवरण। पर्यावरण से जुड़े ये सवाल भविष्य में जाकर हल नहीं होंगे। इन सवालों को हम भविष्य पर छोड़ कर आज आराम से नहीं बैठ सकते हैं। इनके जवाब वर्तमान भी खोजेगा, और आने वाले भविष्य को भी खोजना होगा। यही है जनरेशन रेस्टोरेशन। मौजूदा पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी पर्यावरण की करेंसी अपने खाते में जोड़ना चाहती है। ये वो दौलत है जो आने वाले समय में सबसे क़ीमती होगी। जिस देश के पास ये दौलत होगी वो मालामाल होगा। लेकिन ये करेंसी आसानी से उपलब्ध नहीं है। इसमें बड़ा परिश्रम लगता है।
इस करेंसी के बिना फ़िलहाल हमारे पर्यावरण की स्थिति दुरुस्त नहीं है। जैसा कि हम जानते हैं जलवायु परिवर्तन के कारण भूकंप, बाढ़, और तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाएँ बढ़ रही हैं, इससे जलवायु और तापमान में भी बड़ा परिवर्तन हो रहा है। आपके आस-पास कई ऐसी जगह है जहां जलवायु परिवर्तन का असर देखा जा सकता है। बिना ज़्यादा समय लगाए आप ऐसे अनगिनत उदाहरण गिना सकते हैं। जैसे आजकल हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन का सीधा असर देखा जा सकता है। वही पोलर सर्किल में बर्फ़ की चादरें सिकुड़ रही हैं। आर्कटिक सागर की बर्फ कम हो रही है। दक्षिण भारत में ज़्यादा बारिश होने की की वजह से समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। महासागर गर्म हो रहा हैं। उनका अम्लीकरण बढ़ा रहा है। दुनिया भर में वायु प्रदूषण की मात्रा बढ़ने से गर्मियों में औसत तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है।
ये तो हुई दुनिया भर की बातें, अब ज़रा अपने आस-पास देखिए, अपने घर में देखिए। मार्च में ही पारा तीस के पार पहुंच जाता है। जानकारों की मानें तो पूर्व औद्योगिक काल की तुलना में मार्च 2024 लगभग 1.68 डिग्री सेल्सियस ज़्यादा गर्म रहा। इसके पीछे बड़ी वजह अल नीनो तूफ़ान को माना जा रहा है। लेकिन बहुत सारे जानकार जीवाश्म ईंधन के ज़्यादा इस्तेमाल को तापमान बढ़ने के पीछे का विलेन मानते हैं। तूफ़ान तो आते-जाते रहते हैं लेकिन वैज्ञानिकों को डर है कि तापमान को वापिस नॉर्मल लेवल पर लाना अब नामुमकिन होगा। ये सिर्फ़ कहने की बात नहीं है। ेश काे अलग-अलग हिस्सों से आने वाली ख़बरें तो आप देख ही रहे होंगे।
जलवायुपरिवर्तनकीवजहसेदेशकेशहरोंकाआंखों–देखाहाल
#जनरेशनरेस्टोरेशनबदलपाएंगेहालात?
हालत ये हो गई है कि जिस आने वाली पीढ़ी के लिए कल तक हम बहुत कुछ बचाना चाहते थे, आज उन्हीं पर सब कुछ बचाने की ज़िम्मेदारी डालने वाले हैं। हम अपने बच्चों को पर्यावरण का महत्व और उसकी ज़रूरत समझाने में लगे हैं, जिससे कि वो अपना भविष्य ख़ुद ही संवार सकें। इन्हें #जनरेशनरेस्टोरेशनकहा जा सकता है। ये वो पीढ़ी है जो भूमि के साथ शांति स्थापित कर सकती है।
सेंटर फ़ॉर साइंस एंड एनवॉरमेंट (सीएसई) में पर्यावरण शिक्षा की प्रोग्राम मैनेजर तुषिता रावत बताती हैं कि “बच्चों को व्यवहार, दृष्टिकोण और कौशल सिखाना जरुरी है जो उन्हें बदलती दुनिया में ढालने में मदद करे। वातावरण शिक्षा युवाओं को जलवायु परिवर्तन से रूबरू कराती है और समाधानों को लागू करने के मौके मिलते हैं। आख़िरकार, बच्चे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को लेकर ज़्यादा संवेदनशील होते हैं और पिछली पीढ़ी की तुलना में सात गुना ज़्यादा इसकी चपेट में आने की आशंका है। ये एक शानदार अवसर है कि युवा, नीति निर्माण में सक्रिय रूप से शामिल होकर समाधान का हिस्सा बन सके। ये युवाओं के लिए न सिर्फ अपना ज्ञान बढ़ाने का बल्कि सामुदायिक कार्रवाई और नीति निर्माण में सक्रिय रूप से शामिल होकर समाधान का हिस्सा बनने का एक शानदार अवसर है।”
Box Item
ग्यारह साल का यशराज हर रोज़ अपने दादा जी के साथ पौधों के पानी देता है। उसने छोटे पौधों को बड़ा होते देखा है। उनमें नई पत्तियाँ और फूल लगते देखा है। पेड़ों पर फल लगते देखा है। पतझड़ में जब पेड़ों के पत्ते गिर जाते तो वो उदास हो जाता था। तब दादा जी उसे समझाते थे कि ये प्रकृति का नियम है। पुराने पत्ते जाएँगे तभी तो नए पत्ते आएँगे। एक दिन मम्मी-पापा के साथ गाड़ी में जाते हुए उसने सड़क किनारे एक लाइन से लगे पौधों को देखा, वो काफ़ी निराश लग रहे थे। यशराज ने पापा से गाड़ी रोकने के लिए कहा। उतर कर उसने पौधों को नज़दीक से देखा और बेहाल पौधों को लेकर चिंता जताई। मम्मी ने तुरंत ही उससे कहा कि अब तुम ही इनका हाल ठीक करोगे। गाड़ी रुकी थी तो पापा ने खिड़की से सड़क पर थूक दिया, तो यशराज ने तुरंत उन्हें टोका। ऐसा करना बुरी बात होती है पापा। छोटी बहन केले का छिलका खिड़की से बाहर फेंकने ही वाली थी कि यशराज की ये बात सुनकर उसने अपने हाथ रोक लिए। मम्मी ने फिर यशराज को शाबाशी दी और कहा कि अब तुम्हारी पीढ़ी ही धरती को उसके सुख वापस दिलाएगी।
जनरेशन रेस्टोरेशन को तैयार करने के लिए सीएसई का ग्रीन स्कूल प्रोग्राम (जीएसपी) स्कूलों और छात्रों को अपने संसाधन के इस्तेमाल का आंकलन करने और टिकाऊ बनने के लिए सक्रिय रूप से प्रथाओं को अपनाने का मौका देता है। हर साल, हजारों छात्र और शिक्षक इसमें भाग लेते हैं। इससे फायदा भी हुआ है, जैसे जीवाश्म ईंधन का सोच-समझ कर उपयोग करना, वर्षा जल संचयन के तरीके अपनाना, कचरे को अलग करना, आदि। तुषिता हमें ये उदाहरण देकर समझाती हैं। “आंध्र प्रदेश के अन्नामय्या में एक जीएसपी नेटवर्क स्कूल है। इस स्कूल के पास वर्षों से खाली पड़ी जमीन पर एक मियावाकी जंगल विकसित किया गया। ये एक स्थानीय एनजीओ और उसके छात्रों की मदद से किया गया था। अब, स्कूल में पर्यावरण शिक्षा कक्षाएं थोड़ी अलग दिखती हैं क्योंकि वे कक्षा की चारदीवारी से आगे निकल चुकी हैं और छात्र अब ‘करके सीख रहे हैं’। ऑडिट में दिए गए फीडबैक की मदद से कई जीएसपी स्कूलों ने स्कूल परिसर से पैकेज्ड खाद्य पदार्थों को पूरी तरह से हटा दिया है और सिर्फ ताजी बनी चीजें ही परोसी हैं। ये प्लास्टिक कचरे को कम करता है और युवाओं के स्वास्थ्य का भी ख्याल रखता है। स्कूलों का एक और समूह शून्य-अपशिष्ट स्कूल बनने की अपनी यात्रा पर है, जहां वे उत्पन्न होने वाले सभी कचरे का प्रबंधन करते हैं और लैंडफिल पर भार काफी हद तक कम हो जाता है।”
अशोक यूनिवर्सिटी में त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज के सेंटर फॉर हेल्थ एनालिटिक्स रिसर्च एंड ट्रेंड्स (CHART) की निदेशक और सेंटर फॉर क्रॉनिक डिजीज कंट्रोल में सीनियर रिसर्च साइंटिस्ट पूर्णिमा प्रभाकरण गर्व के साथ बताती हैं कि “आज के युवाओं की अच्छी बात ये है कि वो जलवायु परिवर्तन के मुद्दों के बारे में जागरूक हो रहे हैं। उन्हें पर्यावरण से जुड़े विषयों की न सिर्फ समझ है बल्कि कई बार वो बड़ों से भी ज़्यादा ज़िम्मेदार साबित होते हैं। इसकी शुरुआत हम घर से ही कर सकते हैं। हम अपने आप से और अपने घरों से ही जल संरक्षण, भोजन की बर्बादी से बचने, उपयोग में न होने पर लाइट बंद करने, असुरक्षित अपशिष्ट निपटान से बचने, सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने और जागरूकता फैलाने के लिए दिन-प्रतिदिन के सरल तरीकों से शुरुआत कर सकते हैं। हर व्यक्ति अपना घर, अपनी आदतें, अपना रहन-सहन ठीक कर लेगा तो बस देखते ही देखते पर्यावरण की सूरत बदल जाएगी।”
ये बात सच है कि हम समय को पीछे नहीं लौटा सकते, लेकिन हम जंगल उगा सकते हैं, जल स्रोतों को पुनर्जीवित कर सकते हैं, मिट्टी वापस ला सकते हैं, प्रदूषण को कम करने की कोशिश कर सकते हैं, नवीन ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकते हैं। ज़रूरत पड़ने पर समाज के अलग-अलग वर्गों जैसे डॉक्टर, नर्स, टीचर, आदि से भी मदद ली जा सकती है। ये समाज में जागरुकता फैलाने में मददगार साबित हो सकते हैं।
सततभविष्यकानिर्माणकैसेकरेइंसान ?
हरघरसोलर
हर घर पावर हाउस बन जाए तो क्या होगा ? हर छत पर पावर वाला गार्डन हो तो क्या होगा? ये एक बहुत महत्वाकांक्षी मिशन है जिसके तरह पहले ग्रीन घर बनेगा, फिर ग्रीन भारत बनेगा और फिर ग्रीन दुनिया बनेगी। वैसे भारत का लक्ष्य 2030 तक अपनी गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली उत्पादन क्षमता को 500 गीगावॉट तक बढ़ाना है। इसके लिए, उच्च सौर और पवन क्षमता वाले क्षेत्रों को मांग केंद्रों तक कुशल बिजली निकासी के लिए अंतर-राज्य ट्रांसमिशन सिस्टम से जोड़ने की आवश्यकता है। भारत में 2024 कैलेंडर वर्ष में 25 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता बढ़ने की संभावना है, जिसमें 1,37,500 करोड़ रुपये का निवेश होगा, जो कि 13.5 गीगावॉट से अधिक होगा। भारत में 2023 तक 150 गीगावॉट से अधिक की नवीन ऊर्जा क्षमता स्थापित हो चुकी है। इसमें 50 गीगावॉट से अधिक हिस्सा सौर ऊर्जा का है और 40 गीगावॉट से ज़्यादा पवन ऊर्जा है। 2023 में 74,250 करोड़ रुपये का निवेश देखा गया। इसी साल जनवरी में कैबिनेट ने नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को भी मंज़ूरी दी है।
प्रदूषणमुक्तभविष्य
नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल करने, सार्वजनिक परिवहन और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने, प्रदूषण नियंत्रण मानकों को लागू करने, प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को दंडित करने और पर्यावरण शिक्षा और जागरूकता बढ़ाने जैसी पहलों के माध्यम से प्रदूषण मुक्त भविष्य संभव है। नागरिक वाहन का उपयोग कम करके, ऊर्जा और पानी का संरक्षण करके, कचरे का पुनर्चक्रण करके, प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करके, पेड़ लगाकर और प्रदूषण मुक्त भविष्य के लिए मिलकर कोशिश की जाए तो प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
सरकार ने वायु प्रदूषण को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए उत्सर्जन मानकों और ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान जैसे नियामक उपाय किए हैं। सरकार ने उद्योगों, वाहनों और कृषि पद्धतियों सहित दूसरे स्रोतों से उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए कई पहल किए हैं। सरकार, जनता, और व्यापारिक संगठनों को मिलकर प्रदूषण मुक्त भविष्य की दिशा में आगे बढ़ना होगा।
पेड़कटनेनहींबढ़नेचाहिए
वनों की कटाई से वन्यजीवों को हानि होती है, मिट्टी का क्षरण होता है और जल संकट बढ़ता है। वनों की कटाई के कारणों में कृषि, औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, और खनन शामिल हैं। इससे होने वाले बुरे प्रभावों में जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वॉर्मिंग और जल चक्र का बाधित होना शामिल है। भारत में राज्य वन रिपोर्ट (ISFR) 2021 के अनुसार देश का कुल वन क्षेत्र देश के भौगोलिक क्षेत्र का 21.72 प्रतिशत है। 2019 की रिपोर्ट के मुकाबले 2021 में देश के कुल वन क्षेत्र में लगभग 1540 स्वक्वायर किलोमीटर की वृद्धि हुई है।
आईआईटी गांधीनगर के सिविल इंजीनियरिंग और पृथ्वी विज्ञान विभाग में विक्रम साराभाई चेयर प्रोफेसर विमल मिश्रा बताते हैं कि वन, जलवायु परिवर्तन के साथ ही दूसरी महत्वपूर्ण सेवाएँ भी देते हैं। हमें उनके स्थायी प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए वन पारिस्थितिकी प्रणालियों का महत्व समझना चाहिए। साथ ही देश भर में जल निकायों, नदियों और नम भूमि को पुनर्जीवित करने के लिए लोगों की भागीदारी भी हो रही है। स्वस्थ वातावरण बनाने में और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता के संरक्षण में सामुदायिक भागीदारी महत्वपूर्ण है।
वहीं बायो ट्रेंड एनर्जी के निर्देशक सुनील ढिंगरा को नवीन ऊर्जा के क्षेत्र में तीन दशकों से ज़्यादा का अनुभव है। वो बताते हैं कि खेती और जंगल के अवशेष यानी बायोमास को अगर सही तरीके से इस्तेमाल न किया जाए तो इससे प्रदूषण बढ़ सकता है। ये अवशेष अक्षय ऊर्जा का स्त्रोत है। इसे हम तकनीक की मदद से बायोमास पैलेट में बदलते हैं। घरों में खाना पकाने में इन बायोमास पैलेट का इस्तेमाल स्वच्छ ऊर्जा के रूप में किया जा सकता है।इसे बॉयलर में डालकर बिजली का उत्पादन भी किया जा सकता है। गैसिफिकेशन की मदद से खेती और जंगल के अवशेष को गैस में बदला जा सकता है। इसके अलावा इन अवशेष को बायोइथैनॉल, बायोडीजल और बायोहाइड्रोज में बदला जा सकता है जिसे स्वच्छ ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
ऊर्जाकुशलइमारतोंमेंकैसेरहें ?
आप एक शानदार घर बना रहे हैं, जिसमें सुनिश्चित किया जाएगा कि वह सुरक्षित है और पर्यावरण के लिए अच्छा है। अब, जिस तरह हमारे घर में हर चीज को साफ-सुथरा रखने के नियम हैं, उसी तरह इमारतों में भी ऐसे नियम हैं जिन्हें विनियम कहा जाता है ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि वे सुरक्षित हैं और पर्यावरण के लिए अच्छे हैं। ऐसे घर बनाने के लिए विभिन्न सरकारी नीतियां हैं, जैसे ग्रीन रेटिंग फॉर इंटीग्रेटेड हैबिटेट असेसमेंट (GRIHA) और एनर्जी कंजर्वेशन बिल्डिंग कोड (ECBC), जो ऊर्जा बचाने और पर्यावरण की रक्षा में मदद करती हैं। इस तरह के नियमों का पालन करके, हम लंबे समय में पैसा बचा सकते हैं और पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं।
उदाहरण के लिए, GRIHA लोगों को ये देखने में मदद करता है कि उनकी इमारत ऊर्जा की खपत और अपशिष्ट उत्पादन को कम करने में मदद कर रही है। ECBC का पालन करके, हम ऐसे घर बना सकते हैं जो कम बिजली का इस्तेमाल करते हैं, पर्यावरण के लिए बेहतर हैं और लंबे समय में पैसे बचाते हैं। इसलिए, स्मार्ट और टिकाऊ तरीके से घर बनाकर, हम पर्यावरण की रक्षा करने, ऊर्जा बचाने और लंबे समय में पैसा बचाने में मदद कर सकते हैं।
स्मार्टशहर – आपकेद्वारा, आपकेलिए
स्मार्ट शहर वहाँ रहने वालों के जीवन में प्रौद्योगिकी का उपयोग करके चीजों को बेहतर बना रहे हैं। ट्रैफ़िक और ऊर्जा के इस्तेमाल में सेंसर का उपयोग कर रहे हैं। स्मार्ट स्ट्रीटलाइट्स में निवेश कर रहे हैं। निवासियों के लिए सेवाओं में सुधार करने के लिए डेटा विश्लेषण कर रहे हैं। पर्यावरण की मदद के लिए नवीनीकरणीय ऊर्जा का उपयोग कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं से जुड़ी योजनाओं में शहर में रहने वालों को भी शामिल कर रहे हैं। कुल मिलाकर, स्मार्ट शहर वहाँ रहने वालों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहे हैं। विमल मिश्रा पर्यावरण संरक्षण में तकनीक और नवाचार की अहम भूमिका देखते हैं। “जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में तकनीकी नवाचार और ऊर्जा कुशल उपकरण अच्छी भूमिका निभा रहे हैं। ऊर्जा कुशल उपकरण, इलेक्ट्रिक वाहन और स्वच्छ ऊर्जा के नए स्रोत तकनीकी नवाचार के कुछ उदाहरण हैं जिन्हें दुनिया देख रही है। दूसरी तरफ, मज़बूत प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ आपदाओं पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।”
#जनरेशनरेस्टोरेशनकेलिएपर्यावरणमेंनिवेशकेतरीक़े
लम्बे समय से विज्ञान पत्रकारिता करते हुए इस विषय पर विशेषज्ञों से बात होती रहती है। उन सारी चर्चाओं और बातों का निचोड़ निकालकर एक सवाल का जवाब ढूँढते हैं। दरअसल, विशेषज्ञों का मानना है कि हर व्यक्ति को खुद से ये सवाल ज़रूर पूछना चाहिए – मैं क्या निवेश करूं ताकि हमारी पृथ्वी को संरक्षित रखा जा सके, और हमें भी संरक्षण मिले?
भारत में जलपुरुष के नाम से मशहूर पर्यावरण कार्यकर्ता राजेन्द्र सिंह लगातार पानी को लेकर देश भर में काम कर रहे हैं। वो बताते हैं कि “पिछले 42 सालों में 10,600 स्क्वायर किलोमीटर क्षेत्र में जहां पहले बादल नहीं बरसते थे, वहां अच्छी बारिश होती है। यहां लोग खेती करने लगे हैं। राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में पानी के बहाव को बढ़ाने के लिए बहुत काम किए गए। इससे वहां की प्राकृतिक संसाधनों को पुनर्स्थापित किया गया और पर्यावरण को बचाने में मदद मिली। इस समर्थन से हरियाली बढ़ी, ऑक्सीजन के स्तर में वृद्धि हुई, तापमान में सुधार हुआ और प्राकृतिक प्रक्रियाओं में भी सुधार देखा गया। इस रेस्टोरेशन कार्य से प्राकृतिक संतुलन में सुधार हुआ और वातावरण को बचाने में महत्वपूर्ण काम हुआ। हमें अगर अपनी आने वाली पीढ़ी का भविष्य बेहतर बनाना है तो उन्हें रेजुवेनेशन के काम में लगाना होगा।”
हमने अपने पर्यावरण के संरक्षण में कई गलतियां की हैं। अब समय आ गया है कि हम सभी मिलकर इस परिस्थिति को सुधारें और निवेश से इसे बेहतर बनाएं। इस निवेश के माध्यम से हम अपने भविष्य को सुरक्षित रख पाएंगे। लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि हम पर्यावरण से जुड़े कारकों के बारे में जानकारी रखें।
वहीं पूर्णिमा प्रभाकरण स्वास्थ्य पर प्रभाव को लेकर बताती हैं कि “2015 से पर्यावरण स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करते हुए, मैं समझती हूं कि हमारे पास सीमित प्राकृतिक संसाधन हैं जैसे हवा, पानी, मिट्टी। ये संसाधन या तो कम हो रहे हैं या प्रदूषित हो रहे हैं। हमारे भविष्य के सपने कमजोर हो रहे हैं। ये कहना गलत नहीं होता कि इस स्थिति के लिए जिम्मेदार कारक काफी हद तक इंसानों द्वारा ही बनाए गए हैं। इस बात में निराशा और आशा दोनों ही है। निराशा इसलिए क्योंकि हम इन कारणों के बारे में जानते हुए भी कुछ कर नहीं रहे हैं जैसे बेरोकटोक विकास, औद्योगिक गतिविधि के कारण हवा और पानी में बढ़ते प्रदूषक तत्व और आशा की किरण इसलिए क्योंकि ये ऐसे मुद्दे ऐसे हैं जिन्हें आसानी से रोका जा सकता है। इन कारकों का प्रभाव प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हमारे जीवन पर पड़ता है। इसलिए ज़रूरी है कि न सिर्फ अपने लिए बल्कि हमारे बच्चों के लिए हम इन मुद्दों का समाधान ज़रूर करें।
जनरेशनरेस्टोरेशनकाबेमिसालउदाहरण – लिसिप्रियादेवीकंगुजम
तेरह साल की लिसिप्रिया देवी कंगुजम द चाइल्ड मूवमेंट की संस्थापक हैं और उन्होंने 32 देशों में 400 से अधिक संस्थानों में भाषण दिया है। उन्हें विश्व बाल शांति पुरस्कार मिला है। उन्होंने प्रदूषण से लड़ने और स्कूलों में जलवायु परिवर्तन साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए नए कानूनों की वकालत की है।
1. इतनीकमउम्रमेंजलवायुपरिवर्तनकोलेकरकामकरनेकेलिएकिसबातनेप्रेरितकिया?
मैंने बचपन में, 2018 और 2019 में, ओडिशा में चक्रवात तितली और चक्रवात फानी देखा है। 2019 में जब मैं दिल्ली गई तो वहाँ अत्यधिक गर्मी की लहर और वायु प्रदूषण संकट देखा। मेरे युवा जीवन के ऐसे सारे अनुभव मुझे एक मुखर बाल जलवायु कार्यकर्ता बनाते हैं।
2. 2018 मेंआपनेशुरुआतकी, उसकेबादयेसफ़रकैसेजारीरहा?
जून 2018 में, मैंने दिल्ली में संसद भवन के बाहर जलवायु परिवर्तन कानून बनाने के लिए विरोध प्रदर्शन शुरू किया। स्कूली बच्चों के साथ 2019 में ग्रेट अक्टूबर मार्च किया और जलवायु शिक्षा को अनिवार्य बनाने के लिए अभियान किया। 2019 में, मैंने स्पेन में COP25 में भाषण दिया और दुनिया ने मुझे पहचानना शुरू किया।
3. आपकोकिनचुनौतियोंकासामनाकरनापड़ा?
बाल जलवायु कार्यकर्ता होने के नाते, लोग मुझसे कहते थे कि “आप इस तरह के मुद्दों पर बोलने और इनमें शामिल होने के लिए बहुत छोटी हैं”। लेकिन मैं उन्हें बताना चाहती हूँ कि उम्र मायने नहीं रखती है। कभी-कभी, लोग मेरी आवाज़ का राजनीतिकरण करने की कोशिश करते हैं। और साथ ही अपनी सक्रियता और अध्ययन दोनों को संतुलित करने के लिए, मुझे अपनी पढ़ाई में ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती है।
4. जलवायुपरिवर्तनकेलिएआपकीवकालतनेभारतमेंनीतियोंऔरकानूनोंकोकैसेप्रभावितकियाहै?
2020 में, राष्ट्रपति ने दिल्ली में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर से निपटने के लिए एक नया वायु प्रदूषण कानून बनाने के लिए अध्यादेश पर हस्ताक्षर किए। संसद भवन पर दिल्ली पुलिस ने मुझे हिरासत में भी लिया था, पर मैंने विरोध किया। मेरे मित्रों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। 2022 में ताज महल को प्लास्टिक मुक्त स्मारक में बदला गया। हजारों स्कूल अब जलवायु शिक्षा को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाते हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय ने प्रत्येक छात्र को प्रत्येक वर्ष एक पेड़ लगाने की अनिवार्यता लगा दी है। भारत सरकार ने कक्षा 4 और 7 की सीबीएसई पाठ्यपुस्तक में जलवायु शिक्षा को मेरी कहानी के साथ अलग अध्याय के रूप में रखा है।
5. COVID-19 महामारीकेदौरान “इंडियानीड्सऑक्सीजनमिशन” अभियानकेबारेमेंबताइए।
ये मेरे युवा जीवन में किए गए सबसे बड़े मानवीय प्रयासों में से एक था। COVID19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान, मैंने क्राउडफंडिंग की और आपातकालीन ऑक्सीजन कंसेन्ट्रेटर मुहैया कराके भारत में 100 से ज़्यादा लोगों की जान बचाई। हमने भारत के विभिन्न राज्यों में सैकड़ों ऑक्सीजन सिलेंडर और ऑक्सीजन मशीनें भेजीं।
7. नोबेलशांतिपुरस्कारविजेताडॉ. जोसरामोसहोर्टाजैसेविश्वनेताओंकेसाथआपकीमुलाकातनेआपकेकामऔरमिशनकोकैसेप्रभावितकिया?
राष्ट्रपति होर्टा मेरे लिए एक महान प्रेरणा हैं। उनका नेतृत्व और दूरदर्शिता मुझे उनके नक्शेकदम पर चलने के लिए प्रेरित करती है।’ मैं वर्तमान में तिमोर लेस्ते के राष्ट्रपति के रूप में उनके दूसरे कार्यकाल में उनके विशेष दूत के रूप में काम कर रहा हूं। लिसिप्रिया फाउंडेशन का मुख्य लक्ष्य दुनिया के हथियार संघर्ष पीड़ित बच्चों के लिए शैक्षिक सहायता प्रदान करना और स्कूली बच्चों के बीच जलवायु कार्रवाई को बढ़ावा देना है।
8. विश्वपर्यावरणदिवसकेसम्मानमें, आपकैसेमानतीहैंकिभारतऔरदुनियाभरमेंपर्यावरणीयमुद्दोंकेसमाधानकेलिएव्यक्तिऔरसरकारेंमिलकरकामकरसकतीहैं?
विश्व पर्यावरण दिवस 2024 के अवसर पर सभी लोगों के लिए मेरा संदेश है। जलवायु परिवर्तन की समस्या सभी के लिए है। हमें तुरंत कार्रवाई की ज़रूरत है। अमीर देशों से नुकसान का भुगतान करने का आग्रह है। हम जलवायु के साथ हुए अन्याय को ख़त्म करना चाहते हैं। मेरी पीढ़ी पहले से ही जलवायु परिवर्तन का शिकार है। दोबारा वही परिणाम नहीं भुगतना चाहती।
पर्यावरणमेंशांतिस्थापितकरनेकामूलमंत्र
जानकार मानते हैं कि हर दिन एक पर्यावरण दिवस है। समाधान का हिस्सा बनने के लिए, हमें पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर लगातार काम करने और हर दिन बदलाव लाने की जरूरत है। वैसे भी पर्यावरण के बारे में न जाने कितना कुछ लिखा गया है। न जाने कितनी बातें कही गई हैं। न जाने कितनी चिंता जताई गई है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये मुद्दा वर्षों से ज़ोर-शोर से उठाया जाता रहा है।
हर साल विश्व पर्यावरण दिवस इसी उम्मीद के साथ मनाया जाता है कि अब कुछ बेहतर होगा। ये कोशिश वैसे तो सदियों से चल रही है लेकिन आधिकारिक तारीख़ 1972 में पड़ी। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस (डब्ल्यूईडी) के रूप में मनाने का ऐलान किया। “केवल एक पृथ्वी” के नारे के साथ पहली बार 1973 में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया।
बाद के वर्षों में, पर्यावरण के सामने आने वाली समस्याओं जैसे वायु प्रदूषण, प्लास्टिक प्रदूषण, अवैध वन्यजीव व्यापार, समुद्र-स्तर में वृद्धि और खाद्य सुरक्षा आदि के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक मंच के रूप में विकसित हुआ है। इसके अलावा, उपभोग पैटर्न और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण नीति में बदलाव लाया गया जिससे स्थितियाँ सुधरने की उम्मीद बंधी।
थीम – भूमिबहाली, मरुस्थलीकरणऔरसूखालचीलापन
विश्व पर्यावरण दिवस का 2024 संस्करण भूमि बहाली, मरुस्थलीकरण और सूखा लचीलापन पर केंद्रित है, क्योंकि ये वर्ष मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन की 30वीं वर्षगांठ का प्रतीक है।
भूमिबहाली – संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के अनुसार, धरती की 40 प्रतिशत भूमि बर्बाद हो गई है, जिससे दुनिया की आधी आबादी सीधे प्रभावित हो रही है। वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के लगभग आधे हिस्से को खतरा है।
मरुस्थलीकरण – 2000 के बाद से सूखे की स्थिति और अवधि में 29 प्रतिशत की वृद्धि हुई है – तत्काल कार्रवाई के बिना, सूखा 2050 तक दुनिया की तीन-चौथाई से ज़्यादा आबादी को प्रभावित कर सकता है।
सूखालचीलापन – भूमि बहाली संयुक्त राष्ट्र पारिस्थितिकी तंत्र बहाली दशक (2021-2030) का एक प्रमुख स्तंभ है, जो दुनिया भर में पारिस्थितिकी प्रणालियों की सुरक्षा और पुनरुद्धार के लिए एक रैली का आह्वान है, जो सतत विकास लक्ष्यों को पाने के लिए ज़रूरी है।
मेजबानदेश: सऊदीअरब
हर साल, विश्व पर्यावरण दिवस की मेजबानी एक अलग देश द्वारा की जाती है जिसमें आधिकारिक समारोह होते हैं। 2024 का मेजबान देश सऊदी अरब है, जो 2 से 13 दिसंबर 2024 तक संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (यूएनसीसीडी) के लिए सम्मेलन की मेजबानी करेगा।
विश्व पर्यावरण दिवस हर साल आता रहेगा। हम इसे यूँ ही मनाते रहेंगे लेकिन ’पर्यावरण करेंसी’ को हासिल करने का मूलमंत्र यही है कि दुनिया से लेकर देश तक की बातें कीजिए, चिंता जताइए, चर्चाएँ कीजिए… लेकिन शुरुआत अपने घर से ही करनी होगी। वो कहते हैं न कि दान या परोपकार अपने घर से ही शुरु होता है। जैसे हम अपने घर में खुश रहते हैं तो जानवरों को भी उनके घर में खुश रहने देना चाहिए। हमारे घर में एसी, आरओ, एयर प्यूरिफायर ज़रूरी हैं और जानवरों के घर यानी जंगलों में पेड़, खुली और साफ़ हवा, नदियों का स्वच्छ पानी। इस संतुलन को बनाने के लिए ढेर सारी कोशिशों और दूरदर्शिता की ज़रूरत है।
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