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A children story published on International Day of Forests celebrated annually on 21 March.

Note : This story was published in prestigious Bal Bharati’ magazine for children in July 2023.

वनोंमेंनवाचार : संरक्षण, उपग्रहऔरडिजिटलमानचित्रणकेनएतरीके 

विश्व वानिकी दिवस पर विशेष 

(ये कहानी विश्व वानिकी दिवस के महत्व को दर्शाती है और बताती है कि कैसे बच्चे भी 

पर्यावरण की रक्षा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इस कहानी में पेड़ों के महत्व, 

पर्यावरण संरक्षण, और सामुदायिक जागरूकता के विषयों को जोड़ा गया है।) 

“चलो बच्चों अब घर चलो, शाम हो रही है।” मम्मी ने दूर से आवाज़ लगाई। 

“मम्मी खेलने दो न, अब तो इतनी सर्दियाँ भी नहीं हैं।” राजू ने बैडमिंटन का तेज़ शॉट लगाते हुए जवाब दिया। और कॉर्क जाकर पेड़ पर अटक गई। बच्चों ने कहा “लो अब तो घर ही जाना पड़ेगा।” 

तभी राजू ने एक पत्थर उठाकर पेड़ की तरफ़ फेंका। उसे लगा शायद ऐसा करने से उसकी कॉर्क ज़मीन पर गिर जाए। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। फिर वहीं पड़ी कुछ लकड़ियाँ पेड़ की तरफ़ फेंकने लगा। पेड़ की सबसे नीची डाली को खींचने की कोशिश करने लगा। उसे देखकर बाक़ी बच्चों ने भी ऐसा ही करना शुरु कर दिया। तभी बहुत ज़ोर से चीखने की आवाज़ आई। सभी बच्चे डर गए कि ये आवाज़ कहा से आई। सभी ने इधर-उधर देखा लेकिन कोई दिखाई नहीं दिया। 

तभी दोबारा आवाज़ आई – “मुझे क्यों मार रहे हो। मैंने तुम्हारी कॉर्क नहीं चुराई है। तुमने ख़ुद उसे मेरे पत्तों और टहनियों के बीच में फेंक दिया और वो यहाँ अटक गई।” सभी बच्चे हैरान हो गए। ये पेड़ की आवाज़ थी। लेकिन बच्चों ने अपनी विज्ञान की किताब में पढ़ा था कि पेड़ साँस तो लेते हैं लेकिन बोल नहीं सकते हैं। फिर आवाज़ कैसे आ रही है। बच्चों ने पेड़ के आस-पास देखना शुरु किया। तभी फिर आवाज़ आई – “मैं जादुई पेड़ हूँ। मैं तो तुम्हें साँस लेने के लिए ऑक्सीजन देता हूँ, फिर तुम मुझे क्यों मार रहे हो।” 

तभी मम्मी वहाँ आ गईं और बच्चों को एक बुज़ुर्ग व्यक्ति से मिलवाया जो पेड़ के पीछे छिपकर बच्चों से बातें कर रहे थे। ये बुजुर्ग व्यक्ति जंगल में पेड़ों की देखभाल करते हैं। उन्होंने बच्चों को पेड़ पर पत्थर और लकड़ी फेंकते हुए देखा तो पेड़ बनकर बच्चों से बातें करने लगे। बुजुर्ग ने बच्चों को बताया कि “पेड़ हमें ऑक्सीजन देते हैं, जो जीवन के लिए बहुत ज़रूरी है, और वे कार्बन डाइऑक्साइड भी अवशोषित करते हैं, जो ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करता है।” इसके लिए हमें पेड़ों को धन्यवाद कहना चाहिए। 

तभी मम्मी ने बच्चों को ’विश्व वानिकी दिवस’ के बारे में बताया। ये दिन हर साल 21 मार्च को मनाया जाता है। इसकी घोषणा 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा की गई थी। बच्चे उत्सुकता से उस दिवस के बारे में जानना चाहते थे। तो बुजुर्ग ने समझाया कि ये दिन पेड़ों और जंगलों के महत्व को समझने और उनकी रक्षा के लिए मनाया जाता है। 

आरव ने पूछा, “लेकिन दादाजी, पेड़ों की रक्षा क्यों जरूरी है?” बुजुर्ग ने जवाब दिया, “पेड़ हमारी प्राकृतिक धरोहर हैं। वे वातावरण को संतुलित रखते हैं और अनेक जीव-जंतुओं का घर होते हैं।” सारा ने कहा, “हमें भी पेड़ लगाने चाहिए!” बुजुर्ग ने मुस्कुराते हुए कहा, “बिलकुल, और तुम्हें पता है, पेड़ लगाने से सिर्फ़ पर्यावरण की रक्षा ही नहीं होती है, बल्कि ये हमारे स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है।”  

नील ने कहा, “तो क्या हम आज पेड़ लगा सकते हैं?” बुजुर्ग ने हाँ में सिर हिलाया। उन्होंने बच्चों को पेड़ लगाने की सही तकनीक और पेड़ों की देखभाल कैसे करें, ये भी सिखाया। राजू ने तुरंत दिमाग़ लगाना शुरु किया कि पेड़ लगाकर हम भी वनों के संरक्षण में मदद कर सकते हैं। हम अपने गांव में छोटे-छोटे बगीचे बना सकते हैं, या फिर स्कूल में पेड़ लगा सकते हैं। इससे हम वनों की अहमियत को और भी ज्यादा लोगों तक पहुंचा सकते हैं। 

बच्चों ने मिलकर उस दिन बहुत सारे पौधे लगाए। अंजलि ने कहा, “हमें यह जानकारी अपने स्कूल में दोस्तों को भी बतानी चाहिए। हम सब मिलकर एक पर्यावरण क्लब भी बनाएंगे।” राजू को याद आया कि स्कूल में विश्व वानिकी दिवस 2024 की थीम ‘वन और नवाचार’ के विषय पर एक चर्चा का आयोजन किया गया। आयुष ने उत्सुकता से पूछा, “लेकिन वन और नवाचार का आपस में क्या संबंध है?” “नवाचार का मतलब है नए तरीके सोचना और समस्याओं का समाधान ढूंढना। वनों के संरक्षण और स्थायी विकास के लिए भी हमें नवाचार की सख़्त ज़रूरत है।” मम्मी ने जवाब दिया। 

साथ ही समझाया कि “हमें अपने वनों की रक्षा करनी चाहिए और नवाचार के जरिए उन्हें और भी बेहतर बनाना चाहिए।” तभी आयुष और अनन्या, दोनों में नवाचार के तरीक़े जानने की उत्सुकता जागी। उन्होंने सवालों की बौछार शुरु कर दी। “वनों को लेकर कौन से नवाचार हो रहे हैं? इनसे क्या फ़ायदा होता है? अगर हम भी नवाचार करना चाहते हैं, तो क्या करें? क्या तकनीक की मदद से पेड़ों को हमेशा के लिए हरा रखा जा सकता है? क्या नवाचार की मदद से हमारी कॉर्क नीचे आ सकती है?”  

मम्मी ने आयुष और अनन्या को समझाया कि नवाचार कई तरह के होते हैं। भारत में वानिकी के क्षेत्र में उपग्रह छवियों और जीआईएस (भौगोलिक सूचना प्रणाली) तकनीकों का उपयोग बढ़ रहा है। इससे वनों की स्थिति और यहाँ हो रहे बदलाव की निगरानी करना आसान हो जाता है। इसके अलावा वनों का डिजिटल मानचित्रण भी किया जा रहा है। तभी वहाँ ड्रोन के उड़ने की आवाज़ आई। बच्चे ड्रोन देखकर बेहद खुश हुए लेकिन हैरान भी थे कि यहाँ ड्रोन कौन उड़ा रहा है। 

दादा जी ने बताया कि वन अधिकारी अक्सर ड्रोन के ज़रिए जंगल का हाल पता करते रहते हैं। यहाँ तक कि ड्रोन की मदद से बीज भी बोए जा रहे हैं जिससे नए पौधे लगाए जा सकें जो पेड़ बनकर हमारे जीवन में हरियाली बिखेर देते हैं। साथ ही वन से जुड़े संसाधनों के प्रबंधन में आईओटी यानी इंटरनेट ऑफ थिंग्स और डेटा एनालिटिक्स का इस्तेमाल किया जा रहा है। बच्चे एक दूसरे का मुँह देखने लगे, उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था। 

तब मम्मी ने बच्चों की मदद की। उन्होंने बताया कि वन में रहने वाले जानवरों से लेकर पौधों तक सभी की आबादी, उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा से जुड़ी जानकारी मिलना आसान हो जाता है। साथ ही जैव विविधता को संरक्षित करने के नए तरीके, जैसे कि जीन बैंकिंग, इन-सीटू और एक्स-सीटू संरक्षण भी लोकप्रिय हो रहे हैं। इतना ही नहीं अगर शिकारी जानवरों का शिकार करते हैं या कोई पेड़ों की कटाई करता है तो भी नवाचार तकनीकों की मदद से वन अधिकारियों को जानकारी मिल सकती है और ये ग़लत काम रोके जा सकते हैं। 

तभी बच्चों को आइडिया आया कि क्यों न कोई ऐप हो जो देश भर के जंगलों का हाल हमारे फ़ोन पर ही बता दे। लेकिन इसके लिए बहुत सारा डेटा चाहिए होगा। बच्चों ने दादा जी से कहा कि वो स्कूल में अपने कम्प्यूटर के शिक्षक की मदद से वन और उससे जुड़े नवाचारों के बारे में जानेंगे और तमाम वन अधिकारियों की मदद से ज़रूरी डेटा इकट्ठा करेंगे। कुछ बच्चों ने तो अपने अगले स्कूल प्रोजेक्ट के लिए ‘वन और नवाचार’ विषय चुन लिया। इस प्रोजेक्ट में वो अपनी विज्ञान की शिक्षिका की मदद भी ले सकेंगे। इन छोटे-छोटे प्रोजेक्ट्स, रिसर्च और डेटा इकट्ठा करने से बच्चों को वन के बारे में जानकारी मिलेगी। आने वाले समय में बच्चे न सिर्फ़ वन से जुड़ी समस्याओं को समझ सकेंगे बल्कि उन्हें दूर करने में ज़रूरी भूमिका भी निभा सकेंगे। 

हालाँकि बच्चों की कॉर्क वाली समस्या का कोई हल नहीं निकला, लेकिन बच्चे खुश थे। मम्मी और दादा जी की बातों ने बच्चों की आँखें खोल दीं। उनके प्रकृति से जुड़े प्यार को जगा दिया, और बच्चे अब अक्सर जंगल की सैर पर जाने लगे। इस तरह, बच्चों ने पर्यावरण की सेवा की और अपने स्कूल और गाँव में पेड़ लगाने का संकल्प लिया। यहीं से उनके जीवन में एक बड़ा बदलाव शुरू हुआ। बच्चे जादुई दादा जी से बहुत कुछ सीखकर वापस गाँव लौटे। उन्होंने अपने दोस्तों और परिवार को भी विश्व वानिकी दिवस के महत्व के बारे में बताया और हर साल इस दिवस को मनाने का वादा किया। 

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Science journalist | Anchoring & Conceptualising Science Infotainment Shows for Vigyan Prasar, Doordarshan & All India Radio | Indie Writer & Filmmaker | GOI Projects | Sci-Expert @ CIET, NCERT | 16 yr Experience