Note : This story was published in CSIR-NISCAIR’s prestigious Hindi magazine ‘Vigyan Pragati’ in March 2024.
सुख का उम्र से गहरा िरश्ता है िवश्व सुख िदवस पर िवशेष
Box item पहला सुख िनरोगी काया… दू जा सुख घर में हो माया… तीजा सुख कुलवंती नारी… चौथा सुख सुत आज्ञाकारी…
जीवन का पहला सुख है अच्छा स्वास्थ्य… दू सरा सुख है धन सम्पन्नता… तीसरा सुख है अच्छी पत्नी… और चौथा सुख है आज्ञाकारी संतान…
िवश्व सुख िदवस हर साल 20 माचर् को मनाया जाता है। इसका मक़सद दुिनया भर में सुख और खुिशयों के महत्व को साझा करना और समझाना है। ये िदन हमें याद िदलाता है िक जीवन में सफलता िसफ़र् आिथर् क प्रगित या सामािजक िस्थित में वृिद्ध तक सीिमत नहीं है, बिल्क ये आंतिरक संतोष और खुशी की अनुभूित से भी िमलती है। इस लेख में, हम िवज्ञान के लेंस से सुख की खोज में डु बकी लगाएंगे और जानेंगे िक िवज्ञान के अनुसार सुख की उम्र क्या है, साथ ही कुछ रोचक शोध और अध्ययनों पर प्रकाश डालेंगे जो सुख की व्याख्या करते हैं।
सुख का िवज्ञान और हॉमोर्न्स
सुख और खुशी पर होने वाले वैज्ञािनक शोध ने हमें िदखाया है िक खुशी केवल एक भावना नहीं, बिल्क एक जिटल प्रिक्रया है िजसमें हमारे िदमाग, शरीर, और पयार्वरण का गहरा संबधं होता है। न्यूरोसाइंस, मनोिवज्ञान, और सामािजक िवज्ञान के क्षेत्रों में होने वाले अध्ययनों ने सुख की बेहतर समझ प्रदान की है। उदाहरण के िलए, सेरोटोिनन, डोपामीन, एंडोिफर्न, और ऑक्सीटोिसन जैसे रसायनों को सुख और आनंद के अनुभव से जोड़ा गया है। इन हॉमोर्न्स का उत्पादन िकसी िवशेष उम्र में सबसे अिधक होने के बजाय व्यिक्तगत जीवनशैली, स्वास्थ्य, सामािजक संबधोंं और व्यिक्तगत अनुभवों जैसे कारकों पर िनभर्र करता है।
वैज्ञािनक अध्ययनों के अनुसार, लोग अलग-अलग उम्र में खुशी के िविभन्न स्तरों का अनुभव कर सकते हैं। उदाहरण के िलए, युवावस्था में उत्साह और नवीनता की तलाश में डोपामीन का उच्च स्तर हो सकता है, जबिक वृद्धावस्था में जीवन की संतुिष्ट और िस्थर सामािजक संबधोंं के कारण ऑक्सीटोिसन और सेरोटोिनन के स्तर में वृिद्ध हो सकती है। ये भी महत्वपूणर् है िक खुशी के हॉमोर्न्स का स्तर न केवल उम्र पर, बिल्क व्यिक्तगत व्यवहार, जैसे िक व्यायाम, स्वस्थ आहार, पयार्प्त नींद, और सकारात्मक सोच जैसे कारकों पर भी िनभर्र करता है।
अिखल भारतीय आयुिवर् ज्ञान संस्थान, िदल्ली में नैदािनक मनोिवज्ञानी रह चुकी डॉ मंजू मेहता बताती हैं िक “खुशी के िलए डोपामीन हॉमोर्न बहुत ज़रूरी है। हमारे शरीर में ये हॉमोर्न िरलीज़ होगा तभी हम खुश रहेंगे। हमारे िदमाग़ में एक केंद्र होता है िजस पर डोपामीन का असर होता है। और ये हॉमोर्न िरलीज़ कैसे होता है? इसे लेकर भी काफ़ी शोध िकया गया, तो पता चला िक अगर आप छोटे-छोटे काम में ख़ुशी महसूस करें, तो ये हॉमोर्न अपने आप िरलीज़ होगा और आपको ख़ुशी का एहसास देगा। जैसे आप ये मत सोिचए िक आपको अपने रूटीन के िहसाब से काम पूरे करने हैं, बिल्क उसमे खुशी ढूँ ढे, तो बेहतर होगा।”
उम्र के िविभन्न पड़ावों में खुशी के हॉमोर्न्स के स्तर में पिरवतर्न होता है, जो जैिवक, मनोवैज्ञािनक, और सामािजक कारकों से प्रभािवत होते हैं। यहाँ एक सामान्य अवलोकन िदया जा रहा है जो उम्र के साथ हॉमोर्न्स के स्तर के बदलावों को दशार्ता है:
बचपन और िकशोरावस्था
डोपामीन: ये उम्र नए अनुभवों और जोिखम लेने की ओर झ ु काव के कारण डोपामीन के उच्च स्तरों से जुड़ी होती है। खेलने, सीखने, और सामािजक संबधोंं से खुशी िमलती है।
- एंडोिफर्न: शारीिरक गितिविधयाँ और हँ सी एंडोिफर्न के उत्पादन को बढ़ाते हैं, जो ददर् और तनाव को कम करते हैं।
युवावस्था और वयस्कता
- सेरोटोिनन: किरयर, िरश्ते, और व्यिक्तगत उपलिब्धयाँ इस उम्र के दौरान सेरोटोिनन के स्तर को प्रभािवत करती हैं। िस्थरता और संतोष सेरोटोिनन के स्तर को बढ़ा सकते हैं।
- ऑक्सीटोिसन: पािरवािरक बंधन, िमत्रता, और रोमांिटक संबधं ऑक्सीटोिसन का उत्पादन बढ़ाते हैं, िजसे “प्रेम हामोर्न” भी कहा जाता है।
मध्य आयु – डोपामीन और सेरोटोिनन: इस उम्र में, किरयर की सफलता और पािरवािरक िस्थरता जैसी जीवन की उपलिब्धयों और संतुिष्ट, डोपामीन और सेरोटोिनन के स्तर को प्रभािवत कर सकती हैं।
वृद्धावस्था
- सेरोटोिनन और ऑक्सीटोिसन: जीवन के इस पड़ाव में, लोगों में संतोष और खुशी की भावनाएँ ज़्यादा होती हैं, िजससे सेरोटोिनन और ऑक्सीटोिसन का स्तर बढ़ सकता है। समुदाय और पािरवािरक सम्बन्धों पर जोर िदया जाता है।
- वैसे व्यिक्तगत अनुभव इनसे िभन्न हो सकते हैं। व्यिक्तगत जीवनशैली, स्वास्थ्य, और सामािजक सम्बन्ध भी इन हॉमोर्न्स के स्तर को प्रभािवत करते हैं।
सुख की उम्र: वैज्ञािनक खोज
िवज्ञान ने यह भी खोजा है िक सुख का अनुभव उम्र के साथ बदलता है। ‘नेचर ह्यूमन िबहेिवयर’ पित्रका में प्रकािशत हुए एक अध्ययन ने बताया िक खुशी का स्तर जीवन के अलग अलग चरणों में उतार-चढ़ाव का अनुभव करता है, िजसमें युवावस्था और वृद्धावस्था में उच्चतम स्तरों को देखा गया है। इस अध्ययन के अनुसार, लोग अक्सर अपने 20 के दशक के अंत और 30 के दशक की शुरुआत में और िफर 60 के दशक में उच्चतम सुख का अनुभव करते हैं। इससे पता चलता है िक जीवन के िविभन्न चरणों में हमारी प्राथिमकताएँ और उम्मीदें कैसे बदलती हैं, वह हमारे सुख के स्तरों को प्रभािवत कर सकती हैं।
इस संदभर् में यू आकार का ख़ुशी का चक्र बहुत प्रचिलत है। ये बताता है िक अट्ठारह या उससे पहले की उम्र में आप खुश होते हैं। िफर ये ख़ुशी कम होने लगती है और 45-50 के आस-पास जैस-े जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, चीजें बेहतर होती जाती हैं। वैसे ये भी समझना होगा िक हर व्यिक्त की अपनी िवशेषताएँ हैं, िजस पर बहुत कुछ िनभर्र करता है। इसिलए एक ही उम्र में अगर आप अलग-अलग लोगों को टेस्ट करेंगे तो सब का ख़ुशी का लेवल अलग-अलग िमलेगा। अगर उनके हालात कुछ हद तक एक जैसे हों तब भी। एक िरसचर् कहती है िक 36 के आस-पास की जो उम्र है, वो सबसे खुशी की होती है। उन्होंने कारण भी िदए जैसे ये वो दौर है जहां आपने सब सुलझा िलया है। ये वो दौर है जहां आपके जीवन में थोड़ा सामंजस्य है। यहाँ आपके दोस्त भी वो हैं िजन्हें आपने जाँच परख कर अपने जीवन में बचा कर रखा है। आिख़री स्टेज पर जब हम कहते हैं िक साठ-सत्तर की उम्र पर जब ख़ुशहाली ज़्यादा मापी जाती है, उसकी भी यही वजह है िक आपने अपने जीवन की मुिश्कलें हल करना सीख िलया है और आप अब ज़्यादा िववेकशील हैं।
Indian Institute of Technology, IIT, Delhi के Department Of Humanities And Social Sciences में Psychology की Professor डॉ कमलेश िसं ह मानती हैं िक “सबसे खुश रहने की उम्र के बारे में जानना बहुत िदलचस्प है। मैं अपनी कक्षा के बच्चों से भी यह सवाल पूछती हूँ । वे अक्सर कहते हैं िक वे मस्ती और खेलने के समय सबसे ज्यादा खुश रहते हैं। उनके िलए वो समय सबसे अच्छा होता है। ये िरसचर् से भी सािबत हुआ है िक जैस-े जैसे उम्र बढ़ती है, खुशी कम होती जाती है। इसका कारण है िक जब हम बड़े होते हैं, तो हमारे पास ज्यादा िज़म्मेदािरयाँ और समस्याएं होती हैं। इसके साथ ही, तनाव और प्रेशर भी बढ़ते जाते हैं। जब हमने कॉलेज के छात्रों पर िरसचर् की, तो हमें पता चला िक उनकी खुशी का स्तर उनके पहले साल के बाद से कम होने लगता है। यह इस बात को िदखाता है िक तनाव धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। जब हम पूरे जीवन की बात करते हैं, तो हम देखते हैं िक चालीस से पचास साल की उम्र में खुशी कम होती है। इसे हम “िमडल लाइफ िडप” कहते हैं। इसका मतलब है िक चालीस-पचास की उम्र में खुशी घटने लगती है, लेिकन जब हम उससे आगे बढ़ते हैं, तो हम िफर से ज्यादा खुश हो जाते हैं क्योंिक हमारे पास काम कम होता है और हमें ज्यादा आराम िमलता है। हालांिक यहां स्वास्थ्य से जुड़ी िदक्कतें ज़रूर होती हैं।”
ख़ुशी से जुड़े कोसर्
देश-िवदेश में खुशी से जुड़े तरह तरह के कोसर् चल रहे हैं, और इन कोसर् में एडिमशन के िलए उम्र की कोई बंिदश नहीं है। मशहूर हावर्डर् यूिनविसर् टी का कोसर् दुिनया भर में मशहूर है। यहां के वैज्ञािनकों ने 1938 के ग्रेट िडप्रेशन के दौर में एक िरसचर् स्टडी शुरु की थी। ये दुिनया का सबसे लंबा िरसचर् है जो अभी भी चल रहा है। अस्सी सालों से भी ज़्यादा समय से चल रहे इस हावर्डर् स्टडी ऑफ एडल्ट डेवलपमेंट ने हावर्डर् के ही 268 लोगों पर स्टडी शुरु की थी। बाद में उनकी पित्नयों और बच्चों समेत और लोगों को भी शािमल िकया गया। िरज़ल्ट् स कहते हैं िक खुशी पर असर डालने वाले सारे कारक एक दू सरे से जुड़े हुए हैं।
इसी तरह भारत में भी कई कोिशशें का जा रही हैं। गुजरात यूिनविसर् टी में एक कोसर् है िजसकी मदद से िसफ़र् छ महीने में खुश रहना िसखाया जाता है। इसमें वेदों और उपिनषदों का पाठ कराया जाता है। साथ ही नृत्य, संगीत, हंसी, खाना, स्पीच थेरेपी जैसा बहुत कुछ होता है… ऐसे ही िदल्ली यूिनविसर् टी में रामानुजन कॉलेज के सेंटर ऑफ एिथक्स एंड वच्यूज़र् में स्कूल ऑफ हैप्पीनेस है। िदल्ली के सरकारी स्कूलों में खुशी से जुड़े पाठ्यक्रम हैं। वैसे तो ये पाठ्यक्रम बच्चों के िलए हैं लेिकन इसका असर बड़ों पर भी होता है। इन कोसर् की मदद से हर उम्र में जीवन और खुशी के बीच तारतम्य बनाना िसखाया जाता है।
िदल्ली के स्कूलों में ख़ुशी से जुड़े पाठ्यक्रम बनाने वाली कमीटी के पूवर् चेयरमेन डॉ राजेश कुमार बताते हैं िक “खुशी तीन तरह से िमलती है। पहली खुशी संवदेना से िमलती है। ये बच्चों को भी पता है। खाना खाने से, िफ़ल्म देखने से, सुगधं लगाने से, संगीत सुनने से आनंद िमलता है। इसमें कोई समस्या नहीं है। दू सरी तरह की खुशी संवदेना से ऊपर है, थोड़ी गहरी है। ये िरश्तों से िमलती है। ये लंबे समय तक बनी रहने वाली खुशी है, जो भावनाओं से जुड़ी है। जैसे मां-बच्चे की गोदी में िमलने वाली खुशी, पित-पत्नी, भाई-बहन, दोस्तों के बीच की खुशी और लक्ष्य पाने की खुशी। ये खुशी हमें एक नई ऊंचाई तक ले जाती है। तीसरी तरह की खुशी संवदेनाओं और िरश्तों के परे होती है। ये वो खुशी है जब हम अपने सपनों को पूरा करते हैं, तब एक ख़ास तरह की खुशी का अनुभव होता है। इससे ये सीख िमलती हैं िक अपनी खुशी के िलए दू सरों की मदद और परोपकार को अपने जीवन का िहस्सा बनाएं!”
भूटान : एक बेहतरीन उदाहरण
िवश्व सुख िदवस के पीछे का िवचार भूटान द्वारा प्रस्तािवत िकया गया था, जो अपने नागिरकों की खुशी को राष्ट्रीय आय से ज्यादा महत्व देता है। भूटान ने ‘ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस’ को अपनाया है, जो एक अनोखा दृिष्टकोण है िजसमें आिथर् क िवकास के साथ-साथ नागिरकों की खुशी को भी महत्व िदया जाता है। दरअसल, अप्रैल 2012 में भूटान की शाही सरकार ने दुिनया भर के प्रितिनिधयों की एक बैठक बुलाई, िजसमें चचार् हुई िक लोगों की खुशी और भलाई को भी एक आिथर् क पहलू की तरह देखा जाए। इसके िलए आयोग िनयुक्त करने की िसफािरश हुई, िजसे भूटान ने स्वीकार कर िलया। तब वल्डर् हैप्पीनेस डे की पहली िरपोटर् जारी की गई। तब से हर साल ये िरपोटर् जारी हो रही है और इसकी रैंिक ं ग चचार् का िवषय रही है।
‘वल्डर् हैप्पीनेस िरपोटर्’ से ‘इं िडया हैप्पीनेस िरपोटर्’ तक
‘वल्डर् हैप्पीनेस डे’ के संदभर् में हर साल ‘वल्डर् हैप्पीनेस िरपोटर्’ प्रकािशत की जाती है। 2023 की ‘वल्डर् हैप्पीनेस िरपोटर्’ के अनुसार, दुिनया के सबसे सुखी देशों में िफनलैंड लगातार छठे वषर् के िलए सबसे ऊपर है। इसके बाद डेनमाकर्, आइसलैंड, इज़राइल, और नीदरलैंड्स का स्थान है। यूरोपीय देश, जैसे िक स्वीडन, नॉवेर्, िस्वट् ज़रलैंड, और लक्ज़मबगर्, टॉप 10 में शािमल हैं। इनके अलावा, यूरोप के बाहर से केवल इज़राइल और न्यूज़ीलैंड ने टॉप 10 में जगह बनाई है, िजसमें न्यूज़ीलैंड दसवें स्थान पर है। इस सूची में भारत का स्थान 126वां है, िजसका मतलब है िक जब सुख की बात आती है तो भारत कई अन्य देशों से पीछे है।
Box Item दुिनया के टॉप 10 सबसे सुखी देशों की सूची
- िफनलैंड
- डेनमाकर्
- आइसलैंड
- इज़राइल
- नीदरलैंड्स
- स्वीडन
- नॉवेर्
- िस्वट् ज़रलैंड
- लक्ज़मबगर्
- न्यूज़ीलैंड
ये रैंिक ं ग िविभन्न कारकों पर आधािरत हैं, जैसे िक जीडीपी प्रित व्यिक्त, सामािजक समथर्न, उच्च जीवन प्रत्याशा, अिधक स्वतंत्रता, सरकारी और कॉपोर्रेट भ्रष्टाचार की अनुपिस्थित, और दानशीलता। इस िरपोटर् का उद्देश्य यह समझना है िक िविभन्न देशों के नागिरक अपने जीवन को कैसे देखते हैं और वे िकस हद तक संतुष्ट हैं।
लेिकन ये तय कैसे होता है?
वल्डर् हैप्पीनेस इं डेक्स की रैंिक ं ग सवेर् के डेटा के आधार पर तय होती है। ये सवेर् गैलप वल्डर् पोिलं ग एजेंसी द्वारा करवाया जाता है। हर देश से एक से तीन हजार लोगों का चयन िकया जाता है, जो उस देश के िलए सैंपल साइज़ बन जाते हैं। इन लोगों से कुछ सवाल पूछे जाते हैं, और उनके जवाबों के आधार पर डेटा तैयार िकया जाता है। इन सवालों के जवाब 0 से 10 के मापदंड पर िदए जाते हैं, जहां 0 सबसे बुरा और 10 सबसे अच्छा अनुभव को दशार्ता है। ये सवाल छह फैक्टसर् पर आधािरत होते हैं, इनमें जीडीपी, उदारता, सोशल सपोटर्, आज़ादी, और भ्रष्टाचार शािमल होते हैं। इन सवालों के माध्यम से यह िनकाला जाता है िक एक व्यिक्त िकस हद तक अपने पिरवार और दोस्तों पर भरोसा करता है, िकतनी आज़ादी का आनंद व्यिक्त ले रहा है, और व्यिक्त िकतना दानशील है। इसके साथ ही भ्रष्टाचार की िस्तिथ भी मापी जाती है। यह सवेर् लोगों की खुशी और संतुिष्ट को मापने के िलए महत्वपूणर् तत्वों को शािमल करता है।
इस सवेर् में कुछ ऐसे सवाल पूछे जाते हैं िजनके माध्यम से लोगों का मनोबल, सामािजक समथर्न, और संतुिष्ट को मापा जाता है। एक ऐसा सवाल होता है िक क्या मुसीबत में फंसने पर िकसी िरश्तेदार या दोस्त ने मदद की है। इस सवाल का जवाब इसके माध्यम से िदए जाने वाले रेिटं ग के आधार पर िदया जाता है। लोगों को 0 से 10 के बीच एक रेिटं ग देनी होती है, जहां 0 का मतलब होता है िक कोई भी मदद नहीं िमली है और 10 का मतलब होता है िक उन्हें बेहद मदद िमली है। इससे स्पष्ट होता है िक व्यिक्त अपने पिरवार और दोस्तों पर िकतना भरोसा करता है और िकस हद तक वो उनसे सहायता की उम्मीद करता है। यिद िकसी व्यिक्त ने इस सवाल का जवाब 10 रेट कर िदया है, तो इसका मतलब होता है िक वह उन पर पूरी तरह से भरोसा करता है और उनके िलए 100% सहायता करने की उम्मीद कर सकते हैं। इसके अलावा, यह सवेर् पूछताछ करता है िक व्यिक्त अपने जीवन में िकसी भी चीज़ को चुनने की िकतनी आज़ादी से खुश है। इससे पचा चलता है िक व्यिक्त िकतना आज़ादी का आनंद ले रहा है और अपने जीवन के मामलों में िकतना संतष्टु है।इसके अलावा, सवेर् में पूछा जाता है िक िपछले एक महीने में क्या आपने िकसी चैिरटी को पैसे िदए हैं। इस सवाल का उद्देश्य है िक व्यिक्त अगर खुश और संतष्टु है, वह दू सरों की मदद करने में अिधक सिक्रय होगा।
ख़ुशी का वैज्ञािनक मापक
खुशी को मापने के वैसे तो कई तरीके हैं लेिकन एक आसान तरीका है कैंिट्रल सीढ़ी। ये एक ऐसा उपकरण है जो अपने नाम को साथर्क करते हुए एक सीढ़ी बनाता है िजस पर 0 से 10 तक नंबर होते हैं। इनमें 0 सबसे कम और 10 सबसे ज़्यादा होता है। िफर िरसचर् में शािमल होने वाले लोगों को सवाल के जवाब में नंबर देने होते हैं, और तब पता चलता है िक जीवन में, देश में, दुिनया में खुशी का क्या हाल है। इसी कैंिट्रल लैडर की मदद से बनी एक ख़ास िरपोटर् है इं िडया हैप्पीनेस िरपोटर्। ये िरपोटर् मेड इन इं िडया है। यहाँ ख़ुशी से जुड़े पाँच ज़रूरी कारकों पर िरसचर् िकया गया है, िजसमें से एक उम्र है। सारे कारकों के बारे में इं िडया हैप्पीनेस िरपोटर् को बनाने वाले प्रोफ़ेसर राजेश के िपल्लािनया से जानते हैं।
“पहला कारक है काम और उससे जुड़ी चीज़ें, दू सरा है शारीिरक और मानिसक सेहत, तीसरा है दोस्तों और िरश्तेदारों से सम्बन्ध, चौथा है समाज सेवा, और पाँचवा है आध्याित्मकता और धमर्। तो पहले पाँच चीज़ें पहचानी गईं िफर कैंिट्रल सीढ़ी का इस्तेमाल िकया गया। हम लोगों से पूछते हैं िक आप इस समय कैसा महसूस कर रहे हैं। अगर ख़राब महसूस कर रहे हैं तो ज़ीरो की तरफ़ और अगर अच्छा महसूस कर रहे हैं तो दस की तरफ़ रेिटं ग दें। सभी की रेिटं ग आ जाती है तो उससे स्कोर िनकाला जाता है। ये तरीक़ा काफ़ी मशहूर है। वल्डर् हैप्पीनेस िरपोटर् में भी यही स्केल इस्तेमाल िकया जाता है।” वो एक िदलचस्प प्रयोग के बारे में भी बताते हैं। “मैंने अपने खुशी से जुड़े पाठ्यक्रम में एक रोमांचक प्रयोग िकया। हर छात्र को 100 रुपये िदए गए और दो समूहों में िवभािजत िकया गया। पहले समूह को खुद पर पैसा खचर् करने के िलए कहा गया, और दू सरे समूह को दू सरों पर पैसा खचर् करने के िलए कहा गया। प्रयोग से पहले और प्रयोग के बाद उनकी ख़ुशी मापी गई। जो छात्र दू सरों पर पैसा खचर् करते हैं, वे खुद पर खचर् करने वालों की तुलना में अिधक खुश थे।
Box Item
सुख और खुशहाली पर महान िवचारकों और वैज्ञािनकों के िवचार हमेशा से हमें प्रेिरत और मागर्दशर्न करते रहे हैं। महात्मा गांधी, अल्बटर् आइं स्टाइन और ओशो जैसी महान हिस्तयों ने सुख के िवषय पर अपने गहन िवचार साझा िकए हैं।
महात्मा गांधी का कथन:
महात्मा गांधी ने सुख पर िवचार व्यक्त िकया, “खुशी तब िमलती है जब वह जो आप सोचते हैं, वह जो आप कहते हैं, और वह जो आप करते हैं, आपस में सामंजस्य में होते हैं।” गांधीजी के अनुसार, िवचार, शब्द, और कमर् की एकता ही सच्ची खुशी का मागर् है।
अल्बटर् आइं स्टाइन का कथन:
अल्बटर् आइं स्टाइन ने कहा, “एक शांितपूणर् और सरल जीवन लाता है सच्ची खुशी।” आइं स्टाइन का मानना था िक जिटलताओं और अिधकता से मुक्त जीवन ही वास्तिवक सुख और संतोष की ओर ले जाता है।
ओशो का कथन:
ओशो ने सुख पर कहा, “खुशी एक आंतिरक गुण है; यह आपके बाहरी पिरिस्थितयों पर िनभर्र नहीं करती।” उनके अनुसार, सच्ची खुशी का स्रोत आंतिरक है और यह हमारे बाहरी वातावरण या पिरिस्थितयों से स्वतंत्र है।
सुख के िलए वैज्ञािनक सुझाव
- सामािजक संबधं : िवज्ञान कहता है िक मजबूत सामािजक संबधं हमारी खुशी के स्तर को बढ़ाते हैं। सामािजक समथर्न का एक नेटवकर् होने से तनाव कम होता है और आत्म-मूल्य में वृिद्ध होती है।
- धन्यवाद की भावना : धन्यवाद जताने और प्रशंसा की भावना रखने से भी खुशी के स्तर में सुधार होता है। यह हमें वतर्मान क्षण में रहने और जीवन की सकारात्मक बातों की सराहना करने की याद िदलाता है।
- िनयिमत व्यायाम : शारीिरक गितिविध से न केवल हमारे शारीिरक स्वास्थ्य में सुधार होता है, बिल्क यह हमारे मूड को भी बेहतर बनाता है और िचं ता को कम करता है।
- नए अनुभवों का पीछा : नए अनुभवों और शौकों का पीछा करने से न केवल हमारी रचनात्मकता बढ़ती है, बिल्क यह हमें आनंद और संतोष की नई संभावनाएं भी प्रदान करता है।
िवश्व सुख िदवस हमें यह िसखाता है िक सुख की खोज केवल व्यिक्तगत नहीं है, बिल्क यह एक सामूिहक यात्रा है िजसमें हम एक-दू सरे का समथर्न और प्रोत्साहन करते हैं। िवज्ञान ने हमें यह समझने की कंुजी प्रदान की है िक कैसे हमारा िदमाग, शरीर, और सामािजक संबधं हमारे सुख को प्रभािवत करते हैं।
खुशी को लेकर िजतनी बातें की जाएं कम हैं। समझने वाली बात ये है िक ख़ुशी िजतनी ज़्यादा बातों पर िनभर्र करेगी उतना ही कम होती जाएगी…भारत में जीवन प्रत्याशा 69.96 साल यानी लगभग 70 साल है। तो 35-40 के बीच जब आप खुश रहने के कुछ कारक हािसल कर लेते हैं तो ये आपके जीवन का सबसे अच्छा हो सकता है। बाकी तो आपकी सोच, समझ और अनुभवों पर िनभर्र करता है।
विश्व सुख दिवस इस विषय पर आप लोगों को जागरुक करने का अच्छा मौक़ा है। ये सिफर् एक दिन नहीं, बिल्क एक संदेश है जो हमें याद िदलाता है कि सच्ची खुशी और संतोष जीवन के सभी पहलुओ ं में विकसित की जा सकती
ये हमें खुशी के िलए एक-दू सरे का समथर्न करने और एक साथ िमलकर एक अिधक खुशहाल और संतष्टु समाज का िनमार्ण करने की याद िदलाता है।
Note : This story was published in CSIR-NISCAIR’s prestigious Hindi magazine ‘Vigyan Pragati’ in March 2024.
सुख का उम्र से गहरा िरश्ता है िवश्व सुख िदवस पर िवशेष
Box item पहला सुख िनरोगी काया… दू जा सुख घर में हो माया… तीजा सुख कुलवंती नारी… चौथा सुख सुत आज्ञाकारी…
जीवन का पहला सुख है अच्छा स्वास्थ्य… दू सरा सुख है धन सम्पन्नता… तीसरा सुख है अच्छी पत्नी… और चौथा सुख है आज्ञाकारी संतान…
िवश्व सुख िदवस हर साल 20 माचर् को मनाया जाता है। इसका मक़सद दुिनया भर में सुख और खुिशयों के महत्व को साझा करना और समझाना है। ये िदन हमें याद िदलाता है िक जीवन में सफलता िसफ़र् आिथर् क प्रगित या सामािजक िस्थित में वृिद्ध तक सीिमत नहीं है, बिल्क ये आंतिरक संतोष और खुशी की अनुभूित से भी िमलती है। इस लेख में, हम िवज्ञान के लेंस से सुख की खोज में डु बकी लगाएंगे और जानेंगे िक िवज्ञान के अनुसार सुख की उम्र क्या है, साथ ही कुछ रोचक शोध और अध्ययनों पर प्रकाश डालेंगे जो सुख की व्याख्या करते हैं।
सुख का िवज्ञान और हॉमोर्न्स
सुख और खुशी पर होने वाले वैज्ञािनक शोध ने हमें िदखाया है िक खुशी केवल एक भावना नहीं, बिल्क एक जिटल प्रिक्रया है िजसमें हमारे िदमाग, शरीर, और पयार्वरण का गहरा संबधं होता है। न्यूरोसाइंस, मनोिवज्ञान, और सामािजक िवज्ञान के क्षेत्रों में होने वाले अध्ययनों ने सुख की बेहतर समझ प्रदान की है। उदाहरण के िलए, सेरोटोिनन, डोपामीन, एंडोिफर्न, और ऑक्सीटोिसन जैसे रसायनों को सुख और आनंद के अनुभव से जोड़ा गया है। इन हॉमोर्न्स का उत्पादन िकसी िवशेष उम्र में सबसे अिधक होने के बजाय व्यिक्तगत जीवनशैली, स्वास्थ्य, सामािजक संबधोंं और व्यिक्तगत अनुभवों जैसे कारकों पर िनभर्र करता है।
वैज्ञािनक अध्ययनों के अनुसार, लोग अलग-अलग उम्र में खुशी के िविभन्न स्तरों का अनुभव कर सकते हैं। उदाहरण के िलए, युवावस्था में उत्साह और नवीनता की तलाश में डोपामीन का उच्च स्तर हो सकता है, जबिक वृद्धावस्था में जीवन की संतुिष्ट और िस्थर सामािजक संबधोंं के कारण ऑक्सीटोिसन और सेरोटोिनन के स्तर में वृिद्ध हो सकती है। ये भी महत्वपूणर् है िक खुशी के हॉमोर्न्स का स्तर न केवल उम्र पर, बिल्क व्यिक्तगत व्यवहार, जैसे िक व्यायाम, स्वस्थ आहार, पयार्प्त नींद, और सकारात्मक सोच जैसे कारकों पर भी िनभर्र करता है।
अिखल भारतीय आयुिवर् ज्ञान संस्थान, िदल्ली में नैदािनक मनोिवज्ञानी रह चुकी डॉ मंजू मेहता बताती हैं िक “खुशी के िलए डोपामीन हॉमोर्न बहुत ज़रूरी है। हमारे शरीर में ये हॉमोर्न िरलीज़ होगा तभी हम खुश रहेंगे। हमारे िदमाग़ में एक केंद्र होता है िजस पर डोपामीन का असर होता है। और ये हॉमोर्न िरलीज़ कैसे होता है? इसे लेकर भी काफ़ी शोध िकया गया, तो पता चला िक अगर आप छोटे-छोटे काम में ख़ुशी महसूस करें, तो ये हॉमोर्न अपने आप िरलीज़ होगा और आपको ख़ुशी का एहसास देगा। जैसे आप ये मत सोिचए िक आपको अपने रूटीन के िहसाब से काम पूरे करने हैं, बिल्क उसमे खुशी ढूँ ढे, तो बेहतर होगा।”
उम्र के िविभन्न पड़ावों में खुशी के हॉमोर्न्स के स्तर में पिरवतर्न होता है, जो जैिवक, मनोवैज्ञािनक, और सामािजक कारकों से प्रभािवत होते हैं। यहाँ एक सामान्य अवलोकन िदया जा रहा है जो उम्र के साथ हॉमोर्न्स के स्तर के बदलावों को दशार्ता है:
बचपन और िकशोरावस्था
डोपामीन: ये उम्र नए अनुभवों और जोिखम लेने की ओर झ ु काव के कारण डोपामीन के उच्च स्तरों से जुड़ी होती है। खेलने, सीखने, और सामािजक संबधोंं से खुशी िमलती है।
युवावस्था और वयस्कता
मध्य आयु – डोपामीन और सेरोटोिनन: इस उम्र में, किरयर की सफलता और पािरवािरक िस्थरता जैसी जीवन की उपलिब्धयों और संतुिष्ट, डोपामीन और सेरोटोिनन के स्तर को प्रभािवत कर सकती हैं।
वृद्धावस्था
सुख की उम्र: वैज्ञािनक खोज
िवज्ञान ने यह भी खोजा है िक सुख का अनुभव उम्र के साथ बदलता है। ‘नेचर ह्यूमन िबहेिवयर’ पित्रका में प्रकािशत हुए एक अध्ययन ने बताया िक खुशी का स्तर जीवन के अलग अलग चरणों में उतार-चढ़ाव का अनुभव करता है, िजसमें युवावस्था और वृद्धावस्था में उच्चतम स्तरों को देखा गया है। इस अध्ययन के अनुसार, लोग अक्सर अपने 20 के दशक के अंत और 30 के दशक की शुरुआत में और िफर 60 के दशक में उच्चतम सुख का अनुभव करते हैं। इससे पता चलता है िक जीवन के िविभन्न चरणों में हमारी प्राथिमकताएँ और उम्मीदें कैसे बदलती हैं, वह हमारे सुख के स्तरों को प्रभािवत कर सकती हैं।
इस संदभर् में यू आकार का ख़ुशी का चक्र बहुत प्रचिलत है। ये बताता है िक अट्ठारह या उससे पहले की उम्र में आप खुश होते हैं। िफर ये ख़ुशी कम होने लगती है और 45-50 के आस-पास जैस-े जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, चीजें बेहतर होती जाती हैं। वैसे ये भी समझना होगा िक हर व्यिक्त की अपनी िवशेषताएँ हैं, िजस पर बहुत कुछ िनभर्र करता है। इसिलए एक ही उम्र में अगर आप अलग-अलग लोगों को टेस्ट करेंगे तो सब का ख़ुशी का लेवल अलग-अलग िमलेगा। अगर उनके हालात कुछ हद तक एक जैसे हों तब भी। एक िरसचर् कहती है िक 36 के आस-पास की जो उम्र है, वो सबसे खुशी की होती है। उन्होंने कारण भी िदए जैसे ये वो दौर है जहां आपने सब सुलझा िलया है। ये वो दौर है जहां आपके जीवन में थोड़ा सामंजस्य है। यहाँ आपके दोस्त भी वो हैं िजन्हें आपने जाँच परख कर अपने जीवन में बचा कर रखा है। आिख़री स्टेज पर जब हम कहते हैं िक साठ-सत्तर की उम्र पर जब ख़ुशहाली ज़्यादा मापी जाती है, उसकी भी यही वजह है िक आपने अपने जीवन की मुिश्कलें हल करना सीख िलया है और आप अब ज़्यादा िववेकशील हैं।
Indian Institute of Technology, IIT, Delhi के Department Of Humanities And Social Sciences में Psychology की Professor डॉ कमलेश िसं ह मानती हैं िक “सबसे खुश रहने की उम्र के बारे में जानना बहुत िदलचस्प है। मैं अपनी कक्षा के बच्चों से भी यह सवाल पूछती हूँ । वे अक्सर कहते हैं िक वे मस्ती और खेलने के समय सबसे ज्यादा खुश रहते हैं। उनके िलए वो समय सबसे अच्छा होता है। ये िरसचर् से भी सािबत हुआ है िक जैस-े जैसे उम्र बढ़ती है, खुशी कम होती जाती है। इसका कारण है िक जब हम बड़े होते हैं, तो हमारे पास ज्यादा िज़म्मेदािरयाँ और समस्याएं होती हैं। इसके साथ ही, तनाव और प्रेशर भी बढ़ते जाते हैं। जब हमने कॉलेज के छात्रों पर िरसचर् की, तो हमें पता चला िक उनकी खुशी का स्तर उनके पहले साल के बाद से कम होने लगता है। यह इस बात को िदखाता है िक तनाव धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। जब हम पूरे जीवन की बात करते हैं, तो हम देखते हैं िक चालीस से पचास साल की उम्र में खुशी कम होती है। इसे हम “िमडल लाइफ िडप” कहते हैं। इसका मतलब है िक चालीस-पचास की उम्र में खुशी घटने लगती है, लेिकन जब हम उससे आगे बढ़ते हैं, तो हम िफर से ज्यादा खुश हो जाते हैं क्योंिक हमारे पास काम कम होता है और हमें ज्यादा आराम िमलता है। हालांिक यहां स्वास्थ्य से जुड़ी िदक्कतें ज़रूर होती हैं।”
ख़ुशी से जुड़े कोसर्
देश-िवदेश में खुशी से जुड़े तरह तरह के कोसर् चल रहे हैं, और इन कोसर् में एडिमशन के िलए उम्र की कोई बंिदश नहीं है। मशहूर हावर्डर् यूिनविसर् टी का कोसर् दुिनया भर में मशहूर है। यहां के वैज्ञािनकों ने 1938 के ग्रेट िडप्रेशन के दौर में एक िरसचर् स्टडी शुरु की थी। ये दुिनया का सबसे लंबा िरसचर् है जो अभी भी चल रहा है। अस्सी सालों से भी ज़्यादा समय से चल रहे इस हावर्डर् स्टडी ऑफ एडल्ट डेवलपमेंट ने हावर्डर् के ही 268 लोगों पर स्टडी शुरु की थी। बाद में उनकी पित्नयों और बच्चों समेत और लोगों को भी शािमल िकया गया। िरज़ल्ट् स कहते हैं िक खुशी पर असर डालने वाले सारे कारक एक दू सरे से जुड़े हुए हैं।
इसी तरह भारत में भी कई कोिशशें का जा रही हैं। गुजरात यूिनविसर् टी में एक कोसर् है िजसकी मदद से िसफ़र् छ महीने में खुश रहना िसखाया जाता है। इसमें वेदों और उपिनषदों का पाठ कराया जाता है। साथ ही नृत्य, संगीत, हंसी, खाना, स्पीच थेरेपी जैसा बहुत कुछ होता है… ऐसे ही िदल्ली यूिनविसर् टी में रामानुजन कॉलेज के सेंटर ऑफ एिथक्स एंड वच्यूज़र् में स्कूल ऑफ हैप्पीनेस है। िदल्ली के सरकारी स्कूलों में खुशी से जुड़े पाठ्यक्रम हैं। वैसे तो ये पाठ्यक्रम बच्चों के िलए हैं लेिकन इसका असर बड़ों पर भी होता है। इन कोसर् की मदद से हर उम्र में जीवन और खुशी के बीच तारतम्य बनाना िसखाया जाता है।
िदल्ली के स्कूलों में ख़ुशी से जुड़े पाठ्यक्रम बनाने वाली कमीटी के पूवर् चेयरमेन डॉ राजेश कुमार बताते हैं िक “खुशी तीन तरह से िमलती है। पहली खुशी संवदेना से िमलती है। ये बच्चों को भी पता है। खाना खाने से, िफ़ल्म देखने से, सुगधं लगाने से, संगीत सुनने से आनंद िमलता है। इसमें कोई समस्या नहीं है। दू सरी तरह की खुशी संवदेना से ऊपर है, थोड़ी गहरी है। ये िरश्तों से िमलती है। ये लंबे समय तक बनी रहने वाली खुशी है, जो भावनाओं से जुड़ी है। जैसे मां-बच्चे की गोदी में िमलने वाली खुशी, पित-पत्नी, भाई-बहन, दोस्तों के बीच की खुशी और लक्ष्य पाने की खुशी। ये खुशी हमें एक नई ऊंचाई तक ले जाती है। तीसरी तरह की खुशी संवदेनाओं और िरश्तों के परे होती है। ये वो खुशी है जब हम अपने सपनों को पूरा करते हैं, तब एक ख़ास तरह की खुशी का अनुभव होता है। इससे ये सीख िमलती हैं िक अपनी खुशी के िलए दू सरों की मदद और परोपकार को अपने जीवन का िहस्सा बनाएं!”
भूटान : एक बेहतरीन उदाहरण
िवश्व सुख िदवस के पीछे का िवचार भूटान द्वारा प्रस्तािवत िकया गया था, जो अपने नागिरकों की खुशी को राष्ट्रीय आय से ज्यादा महत्व देता है। भूटान ने ‘ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस’ को अपनाया है, जो एक अनोखा दृिष्टकोण है िजसमें आिथर् क िवकास के साथ-साथ नागिरकों की खुशी को भी महत्व िदया जाता है। दरअसल, अप्रैल 2012 में भूटान की शाही सरकार ने दुिनया भर के प्रितिनिधयों की एक बैठक बुलाई, िजसमें चचार् हुई िक लोगों की खुशी और भलाई को भी एक आिथर् क पहलू की तरह देखा जाए। इसके िलए आयोग िनयुक्त करने की िसफािरश हुई, िजसे भूटान ने स्वीकार कर िलया। तब वल्डर् हैप्पीनेस डे की पहली िरपोटर् जारी की गई। तब से हर साल ये िरपोटर् जारी हो रही है और इसकी रैंिक ं ग चचार् का िवषय रही है।
‘वल्डर् हैप्पीनेस िरपोटर्’ से ‘इं िडया हैप्पीनेस िरपोटर्’ तक
‘वल्डर् हैप्पीनेस डे’ के संदभर् में हर साल ‘वल्डर् हैप्पीनेस िरपोटर्’ प्रकािशत की जाती है। 2023 की ‘वल्डर् हैप्पीनेस िरपोटर्’ के अनुसार, दुिनया के सबसे सुखी देशों में िफनलैंड लगातार छठे वषर् के िलए सबसे ऊपर है। इसके बाद डेनमाकर्, आइसलैंड, इज़राइल, और नीदरलैंड्स का स्थान है। यूरोपीय देश, जैसे िक स्वीडन, नॉवेर्, िस्वट् ज़रलैंड, और लक्ज़मबगर्, टॉप 10 में शािमल हैं। इनके अलावा, यूरोप के बाहर से केवल इज़राइल और न्यूज़ीलैंड ने टॉप 10 में जगह बनाई है, िजसमें न्यूज़ीलैंड दसवें स्थान पर है। इस सूची में भारत का स्थान 126वां है, िजसका मतलब है िक जब सुख की बात आती है तो भारत कई अन्य देशों से पीछे है।
Box Item दुिनया के टॉप 10 सबसे सुखी देशों की सूची
ये रैंिक ं ग िविभन्न कारकों पर आधािरत हैं, जैसे िक जीडीपी प्रित व्यिक्त, सामािजक समथर्न, उच्च जीवन प्रत्याशा, अिधक स्वतंत्रता, सरकारी और कॉपोर्रेट भ्रष्टाचार की अनुपिस्थित, और दानशीलता। इस िरपोटर् का उद्देश्य यह समझना है िक िविभन्न देशों के नागिरक अपने जीवन को कैसे देखते हैं और वे िकस हद तक संतुष्ट हैं।
लेिकन ये तय कैसे होता है?
वल्डर् हैप्पीनेस इं डेक्स की रैंिक ं ग सवेर् के डेटा के आधार पर तय होती है। ये सवेर् गैलप वल्डर् पोिलं ग एजेंसी द्वारा करवाया जाता है। हर देश से एक से तीन हजार लोगों का चयन िकया जाता है, जो उस देश के िलए सैंपल साइज़ बन जाते हैं। इन लोगों से कुछ सवाल पूछे जाते हैं, और उनके जवाबों के आधार पर डेटा तैयार िकया जाता है। इन सवालों के जवाब 0 से 10 के मापदंड पर िदए जाते हैं, जहां 0 सबसे बुरा और 10 सबसे अच्छा अनुभव को दशार्ता है। ये सवाल छह फैक्टसर् पर आधािरत होते हैं, इनमें जीडीपी, उदारता, सोशल सपोटर्, आज़ादी, और भ्रष्टाचार शािमल होते हैं। इन सवालों के माध्यम से यह िनकाला जाता है िक एक व्यिक्त िकस हद तक अपने पिरवार और दोस्तों पर भरोसा करता है, िकतनी आज़ादी का आनंद व्यिक्त ले रहा है, और व्यिक्त िकतना दानशील है। इसके साथ ही भ्रष्टाचार की िस्तिथ भी मापी जाती है। यह सवेर् लोगों की खुशी और संतुिष्ट को मापने के िलए महत्वपूणर् तत्वों को शािमल करता है।
इस सवेर् में कुछ ऐसे सवाल पूछे जाते हैं िजनके माध्यम से लोगों का मनोबल, सामािजक समथर्न, और संतुिष्ट को मापा जाता है। एक ऐसा सवाल होता है िक क्या मुसीबत में फंसने पर िकसी िरश्तेदार या दोस्त ने मदद की है। इस सवाल का जवाब इसके माध्यम से िदए जाने वाले रेिटं ग के आधार पर िदया जाता है। लोगों को 0 से 10 के बीच एक रेिटं ग देनी होती है, जहां 0 का मतलब होता है िक कोई भी मदद नहीं िमली है और 10 का मतलब होता है िक उन्हें बेहद मदद िमली है। इससे स्पष्ट होता है िक व्यिक्त अपने पिरवार और दोस्तों पर िकतना भरोसा करता है और िकस हद तक वो उनसे सहायता की उम्मीद करता है। यिद िकसी व्यिक्त ने इस सवाल का जवाब 10 रेट कर िदया है, तो इसका मतलब होता है िक वह उन पर पूरी तरह से भरोसा करता है और उनके िलए 100% सहायता करने की उम्मीद कर सकते हैं। इसके अलावा, यह सवेर् पूछताछ करता है िक व्यिक्त अपने जीवन में िकसी भी चीज़ को चुनने की िकतनी आज़ादी से खुश है। इससे पचा चलता है िक व्यिक्त िकतना आज़ादी का आनंद ले रहा है और अपने जीवन के मामलों में िकतना संतष्टु है।इसके अलावा, सवेर् में पूछा जाता है िक िपछले एक महीने में क्या आपने िकसी चैिरटी को पैसे िदए हैं। इस सवाल का उद्देश्य है िक व्यिक्त अगर खुश और संतष्टु है, वह दू सरों की मदद करने में अिधक सिक्रय होगा।
ख़ुशी का वैज्ञािनक मापक
खुशी को मापने के वैसे तो कई तरीके हैं लेिकन एक आसान तरीका है कैंिट्रल सीढ़ी। ये एक ऐसा उपकरण है जो अपने नाम को साथर्क करते हुए एक सीढ़ी बनाता है िजस पर 0 से 10 तक नंबर होते हैं। इनमें 0 सबसे कम और 10 सबसे ज़्यादा होता है। िफर िरसचर् में शािमल होने वाले लोगों को सवाल के जवाब में नंबर देने होते हैं, और तब पता चलता है िक जीवन में, देश में, दुिनया में खुशी का क्या हाल है। इसी कैंिट्रल लैडर की मदद से बनी एक ख़ास िरपोटर् है इं िडया हैप्पीनेस िरपोटर्। ये िरपोटर् मेड इन इं िडया है। यहाँ ख़ुशी से जुड़े पाँच ज़रूरी कारकों पर िरसचर् िकया गया है, िजसमें से एक उम्र है। सारे कारकों के बारे में इं िडया हैप्पीनेस िरपोटर् को बनाने वाले प्रोफ़ेसर राजेश के िपल्लािनया से जानते हैं।
“पहला कारक है काम और उससे जुड़ी चीज़ें, दू सरा है शारीिरक और मानिसक सेहत, तीसरा है दोस्तों और िरश्तेदारों से सम्बन्ध, चौथा है समाज सेवा, और पाँचवा है आध्याित्मकता और धमर्। तो पहले पाँच चीज़ें पहचानी गईं िफर कैंिट्रल सीढ़ी का इस्तेमाल िकया गया। हम लोगों से पूछते हैं िक आप इस समय कैसा महसूस कर रहे हैं। अगर ख़राब महसूस कर रहे हैं तो ज़ीरो की तरफ़ और अगर अच्छा महसूस कर रहे हैं तो दस की तरफ़ रेिटं ग दें। सभी की रेिटं ग आ जाती है तो उससे स्कोर िनकाला जाता है। ये तरीक़ा काफ़ी मशहूर है। वल्डर् हैप्पीनेस िरपोटर् में भी यही स्केल इस्तेमाल िकया जाता है।” वो एक िदलचस्प प्रयोग के बारे में भी बताते हैं। “मैंने अपने खुशी से जुड़े पाठ्यक्रम में एक रोमांचक प्रयोग िकया। हर छात्र को 100 रुपये िदए गए और दो समूहों में िवभािजत िकया गया। पहले समूह को खुद पर पैसा खचर् करने के िलए कहा गया, और दू सरे समूह को दू सरों पर पैसा खचर् करने के िलए कहा गया। प्रयोग से पहले और प्रयोग के बाद उनकी ख़ुशी मापी गई। जो छात्र दू सरों पर पैसा खचर् करते हैं, वे खुद पर खचर् करने वालों की तुलना में अिधक खुश थे।
Box Item
सुख और खुशहाली पर महान िवचारकों और वैज्ञािनकों के िवचार हमेशा से हमें प्रेिरत और मागर्दशर्न करते रहे हैं। महात्मा गांधी, अल्बटर् आइं स्टाइन और ओशो जैसी महान हिस्तयों ने सुख के िवषय पर अपने गहन िवचार साझा िकए हैं।
महात्मा गांधी का कथन:
महात्मा गांधी ने सुख पर िवचार व्यक्त िकया, “खुशी तब िमलती है जब वह जो आप सोचते हैं, वह जो आप कहते हैं, और वह जो आप करते हैं, आपस में सामंजस्य में होते हैं।” गांधीजी के अनुसार, िवचार, शब्द, और कमर् की एकता ही सच्ची खुशी का मागर् है।
अल्बटर् आइं स्टाइन का कथन:
अल्बटर् आइं स्टाइन ने कहा, “एक शांितपूणर् और सरल जीवन लाता है सच्ची खुशी।” आइं स्टाइन का मानना था िक जिटलताओं और अिधकता से मुक्त जीवन ही वास्तिवक सुख और संतोष की ओर ले जाता है।
ओशो का कथन:
ओशो ने सुख पर कहा, “खुशी एक आंतिरक गुण है; यह आपके बाहरी पिरिस्थितयों पर िनभर्र नहीं करती।” उनके अनुसार, सच्ची खुशी का स्रोत आंतिरक है और यह हमारे बाहरी वातावरण या पिरिस्थितयों से स्वतंत्र है।
सुख के िलए वैज्ञािनक सुझाव
िवश्व सुख िदवस हमें यह िसखाता है िक सुख की खोज केवल व्यिक्तगत नहीं है, बिल्क यह एक सामूिहक यात्रा है िजसमें हम एक-दू सरे का समथर्न और प्रोत्साहन करते हैं। िवज्ञान ने हमें यह समझने की कंुजी प्रदान की है िक कैसे हमारा िदमाग, शरीर, और सामािजक संबधं हमारे सुख को प्रभािवत करते हैं।
खुशी को लेकर िजतनी बातें की जाएं कम हैं। समझने वाली बात ये है िक ख़ुशी िजतनी ज़्यादा बातों पर िनभर्र करेगी उतना ही कम होती जाएगी…भारत में जीवन प्रत्याशा 69.96 साल यानी लगभग 70 साल है। तो 35-40 के बीच जब आप खुश रहने के कुछ कारक हािसल कर लेते हैं तो ये आपके जीवन का सबसे अच्छा हो सकता है। बाकी तो आपकी सोच, समझ और अनुभवों पर िनभर्र करता है।
विश्व सुख दिवस इस विषय पर आप लोगों को जागरुक करने का अच्छा मौक़ा है। ये सिफर् एक दिन नहीं, बिल्क एक संदेश है जो हमें याद िदलाता है कि सच्ची खुशी और संतोष जीवन के सभी पहलुओ ं में विकसित की जा सकती
ये हमें खुशी के िलए एक-दू सरे का समथर्न करने और एक साथ िमलकर एक अिधक खुशहाल और संतष्टु समाज का िनमार्ण करने की याद िदलाता है।
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