पहली बार Quarantine शब्द का इस्तेमाल 14वीं शताब्दी में किया गया था। ये शब्द इटली भाषा के ‘quarantina’ से बना है, जिसका मतलब होता है 40 दिन।
14वीं शताब्दी में यूरोप में गिल्टी प्लेग के फैलने की शुरूआत हुई। इसे ब्लैक डेथ के नाम से जाना गया। साल 1343 के समय ये बीमारी इतनी तेजी से फैली कि यूरोप की लगभग एक तिहाई जनसंख्या इसकी चपेट में आ गई। हालात इतने ख़राब हो गए कि इसे लेकर एक कानून पास किया गया जिसके तहत प्लेग प्रभावित जगहों से आने वाले जहाजों को 30 दिन के लिए आइसोलेशन में रखा गया। किसी भी व्यक्ति को उन जहाजों पर जाने की अनुमति नहीं थी। विदेश से आनेवाले सभी जहाजों की quarantine संबंधी जाँच होती है। 1377 के एक दस्तावेज़ से ये पुष्टि होती है कि तब क्रोएशिया के कुछ शहरों में बाहर से आने वालों को 30 दिन तक अलग थलग होकर रहना पड़ता था ताकि प्लेग के संक्रमण से बचा जा सके। अंतर्राष्ट्रीय Quarantine की जाँच बंदरगाहों, हवाई अड्डों और दो देशों के बीच सीमास्थ स्थानों पर होती है। जाँच करने वाले अधिकारी के सामने जहाज का कप्तान अपने कर्मचारियों और यात्रियों के स्वास्थ्य के बारे में डिटेल में बताता है। जहाज के रोगमुक्त घोषित किए जाने पर ही उसे बंदरगाह में प्रवेश करने की अनुमति दी जाती है। अगर जहाज में किसी प्रकार का कोई संक्रामक रोगी या रोग फैलाने वाली वस्तु मौजूद हो तो जहाज को बंदरगाह से दूर ही रोक दिया जाता है और उस पर Quarantine काल के समाप्त होने तक पीला झंडा फहराता रहता है। रोग संबंधी गलत सूचना देने अथवा सही बात छिपाने के अपराध में कप्तान को कड़ी सज़ा मिल सकती है। 1348 से 1359 के बीच प्लेग की वजह से यूरोप में 30 फीसदी लोगों की मौत हो गई थी।
Quarantine व्यवस्था के अंतर्गत आने वाले रोगों में हैजा, बुख़ार, चेचक, टायफॉयड, कुष्ट रोग, प्लेग प्रमुख हैं। 14वीं शताब्दी में ही आइसोलेशन की अवधि को 30 दिन से बढ़ाकर 40 दिन किया गया। अब सवाल ये कि आख़िर 40 दिन की अवधि ही क्यों ? ऐसा इसलिए क्योंकि प्लेग के संक्रमण से मरीज़ की मृत्यु तक 37 दिन का समय लगता था।
गिल्टी प्लेग यानि की ब्लैक डेथ के समय Quarantine शब्द चलन में आया था लेकिन इससे पहले भी लोगों को बीमारी के समय अलग रखने की प्रक्रिया चलती आई है। बाइबल में कुष्ठरोग के पीड़ितों को अलग रखने की बात कही गई है। प्लेग और कुष्ठरोग से पीड़ित मरीजों के लिए अलग से अस्पताल बनाए जाते थे।
National Quarantine Act
साल 1878 में पीले बुखार के मद्देनजर अमेरिकी कांग्रेस ने National Quarantine Act पास किया। साल 1892 में हैजा फैलने पर जरूरी सेवाओं को देने के लिए सरकार को ज्यादा अधिकार मिले। साल 1921 में Quarantine सिस्टम पूरी तरह से राष्ट्रीयकृत हो गया था।
भारत और Quarantine
भारत में बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं को संक्रमण से बचाने के लिए 40 दिन तक अलग रखने की परंपरा रही है। भारतीय परंपरा में Quarantine पुरातन समय से वायरल इंफेक्शन से बचाता रहा है। घर में किसी को खसरा होने की दशा में ये विधि भारतीय घरों में प्राचीन काल से अपनाई जाती रही है। इसमें बीमार सदस्य को घर के अलग कमरे में रखा जाता था। एक देखरेख करने वाले व्यक्ति के अतिरिक्त उस कमरे में कोई नहीं जाता था। 15 दिन के इस काल में पूरे घर को साफ रखा जाता था। घरों में केवल सादा खाना ही बनाया जाता था। गोबर से लिपाई, हवन और कपूर का धुआं किया जाता था। इस भारतीय परंपरा को अब पूरी दुनिया में कोरोना से बचने के लिए अपनाया ज़ा रहा है।
रोग के संक्रमण को रोकने के लिए नगरों, स्थानों, मकानों और व्यक्ति विशेष का अनेक देशों में Quarantine होता है। इसके लिए प्रत्येक देश के अपने-अपने नियम और कानून हैं। यूरोप और अमेरिका में जिस घर में किसी संक्रामक रोग का रोगी होता है उसके दरवाज़े पर नोटिस लगा दिया जाता है। कहीं-कहीं रोगी के साथ डॉक्टर और नर्स भी अलग रखे जाते हैं। जहाँ डॉक्टर या नर्स अलग नहीं रखे जाते है, वहाँ उन्हें विशेष सावधानी बरतनी पड़ती है।
पेड़-पौधे और जानवरों का भी Quarantine होता है। अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में इसका पालन बड़ी कठोरता के साथ होता है। यहाँ तक कि अगर किसी यात्री के पास ऐसा कोई फल है जिसके माध्यम से पेड़ पौधों में रोग फैलाने वाले कीड़े आ सकते हों, तो वो फल कितना भी अच्छा क्यों न हो तत्काल नष्ट कर दिया जाता है। इसी तरह ऐसी लकड़ी के बक्सों में पैक किया माल ही इन देशों में प्रवेश कर सकता है जो किसी रोग से ग्रस्त न हो। पैकिंग के बक्से पर संदेह होने पर माल सहित बक्से को नष्ट कर दिया जाता है।
ये कुछ ऐसे तरीक़े हैं जिनको अपनाने के अलावा और कोई रास्ता ही नहीं है। जहां जानकारी ही बचाव है वहाँ जानना ज़रूरी है। और ये जानकारी आपके लिए अच्छी है।
(Featured Image courtesy : New Yorker)
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पहली बार Quarantine शब्द का इस्तेमाल 14वीं शताब्दी में किया गया था। ये शब्द इटली भाषा के ‘quarantina’ से बना है, जिसका मतलब होता है 40 दिन।
14वीं शताब्दी में यूरोप में गिल्टी प्लेग के फैलने की शुरूआत हुई। इसे ब्लैक डेथ के नाम से जाना गया। साल 1343 के समय ये बीमारी इतनी तेजी से फैली कि यूरोप की लगभग एक तिहाई जनसंख्या इसकी चपेट में आ गई। हालात इतने ख़राब हो गए कि इसे लेकर एक कानून पास किया गया जिसके तहत प्लेग प्रभावित जगहों से आने वाले जहाजों को 30 दिन के लिए आइसोलेशन में रखा गया। किसी भी व्यक्ति को उन जहाजों पर जाने की अनुमति नहीं थी। विदेश से आनेवाले सभी जहाजों की quarantine संबंधी जाँच होती है। 1377 के एक दस्तावेज़ से ये पुष्टि होती है कि तब क्रोएशिया के कुछ शहरों में बाहर से आने वालों को 30 दिन तक अलग थलग होकर रहना पड़ता था ताकि प्लेग के संक्रमण से बचा जा सके। अंतर्राष्ट्रीय Quarantine की जाँच बंदरगाहों, हवाई अड्डों और दो देशों के बीच सीमास्थ स्थानों पर होती है। जाँच करने वाले अधिकारी के सामने जहाज का कप्तान अपने कर्मचारियों और यात्रियों के स्वास्थ्य के बारे में डिटेल में बताता है। जहाज के रोगमुक्त घोषित किए जाने पर ही उसे बंदरगाह में प्रवेश करने की अनुमति दी जाती है। अगर जहाज में किसी प्रकार का कोई संक्रामक रोगी या रोग फैलाने वाली वस्तु मौजूद हो तो जहाज को बंदरगाह से दूर ही रोक दिया जाता है और उस पर Quarantine काल के समाप्त होने तक पीला झंडा फहराता रहता है। रोग संबंधी गलत सूचना देने अथवा सही बात छिपाने के अपराध में कप्तान को कड़ी सज़ा मिल सकती है। 1348 से 1359 के बीच प्लेग की वजह से यूरोप में 30 फीसदी लोगों की मौत हो गई थी।
Quarantine व्यवस्था के अंतर्गत आने वाले रोगों में हैजा, बुख़ार, चेचक, टायफॉयड, कुष्ट रोग, प्लेग प्रमुख हैं। 14वीं शताब्दी में ही आइसोलेशन की अवधि को 30 दिन से बढ़ाकर 40 दिन किया गया। अब सवाल ये कि आख़िर 40 दिन की अवधि ही क्यों ? ऐसा इसलिए क्योंकि प्लेग के संक्रमण से मरीज़ की मृत्यु तक 37 दिन का समय लगता था।
गिल्टी प्लेग यानि की ब्लैक डेथ के समय Quarantine शब्द चलन में आया था लेकिन इससे पहले भी लोगों को बीमारी के समय अलग रखने की प्रक्रिया चलती आई है। बाइबल में कुष्ठरोग के पीड़ितों को अलग रखने की बात कही गई है। प्लेग और कुष्ठरोग से पीड़ित मरीजों के लिए अलग से अस्पताल बनाए जाते थे।
National Quarantine Act
साल 1878 में पीले बुखार के मद्देनजर अमेरिकी कांग्रेस ने National Quarantine Act पास किया। साल 1892 में हैजा फैलने पर जरूरी सेवाओं को देने के लिए सरकार को ज्यादा अधिकार मिले। साल 1921 में Quarantine सिस्टम पूरी तरह से राष्ट्रीयकृत हो गया था।
भारत और Quarantine
भारत में बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं को संक्रमण से बचाने के लिए 40 दिन तक अलग रखने की परंपरा रही है। भारतीय परंपरा में Quarantine पुरातन समय से वायरल इंफेक्शन से बचाता रहा है। घर में किसी को खसरा होने की दशा में ये विधि भारतीय घरों में प्राचीन काल से अपनाई जाती रही है। इसमें बीमार सदस्य को घर के अलग कमरे में रखा जाता था। एक देखरेख करने वाले व्यक्ति के अतिरिक्त उस कमरे में कोई नहीं जाता था। 15 दिन के इस काल में पूरे घर को साफ रखा जाता था। घरों में केवल सादा खाना ही बनाया जाता था। गोबर से लिपाई, हवन और कपूर का धुआं किया जाता था। इस भारतीय परंपरा को अब पूरी दुनिया में कोरोना से बचने के लिए अपनाया ज़ा रहा है।
रोग के संक्रमण को रोकने के लिए नगरों, स्थानों, मकानों और व्यक्ति विशेष का अनेक देशों में Quarantine होता है। इसके लिए प्रत्येक देश के अपने-अपने नियम और कानून हैं। यूरोप और अमेरिका में जिस घर में किसी संक्रामक रोग का रोगी होता है उसके दरवाज़े पर नोटिस लगा दिया जाता है। कहीं-कहीं रोगी के साथ डॉक्टर और नर्स भी अलग रखे जाते हैं। जहाँ डॉक्टर या नर्स अलग नहीं रखे जाते है, वहाँ उन्हें विशेष सावधानी बरतनी पड़ती है।
पेड़-पौधे और जानवरों का भी Quarantine होता है। अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में इसका पालन बड़ी कठोरता के साथ होता है। यहाँ तक कि अगर किसी यात्री के पास ऐसा कोई फल है जिसके माध्यम से पेड़ पौधों में रोग फैलाने वाले कीड़े आ सकते हों, तो वो फल कितना भी अच्छा क्यों न हो तत्काल नष्ट कर दिया जाता है। इसी तरह ऐसी लकड़ी के बक्सों में पैक किया माल ही इन देशों में प्रवेश कर सकता है जो किसी रोग से ग्रस्त न हो। पैकिंग के बक्से पर संदेह होने पर माल सहित बक्से को नष्ट कर दिया जाता है।
ये कुछ ऐसे तरीक़े हैं जिनको अपनाने के अलावा और कोई रास्ता ही नहीं है। जहां जानकारी ही बचाव है वहाँ जानना ज़रूरी है। और ये जानकारी आपके लिए अच्छी है।
(Featured Image courtesy : New Yorker)
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