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कोरोना वायरस का तोड़ है मौसम, तापमान और नमी?

दुनिया भर के 199 देशों में फैल चुका है कोरोना वायरस। इनमें से 50 से ज़्यादा देश लॉकडाउन में हैं। इस समय दुनिया की आबादी करीब 780 करोड़ है, इसमें से 300 करोड़ से ज़्यादा लोग लॉकडाउन में हैं। भारत में 135 करोड़ लोग लॉकडाउन में हैं। सवाल ये है कि ये सब कितने दिन चलेगा और हम कोरोना वायरस से कैसे बचेंगे। वैज्ञानिक भी कोरोना वायरस का तोड़ ढूँढने में लगे हैं। इसी बीच एक रिसर्च सामने आया है जो इशारा करता है कि मौसम, तापमान और नमी का कोरोना वायरस पर असर होता है। 

अमेरिका के Massachusetts Institute of Technology (MIT) के वैज्ञानिकों ने ये रिसर्च किया है। वैज्ञानिकों ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में COVID -19 संक्रमण की संख्या का आंकलन किया और इसकी तुलना सभी क्षेत्रों के मौसम से की। इसमें भी मौसम के दो मापदंड को लिया गया, एक तापमान और दूसरा नमी। वैज्ञानिकों की मानें तो मौसम जितना ज़्यादा गर्म होगा और हवा में जितनी ज़्यादा नमी होगी संक्रमण उतना ही कम फैलेगा। 22 मार्च 2020 तक के डेटा के विश्लेषण से पता चला है कि कोरोना वायरस के नब्बे फ़ीसदी मामले उन देशों से आए जहां तापमान 3-17 डिग्री सेल्सियस था और नमी 4-9 ग्राम प्रति मीटर क्यूब थी। स्पेन, इटली और ब्रिटेन जैसे देश इसी श्रेणी में आते हैं। यानी जिन देशों में कोरोना वायरस के ज़्यादा मामले आए हैं, वहाँ का तापमान कम था। 

यहाँ एक तुलना भी की गई। वैज्ञानिकों की खोज बताती है कि 18 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा तापमान और 9 ग्राम प्रति मीटर क्यूब नमी वाले जगहों पर संक्रमण के मामले छ प्रतिशत कम हैं। एशिया, मध्य पूर्व और दक्षिण अमेरिका के कई देशों में कोरोना संक्रमण की दर कम है। अमेरिका में  तो गर्म और ठंडे राज्यों में संक्रमण का स्तर अलग-अलग है। अमेरिका के दक्षिणी राज्य गर्म होते हैं। इनकी तुलना में उत्तरी राज्यों यानी ठंडे राज्यों में कोरोना के मामलों की दर बहुत अधिक है।

कई एशियाई देशों में संक्रमण की दर धीमी है। जैसा कि हम भारत में भी देख रहे हैं। इसकी एक वजह है कि यहाँ फ़रवरी तक सर्दी लगभग ख़त्म हो जाती है। और इस बार तो फ़रवरी-मार्च में बारिश भी हुई है। बारिश होने की वजह से यहाँ नमी दस ग्राम प्रति मीटर क्यूब से ज़्यादा है। लेकिन नमी ज़्यादा होने का वायरस से क्या लेना-देना ? आख़िर नमी और कोरोना वायरस के बीच में क्या कनेक्शन है ? 

इसे ध्यान से समझिए। कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति जब खाँसता या छींकता है, तो बहुत बारीक कण हवा में फैल जाते हैं जिससे संक्रमण फैलता है। हवा में नमी कम होगी तो हवा हल्की होगी और वायरस, बैक्टीरिया दूर तक जा पाएंगे। वहीं हवा में नमी ज़्यादा होगी तो वो भारी होगी और हवा में वायरस या बैक्टीरिया दूर तक नहीं जा पाएंगे। ये रिसर्च इस बात पर भी रोशनी डालता है कि भारत, पाकिस्तान, इंडोनेशिया और अफ़्रीका के देशों में कम संख्या में टेस्ट किए गए हैं। ये भी एक वजह हो सकती है कि यहाँ मामले कम सामने आए हैं। वहीं सिंगापुर, यूएई और सऊदी अरब में अमेरिका, इटली से ज़्यादा टेस्ट किए गए फिर भी वहाँ संक्रमण के उतने मामले सामने नहीं आए। यहाँ मौसम वाली वजह ज़्यादा सटीक बैठती है। 

इस रिसर्च को करने वाली पूरी टीम और यूनिवर्सिटी ये भी मानती है कि ये सारे आँकड़े और बातें अभी आकलन हैं। रिसर्च के स्तर पर ही है। कुछ भी पूरे विश्वास के साथ कहने से पहले इस पर आगे और शोध करने की आवश्यकता होगी। हमें इस शोध का इंतज़ार रहेगा क्योंकि इस वक़्त कोरोना वायरस से निपटने के लिए किसी वैक्सीन या इसके फैलने के सटीक कारण का पता चलना बहुत ज़रूरी है। इस वायरस के बारे में जानकारी ही इससे बचाव है। 

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